दशकों तक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (दिल्ली और आसपास के गुड़गांव तथा नोएडा जैसे शहर) देश की निर्माण राजधानी भी रहा है। बीते 15 वर्षों में दुनिया के सबसे बड़े हवाई अड्डों में से एक का चरणबद्ध विकास हुआ है और मेट्रो नेटवर्क का भी।
आसपास के उपनगरों में आवासीय और कार्यालयों वाले टावर बनाए गए और उन्हें जोड़ने वाले एक्सप्रेसवे तथा मेट्रो लिंक तैयार किए गए।
इस बीच नियमों में परिवर्तन करके एक मंजिला आवासों को बहुमंजिला आवासीय अपार्टमेंट में बदला गया। इससे आबादी का घनत्व बढ़ा और नए फ्लाईओवर तथा शहरों के ऊपर से गुजरने वाले क्रॉस सिटी फ्रीवे आबादी और यातायात के बढ़ते दबाव से निपटने में नाकाम रहे। इस बीच शहर का दम खराब हवा में घुटता गया।
अब मुंबई की बारी है। देश की वित्तीय राजधानी ने अधोसंरचना विकास और अचल संपत्ति निर्माण में समांतर तेजी के साथ दिल्ली को पीछे छोड़ दिया। पूरे शहर में निर्माण कार्य में इस्तेमाल होने वाले भारी-भरकम उपकरण देखे जा सकते हैं। ये उपकरण मिट्टी के ढेरों को इधर-उधर करते हैं, मेट्रो लाइन और ओवरहेड सड़कों को सहारा देने वाले निर्माण नजर आते हैं और सुरंगों की खुदाई देखी जा सकती है जो जमीन के नीचे शहर को अलग-अलग दिशाओं में काटती हैं।
इसकी कीमत वायु प्रदूषण के रूप में चुकानी पड़ रही है और प्रदूषण की स्थिति यह है कि कुछ दिन तो दिल्ली से भी बुरे हालात रहते हैं।
वादा तो यही है कि ये बातें पारंपरिक तौर पर बुनियादी परिवहन ढांचे के अभाव से जूझ रहे शहर को बदल देंगी।
उपनगरीय इलाकों में अब तीन मेट्रो लाइन शुरू हो चुकी हैं और विस्तारित लाइन निर्माणाधीन हैं। एक विशाल तटवर्ती सड़क परियोजना भी है जहां अलग से बस लेन होगी। यह मौजूदा ट्रैफिक कॉरिडोर को बाई पास करेगा और मौजूदा शॉर्ट सी-लिंक के चार गुना यातायात को संभालेगा।
इसके अलावा 22 किलोमीटर लंबा ट्रांस हार्बर लिंक बनाया जा रहा है जो मिड-टाउन मुंबई को मुख्यभूमि से जोड़ेगा। यह लगभग पूरा होने वाला है। एक नया हवाई अड्डा निर्माणाधीन है, शहर के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों को जोड़ने वाली ओवरहेड कनेक्टिंग रोड बनाई जा रही हैं और शहर तथा समुद्र के नीचे कई किलोमीटर की सुरंग तैयार की जा रही हैं।
इनमें से अधिकांश परियोजनाओं को अगले दो सालों में पूरा करना है इसलिए निर्माण कार्य पूरी गति पर है। एकमात्र चीज जिसका विस्तार नहीं किया जा रहा है वह है उपनगरीय रेल सेवा जो शहर की जीवन रेखा भी है।
निर्माण का आकार पहले की परियोजनाओं को काफी छोटा कर देता है। उदाहरण के लिए वर्ली-बांद्रा सी लिंक, बांद्रा-कुर्ला फाइनैंशियल डिस्ट्रिक्ट और मूल बैकबे रिक्लेमेशन जिसके माध्यम से नरीमन पॉइंट बिजनेस डिस्ट्रिक्ट बना।
परिवहन परियोजनाओं से अलग अचल संपत्ति निर्माण (अनुमान के मुताबिक 15 करोड़ वर्ग फुट) के बारे में अनुमान है कि इनका आकार नरीमन पॉइंट से पांच गुना है। तटवर्ती सड़क परियोजना में समुद्र से पहले की तुलना में अधिक भूमि ली जानी है।
परिवहन परियोजना नया उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर और सड़क तथा रेल के माध्यम से नया पूर्व-पश्चिम संपर्क मुहैया कराएगी तथा द्वीपीय शहर को मुख्य भूमि से जोड़ेगी। वहां से एक नए हवाई अड्डे और न्हावा-शेवा बंदरगाह तक संपर्क कायम होगा। दो ही वर्षों में शहर में आवागमन आसान हो जाएगा।
परंतु बेंगलूरु और दिल्ली का अनुभव बताता है और जैसा कि मुंबई में टेक्सटाइल मिलों की जमीन के पुनर्विकास का अनुभव है, नया परिवहन ढांचा भी बढ़ती जरूरतों के साथ शायद ही तालमेल बिठा पाए।
ऐसा इसलिए कि परिवहन संपर्क में सुधार होने और शहर तथा मुख्य भूमि के बीच बेहतर संपर्क से यातायात बढ़ता है। हम देख चुके हैं कि गुड़गांव और नोएडा तथा दिल्ली के बीच कैसा विशाल शहरी ढांचा विकसित हुआ। मुंबई की बात करें तो मुख्यभूमि से बेहतर संपर्क जमीन की कमी दूर करेगा जिसने इसके विकास को बाधित किया है।
इसके साथ ही आवासीय और कार्यालयीन निर्माण को मंजूरियों में अचानक तेजी आने से पहले से ही भीड़भाड़ वाले शहर में आबादी का दबाव और बढ़ेगा। इस बीच धारावी का भी पुनर्विकास होगा। पानी की आपूर्ति और गंदगी का निस्तारण और बड़े मुद्दे बन जाएंगे।
संभव है यह केवल शुरुआत हो। दिल्ली से 65 किलोमीटर दूर मेरठ जाने के लिए हाईस्पीड रेल लाइन हाल ही में शुरू हुई है। अलवर आदि अन्य शहरों के लिए ऐसी अन्य लाइन बिछाने की योजना है। मुंबई, ठाणे और नवी मुंबई के बीच यात्री पहले ही आवागमन करते हैं। कल्पना कीजिए कि और तेज परिवहन के साथ इस दूरी में भी विस्तार होगा।
समय के साथ हम दक्षिणी चीन के ग्रेटर बे एरिया का भारतीय समकक्ष भी देख सकते हैं जिसमें शेनझेन और ग्वांगझाऊ जैसे शहर तथा हॉन्गकॉन्ग भी शामिल है। यहां सात करोड़ लोग रहते हैं और यह चीन के जीडीपी के 12 फीसदी के बराबर है। क्या अब वक्त आ गया है कि भारतीय शहरों के मामले में हम अब तक प्राप्त नतीजों की तुलना में बेहतर योजनाओं का निर्माण करें।