सरकार विश्व बैंक के नए बिजनेस रेडी (बी-रेडी) सूचकांक के लिए तैयारी में लग गई है जो अब बंद हो चुके कारोबारी सुगमता सूचकांक का स्थान लेगा। इससे पता चलता है कि सरकार आर्थिक वृद्धि के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) पर नए सिरे से जोर देने के लिए तैयार है।
बी-रेडी सूचकांक का लक्ष्य 180 देशों को शामिल करने का है और इसे सितंबर 2025 में शुरू किया जाना है। भारत में इसका सर्वे वर्ष की दूसरी छमाही में होगा। उसके पहले उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग प्रमुख मंत्रालयों के साथ महीने में दो बार बैठकें कर रहा है ताकि यह आकलन कर सके कि बी-रेडी की प्रश्नावली में शामिल 1,300 से अधिक प्रश्नों के लिहाज से हालात कैसे हैं।
व्यापक स्तर पर देखें तो कुछ बी-रेडी संबद्ध सूचकांकों को राज्यों की कारोबारी सुधार कार्य योजना में शामिल करने की योजना है। यह एक स्वस्थ और सक्रियता भरा रुख है जिसकी मदद से कारोबारी सुगमता की दिक्कतों को हल किया जा सकता है और जिन्होंने हाल के वर्षों में सीमित एफडीआई आवक के साथ बहुत सीमित नतीजे प्रदान किए हैं।
ऐपल (Apple) एक अपवाद है जिसके लिए सरकार की प्रोत्साहन से संबद्ध प्रोत्साहन योजना में कुछ अपेक्षित बदलाव किए गए, उसके अलावा इस बात के बहुत कम प्रमाण हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने देश में विनिर्माण के बड़े केंद्र स्थापित किए हों।
चीन प्लस वन (निवेश के लिए चीन के अलावा एक और देश का चयन) की रणनीति के कारण देश में विनिर्माण बढ़ना अपेक्षित है लेकिन अभी यह फलीभूत नहीं हुआ है। ऐपल के दो वेंडर विस्ट्रॉन और पेगाट्रॉन ने भारत से दूरी बना ली है।
यद्यपि कहा जा रहा है कि आईफोन (iPhone) बनाने वाली पेगाट्रॉन का निर्णय वैश्विक स्तर पर ऐपल के कारोबार से दूरी बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है जबकि विस्ट्रॉन का बाहर जाना आपूर्ति श्रृंखला और श्रम नीतियों के प्रबंधन की दिक्कतों को दर्शाता है।
भारत के विनिर्माण क्षेत्र में ये दोनों दिक्कतें लंबे समय से हैं। नीतिगत डिजाइन और निवेशकों की अपेक्षाओं ने भी परियोजनाओं को प्रभावित किया है।
वियतनाम की इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता कंपनी विनफास्ट के तमिलनाडु के तूत्तुकोडि में दो अरब डॉलर के निवेश को लेकर बनी अनिश्चितता इसका उदाहरण है। कंपनी को लग रहा है कि उसने जो सब्सिडी चाही थी वह उसके विनिर्माण शुरू करने तक समाप्त हो जाएगी। सरकार ने कहा है कि ये तभी हासिल होगी जब नीति लागू होगी।
इस तरह की नीतिगत अनिश्चितता अक्सर सूचकांकों में नहीं नजर आती है जो प्राय: कुछ खांचों में निशान लगाने की कवायद होते हैं और जिन्हें सरकारें वैश्विक निवेशकों की तुलना में अधिक गंभीरता से लेती हैं।
उदाहरण के लिए 2019 में दिवालिया संहिता लागू करने के बाद भारत को सूचकांक में 14 अंकों की उछाल हासिल हुई थी क्योंकि माना गया था कि इससे कारोबारों से बाहर निकलना आसान होगा। परंतु इससे कारोबारी सुगमता से जुड़ी वास्तविक दिक्कतों पर कोई असर नहीं हुआ।
अर्थशास्त्र के विद्वानों ने बहुत पहले कारोबारी सुगमता सूचकांक को लेकर इसे रेखांकित किया था। आखिरकार 2021 में इससे छेड़छाड़ के आरोपों के बीच विश्व बैंक को इसे बंद करना पड़ा था।
विश्व बैंक का कहना है कि बी-रेडी सूचकांक का कहीं अधिक व्यापक कारकों से वास्ता होगा, खासकर निजी क्षेत्र में और वह कारोबारी सुगमता मानकों से आगे जाकर गुणात्मक आकलन मसलन नियामकीय गुणवत्ता, कर्मचारियों और माहौल को शामिल करेगा। ये किसी अर्थव्यवस्था के निवेश माहौल के अधिक विश्वसनीय और मजबूत संकेतक साबित हो सकते हैं परंतु जहां तक भारत की बात है तो एक ऐसी अर्थव्यवस्था नजर आ सकती है जहां लाइसेंस राज की छाया निवेश और आर्थिक गतिविधियों की संस्कृति पर मंडरा रही है।
सबसे निचले कारखाना निरीक्षक से लेकर सर्वोच्च स्तर पर नीति निर्माता तक यही स्थिति है। संरक्षणवाद और उदारवाद के बीच झूलने के कारण विश्व की बड़ी कंपनियों को स्थिरता का संकेत नहीं मिलता है।
विश्व स्तर पर एक विश्वसनीय निवेश केंद्र बनने के लिए भारत को राज्य और केंद्र स्तर पर अपनी नीतियों को सुसंगत बनाना होगा और उन्हें राजनीति तथा नीतिगत अनिश्चितता से बचाना होगा।