अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल में बढ़ोतरी, भूराजनीतिक तनाव में हो रहा इजाफा और अनिश्चित वैश्विक आर्थिक परिदृश्य अल्पावधि के जोखिम हैं लेकिन भारत ढांचागत तौर पर तेजी का बाजार बना हुआ है और मूल्यांकन अभी बुलबुले वाली श्रेणी के आसपास भी नहीं हैं।
बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई समिट में बाजार के दिग्गज भारतीयों का यही भरोसा देखने को मिला, जिन्होंने इस समिट को संबोधित किया।
मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज के चेयरमैन रामदेव अग्रवाल ने कहा, भारतीय कंपनी जगत ने इस तिमाही के दौरान लाभ में 30 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की है जबकि 25 फीसदी की बढ़त का अनुमान था।
भारत की वृद्धि बाजार के अनुमान के मुकाबले 3-4 फीसदी ज्यादा है। यह बड़ा बदलाव है। पहले आमराय वाली वृद्धि 25 फीसदी हुआ करती थी और वास्तविक वृद्धि 10 से 12 फीसदी। यह अलग चक्र है जहां आय में अपग्रेड हो रहा है। यहां चुनौतियां हैं मसलन विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की बिकवाली।
हालांकि अभी मेरा मानना है कि अगले चार साल में इंडेक्स दोगुना हो सकता है और अगले 10 साल में चार गुना। उन्होंने कहा कि बाजार आय वृद्धि पर नजदीकी नजर रखेगा।
मॉर्गन स्टैनली के प्रबंध निदेशक (भारत) रिधम देसाई ने कहा, आर्थिक स्थिरता के लिहाज से भारतीय अर्थव्यवस्था ने काफी प्रगति की है, जिसने देसी बाजारों को वैश्विक अवरोधों से जूझने के मामले में ज्यादा सुदृढ़ बना दिया है।
देसाई ने कहा, फेड ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी साल 1980 के बाद सबसे तेज रफ्तार से की है, लेकिन इसने भारत पर कोई असर नहीं डाला है। साल 2013 में फेड ने आर्थिक प्रोत्साहन की वापसी की बात कही तो भारतीय शेयरों में 20 फीसदी की गिरावट देखने को मिली थी।
उन्होंने कहा, वैश्विक ब्याज दर को लेकर भारत की प्रतिक्रिया में होने वाला बदलाव आर्थिक स्थिरता का परिणाम है, जो चालू खाते के घाटे में कमी, निर्यात में गिरावट आदि के कारण संभव हुआ है।
अवेंडस कैपिटल ऑल्टरनेट स्ट्रैटजीज के सीईओ एंड्यू हॉलैंड ने भी कहा कि भारत अच्छी स्थिति में है, लेकिन यह भी कहा कि हम विश्व में हो रहे घटनाक्रम से अप्रभावित नहीं रह सकते।
उन्होंने कहा, हम असमंजस वाली ऐसी दुनिया में हैं जहां अमेरिका में बॉन्ड का प्रतिफल ऊंचा है, तेल की कीमतें ज्यादा हैं और इजरायल व हमास के बीच युद्ध चल रहा है। ये सभी चीजें वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर डालेगी। साथ ही अमेरिका में ब्याज दरें काफी तेजी से बढ़ी है। अनायास पड़ने वाले इसके असर का साने आना अभी बाकी है, जो वैश्विक झटकों की अगुआई कर सकता है। भारत हालांकि अन्य वैश्विक बाजारों के मुकाबले कम लुढ़क सकता है।
3पी इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के सीआईओ प्रशांत जैन ने कहा कि आम चुनाव उतारचढ़ाव का स्रोत हो सकता है, लेकिन अच्छी बात यह है कि सभी सरकारों ने सुधार की प्रक्रिया जारी रखी है।
उन्होंने कहा, पिछले दशक में भारत ने सालाना 6 फीसदी की वृद्धि दर्ज की है, लेकिन मौजूदा व अगले दशक में इसमें ज्यादा वृद्धि हासिल करने की क्षमता है, शायद 7-8 फीसदी। अल्पावधि में हमेशा अनिश्चितता होती है लेकिन आय में बढ़त के अनुमान को देखें तो मूल्यांकन उचित नजर आ रहा है। विगत में भारत पर तेजी का नजरिया रखने का हमेशा ही मध्यम से लंबी अवधि में लाभ मिला है। साथ ही भविष्य में ही ऐसा ही होगा।
डेट आकर्षक है या इक्विटी, इस बहस में जैन ने कहा कि दोनों ही हमारे पोर्टफोलियो में रहने का हकदार है और वैयक्तिक जोखिम की स्वाभाविक इच्छा इन दोनों के मिश्रण से तय होनी चाहिए।
उन्होंने कहा, लंबी अवधि का निवेश इक्विटी में जाना चाहिए लेकिन इसमें उतारचढ़ाव को बर्दाश्त करने की क्षमता भी होनी चाहिए।
हॉलैंड ने कहा, हम इस समय डेट को प्राथमिकता देंगे और जब ब्याज दरें गिरेगी तो वह इस रकम को इक्विटी में ले जाएंगे यानी शॉर्ट टर्म डेट और लॉन्ग टर्म इक्विटी।
देसाई ने कहा कि लंबी अवधि के लिहाज से इक्विटी हमेशा ही उम्दा प्रदर्शन करता है। लंबी अवधि में इक्विटी सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला परिसंपत्ति वर्ग है। लेकिन यहां काफी अनिश्चितता है क्योंकि अगले 12 महीने में इक्विटी में काफी उतारचढ़ाव होगा। आपके पास इस जोखिम को संभालने की क्षमता होनी चाहिए।
अग्रवाल ने कहा, विकसित दुनिया के डेट बाजारों में रिटर्न में नाटकीय बदलाव हुआ है और यह शून्य से 5 फीसदी पर चला गया है, लेकिन भारत में ब्याज दरें इतनी नहीं बढ़ी है और वास्तविक दरें उतनी ऊंची नहीं है क्योंकि महंगाई 5 फीसदी से ज्यादा है।