पिछले वित्त वर्ष के दौरान देश के 32 सूचीबद्ध निजी और सरकारी बैंकों (PSB) का संयुक्त शुद्ध लाभ 40.56 प्रतिशत बढ़कर 2.29 लाख करोड़ रुपये के स्तर के करीब पहुंच गया। इसके साथ ही निजी और सरकारी बैंकों का शुद्ध मुनाफा 1 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया और कुछ ने अब तक का सबसे अधिक शुद्ध लाभ दर्ज किया था।
चालू वित्त वर्ष की जून तिमाही के दौरान भी सूचीबद्ध बैंकों का अच्छा प्रदर्शन जारी रहा और तिमाही आधार पर इनका सालाना शुद्ध लाभ 68.5 प्रतिशत बढ़कर 73,620 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया। उस वक्त से पीछे मुड़कर देखने की कोई संभावनाएं नहीं बनी हैं।
वित्त वर्ष 2024 की सितंबर तिमाही में इन बैंकों का सामूहिक शुद्ध लाभ 77,587 करोड़ रुपये था जिसमें सालाना 33.51 प्रतिशत की तेजी आई थी और चालू वर्ष की पहली छमाही का शुद्ध लाभ 1.51 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया।
एक पुराने निजी बैंक (कर्नाटक बैंक लिमिटेड) और दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पंजाब ऐंड सिंध बैंक और यूको बैंक) को छोड़कर, सभी बैंकों ने जून तिमाही के सालाना मुनाफे में वृद्धि दर्ज की है।
पंजाब नैशनल बैंक (PNB) ने पहले के कम आधार के बलबूते 327 फीसदी और बंधन बैंक लिमिटेड ने 244 फीसदी की वृद्धि दर्ज की है। इस तिमाही के दौरान 20 सूचीबद्ध निजी बैंकों का शुद्ध लाभ 35.51 प्रतिशत और 12 सरकारी बैंकों का शुद्ध लाभ 31 प्रतिशत तक बढ़ा है।
शुद्ध लाभ के लिहाज से देखें तो एचडीएफसी बैंक लिमिटेड का शुद्ध लाभ सबसे अधिक 15,976 करोड़ रुपये रहा है। इसके बाद देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक ( 14,330 करोड़ रुपये) और आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड ( 10,261 करोड़ रुपये) का स्थान रहा।
इन बड़े बैंकों के अलावा ऐक्सिस बैंक लिमिटेड ( 5,864 करोड़ रुपये), केनरा बैंक ( 3,606 करोड़ रुपये), यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ( 3,511 करोड़ रुपये) और कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड ( 3,191 करोड़ रुपये) ने भी बड़ा शुद्ध लाभ दर्ज किया है।
हालांकि, बैंक के परिचालन लाभ में वृद्धि, शुद्ध मुनाफे की वृद्धि के अनुरूप नहीं है। उदाहरण के तौर पर पीएनबी के परिचालन लाभ में 11.66 प्रतिशत और बंधन बैंक में महज 1.96 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
वास्तव में, पांच निजी बैंकों और चार सरकारी बैंकों ने परिचालन लाभ में कमी की जानकारी दी है। कुल मिलाकर सभी सूचीबद्ध बैंकों का परिचालन लाभ 12.53 प्रतिशत बढ़ा है जो शुद्ध लाभ में वृद्धि का एक-तिहाई भी नहीं है।
इसमें महत्त्वपूर्ण बात क्या है? दरअसल, शुद्ध ब्याज आमदनी या एनआईआई (मोटे तौर पर, बैंक जमाकर्ताओं को किए जाने वाले भुगतान और ऋण लेने वालों से होने वाली कमाई का अंतर है) के साथ-साथ बैंकों की शुल्क आमदनी में वृद्धि हुई है। लेकिन शुद्ध मुनाफे की वृद्धि में सबसे ज्यादा योगदान प्रावधान और आकस्मिक मद में किए जाने वाले खर्च में आई तेज गिरावट का है।
कुल मिलाकर, बैंकिंग उद्योग के लिए प्रावधानों और आकस्मिक मद में खर्च की जाने वाली राशि में करीब 32.42 प्रतिशत की कमी आई है और यह 35,414 करोड़ रुपये के बजाय अब 23,932 करोड़ रुपये हो गया है। 32 सूचीबद्ध बैंकों में से केवल सात (चार निजी बैंक और तीन सरकारी बैंक) के प्रावधान और आकस्मिक मद की राशि में बढ़ोतरी देखी गई है।
तीन बैंकों (पंजाब ऐंड सिंध बैंक, सिटी यूनियन बैंक और यस बैंक) को छोड़कर, अन्य सभी ने अपने एनआईआई में वृद्धि दर्ज की है, जिसमें आईडीएफसी फर्स्ट बैंक लिमिटेड (31.58 प्रतिशत) और एचडीएफसी बैंक (30.27 प्रतिशत) अव्वल स्थान पर हैं। जिन अन्य सूचीबद्ध बैंकों के एनआईआई में कम से कम 20 प्रतिशत या उससे अधिक की वृद्धि दिखी है और इनमें बैंक ऑफ महाराष्ट्र, आरबीएल बैंक लिमिटेड, आईसीआईसीआई बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, इंडियन बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक शामिल हैं।
सामूहिक तौर पर निजी बैंकों का एनआईआई 22.05 प्रतिशत बढ़ा है जबकि सरकारी बैंकों के एनआईआई में 13.47 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
प्रावधानों में कमी आना वास्तव में एक स्वस्थ बैंकिंग प्रणाली का संकेत है। लगभग हर बैंक की कुल परिसंपत्तियों में इनकी शुद्ध गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) की हिस्सेदारी कम हो गई है। इस लिहाज से बंधन बैंक ही एक अपवाद है। इसका शुद्ध एनपीए सितंबर 2022 के 1.86 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2023 में 2.32 प्रतिशत हो गया है। एकमात्र अन्य निजी बैंक सिटी यूनियन बैंक है जिसका शुद्ध एनपीए 2 प्रतिशत से अधिक है।
आप इस बात पर यकीन करें या न करें लेकिन 32 सूचीबद्ध बैंकों में से 21 बैंकों में 1 प्रतिशत से कम एनपीए है और 9 में एक प्रतिशत से अधिक फंसे कर्ज हैं जबकि दो बैंकों में करीब दो फीसदी से अधिक फंसे कर्ज हैं।
निजी बैंकों में एचडीएफसी बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, आईडीबीआई बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, कैथोलिक सीरियन बैंक, ऐक्सिस बैंक और करूर वैश्य बैंक का शुद्ध एनपीए आधा प्रतिशत से भी कम है जबकि सरकारी बैंकों में बैंक ऑफ महाराष्ट्र का एनपीए एक-चौथाई प्रतिशत से भी कम है। ज्यादातर बैंकों के शुद्ध एनपीए का स्तर एक दशक या उससे भी ज्यादा समय में सबसे कम रहा है।
हालांकि कम से कम चार सरकारी बैंकों का सकल एनपीए 5 प्रतिशत से अधिक लेकिन 7 प्रतिशत से कम रहा है वहीं पांच सरकारी बैंकों में 4 प्रतिशत से अधिक सकल एनपीए है। इस तरह कुल मिलाकर सरकारी बैंकों का सकल एनपीए बड़े निजी बैंकों की तुलना में अधिक है।
ये आंकड़े बैंकिंग क्षेत्र की बेहतर तस्वीर को बयां करते हैं लेकिन अधिकांश बैंकों के चालू और बचत खाते (कासा) की कम लागत वाली जमाओं में कमी है जिसके चलते कुछ बैंकों के शुद्ध ब्याज मार्जिन में कमी आई है। सभी सूचीबद्ध बैंकों में, जम्मू ऐंड कश्मीर बैंक का शुद्ध ब्याज मार्जिन सबसे कम (1.02 प्रतिशत) है।
बैंक ऑफ बड़ौदा को छोड़कर सभी सूचीबद्ध बैंकों के कासा में कमी दिख रही है। इनमें से कई में तेज गिरावट देखी गई है। एचडीएफसी लिमिटेड का विलय बैंक में होने के बाद एचडीएफसी बैंक के लिए यह गिरावट 7.4 प्रतिशत अंक है। सितंबर में बैंक ऑफ बड़ौदा का कासा 39.88 फीसदी था।
दरअसल, बैंकों के लिए चिंता का विषय यह है कि बचतकर्ता अब सावधि जमाओं और अन्य निवेश विकल्पों जैसे इक्विटी और म्युचुअल फंड की ओर ध्यान दे रहे हैं। इसकी वजह से बैंकों की चालू और बचत खाता जमाओं में कमी आ रही है।
बैंक अब कर्ज देने की बढ़ती रफ्तार के अनुरूप ही अधिक ब्याज दरों की पेशकश के साथ जमाओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं जिसके चलते उनकी ब्याज आमदनी कम हो रही है। यह रुझान जारी रहने का अनुमान है, जिससे मुनाफे के मार्जिन पर दबाव बढ़ेगा।
इसके अलावा, कुछ बैंकों ने बिना गारंटी वाले जो ऋण दिए हैं उनकी गुणवत्ता भी चिंताजनक है। फिलहाल कोई बड़ी चिंता की बात नहीं है लेकिन आने वाले समय में तस्वीर बदल सकती है। एक और अहम बात यह है कि निवेशकों में निजी और सरकारी बैंकों के शेयरों में तेजी से निवेश करने का आकर्षण बढ़ा है। हालांकि, यह बिल्कुल अलग मुद्दा है।