बीता वर्ष एक ऐसा दु:स्वप्न था जिसे भूल जाना ही बेहतर है। नया वर्ष निवेशकों के लिए मजबूती के साथ आरंभ हुआ लेकिन निजी बाजारों को अभी भी काफी खुलना है। बता रहे हैं आकाश प्रकाश-
भारतीय निवेशकों ने यही सुना कि वर्ष 2022 वैश्विक निवेशकों के लिए बहुत कठिनाई भरा साल था लेकिन उनमें से ज्यादातर को वैश्विक संपदा को इस कदर हुई हानि रास नहीं आई होगी। आखिरकार भारत ने शेयर बाजारों में स्थानीय मुद्रा में लगातार सातवें वर्ष सकारात्मक प्रतिफल हासिल किया। डॉलर के संदर्भ में अवश्य यह 8.6 फीसदी ऋणात्मक रहा। भारतीय बाजार अपने अब तक के उच्चतम स्तर से भी ज्यादा दूर नहीं हैं।
बहरहाल, वैश्विक निवेशकों के लिए 2022 एक ऐसा बुरा सपना था जिसे वे भूल जाना चाहेंगे। पूरे वर्ष के दौरान वैश्विक शेयरों, बॉन्ड और क्रिप्टो परिसंपत्तियों में कुल मिलाकर अपने उच्चतम स्तर से 26 लाख करोड़ डॉलर की गिरावट आई। यह वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में 26 फीसदी की गिरावट है और इस गिरावट का अधिकांश हिस्सा 2022 में देखने को मिला। टेस्ला, बिटकॉइन, मेटा और एआरकेके इनोवेशन फंड सभी में 65 फीसदी की गिरावट देखने को मिली। बिना मुनाफे वाली प्रौद्योगिकी कंपनियों की स्थिति और खराब रही। यह वर्ष इतना खराब रहा कि अमेरिका में केवल एक क्षेत्र ने 5 फीसदी की तेजी दर्ज की और वह था ऊर्जा क्षेत्र। अन्य सभी प्रमुख क्षेत्र इस वर्ष गिरावट में रहे।
हमने इससे पहले भी ऐसी परिस्थितियां देखी हैं। 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट और 2000 में डॉट कॉम के बुलबुले को हम फूटते देख चुके हैं। उस समय भी वित्तीय और तकनीकी शेयरों में ऐसी ही गिरावट आई थी। बहरहाल, 2022 को जो बात अलग बनाती है वह है बॉन्ड और शेयर बाजारों में एक साथ गिरावट। यह इकलौता वर्ष है जब एसऐंडपी 500 और 10 वर्ष के अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड दोनों ने 10 फीसदी का ऋणात्मक प्रतिफल यानी घाटा दिया। इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। एसऐंडपी 500 में 20 फीसदी से अधिक गिरावट के दो हालिया मामलों में यानी 2002 और 2008 में बॉन्ड ने हर बार 15 फीसदी से अधिक का धनात्मक प्रतिफल दिया था। उन्होंने शेयरों के नुकसान की भरपाई कर दी और नकदी मुहैया कराकर पुनर्संतुलन कायम किया।
अमेरिका के 10 वर्ष के ट्रेजरी बॉन्ड का प्रदर्शन सन 1788 के बाद का सबसे खराब प्रदर्शन था और उसमें 15 फीसदी से अधिक की गिरावट आई।
यूरोपियन सॉवरिन बॉन्ड का प्रदर्शन तो और भी खराब रहा और उसमें 30 फीसदी से अधिक की गिरावट आई। इससे यही पता चलता है कि निवेशक मुद्रास्फीति को लेकर आश्वस्त थे और उन्होंने उसके अस्थायी होने की बात पर कुछ ज्यादा समय तक यकीन किया। 2022 के आरंभ में फेड फंड फ्यूचर का अनुमान था कि जून 2023 तक फेड फंड की दर 1 फीसदी रहेगी लेकिन आज यह 5 फीसदी है। इससे पता चलता है कि अपेक्षाओं में कितना बदलाव आया है। 10 वर्ष के बॉन्ड में 2022 में 200 आधार अंकों का तेज इजाफा हुआ। बॉन्ड हों या शेयर, दीर्घकालिक परिसंपत्तियों पर काफी बुरा असर हुआ। बढ़ते प्रतिफल के साथ ही बाजार की मुनाफा रहित नवाचार का मूल्यांकन करने की इच्छा की भी परख हुई।
2020 में जारी ऑस्ट्रिया के 100 वर्ष के बॉन्ड की कीमत उच्चतम स्तर से 60 फीसदी कम हुई। बढ़ते प्रतिफल का एक और असर नकारात्मक प्रतिफल वाले कर्ज के अंत के रूप में नजर आया। सन 2021 में हम पर नकारात्मक प्रतिफल के साथ 18 लाख करोड़ डॉलर का कर्ज था। 2022 के आरंभ में भी यह आंकड़ा 8 लाख करोड़ डॉलर से अधिक था लेकिन आज यह शून्य है। दोबारा यह सब इस पैमाने पर नजर आने की संभावना बहुत कम है। यह पहला वर्ष था जब पहली बार दो अंकों में ऋणात्मक वृद्धि देखने को मिली। तयशुदा आय वाले बाजारों के लिए यह पूरे जीवनकाल में एक बार होने वाला सफाया था और इसका जोखिम लेने की भूख और परिसंपत्ति आवंटन पर दीर्घकालिक असर होगा।
शेयरों की हालत भी बहुत अच्छी नहीं थी। एसऐंडपी 500 के लिए यह दूसरे विश्वयुद्ध, वैश्विक वित्तीय संकट और डॉट कॉम का बुलबुला फूटने के बाद का सबसे बुरा प्रदर्शन था। वैल्यू स्टॉक (ऐसे शेयर जो अपेक्षित से कम मूल्य पर कारोबार कर रहे हों) में पांच फीसदी गिरावट आई जबकि ग्रोथ स्टॉक (वे कंपनियां जिनका शेयर मूल्य तेजी से बढ़ रहा हो) में 30 फीसदी की गिरावट आई। यानी 25 फीसदी के साथ 2000 के डॉट कॉम प्रकरण के बाद 25 फीसदी का सबसे बड़ा धनात्मक मूल्य तैयार हुआ। उस समय मूल्य रणनीतियों की नए सिरे से शुरुआत हुई और अगले छह सालों में से पांच साल उन्होंने बेमिसाल प्रदर्शन किया। कई आवंटकों का दावा है कि आने वाले वर्षों में मूल्य में भी ऐसा ही सुधार देखने को मिलेगा।
यह सवाल लगातार बना हुआ है कि विदेशी पूंजी भारत से बाहर क्यों जा रही है और क्या बिकवाली का यह सिलसिला 2023 में भी जारी रहेगा? मुझे लगता है कि अधिकांश लोगों को यह अहसास नहीं कि 2022 में वैश्विक निवेशकों के पोर्टफोलियो को कितनी क्षति पहुंची। भारत की स्थिति बीते कुछ वर्षों में अन्य उभरते बाजारों से बेहतर रही है। भारत का मूल्यांकन काफी अच्छा है। अधिकांश वैश्विक आवंटकों को नकदी की आवश्यकता है क्योंकि उनके निजी फंड के वितरकों की पूंजी बाजार में गतिविधियां कमजोर हुई हैं और नई फंड प्रतिबद्धताएं घटते मूल्यांकन का लाभ लेने का प्रयास कर रही हैं। जरूरत के वक्त आप महंगी और बिकने योग्य चीजें बेच देंगे। भारत दोनों मानकों पर खरा उतरता है।
अधिकांश निवेशक इस स्थिति में नहीं हैं कि वे चीन में एक और कमजोर प्रदर्शन वाले वर्ष को झेल सकें। ऐसे में चीन के बाजारों में जो तेजी आ रही है उसके लिए फंड का स्रोत भारत ही बना हुआ है।
बीते वर्ष के साथ एक युग का अंत हुआ। युद्ध के दौर को छोड़ दिया जाए तो दुनिया भर में मौद्रिक और राजकोषीय प्रोत्साहन का सबसे बड़ा दौर समाप्त हुआ। सभी निवेशकों को नीतिगत व्यवस्था में सामान्यीकरण के साथ समायोजन करना पड़ा। इससे बाजार नेतृत्व में बदलाव आएगा और हम फिलहाल मूल्यांकन समायोजन के बीच में हैं। हमें शुरुआती सिद्धांत की ओर वापस जाना होगा कि हम वित्तीय परिसंपत्तियों के लिए क्यों और कितना भुगतान करना चाहेंगे?
चीन, यूरोप और उत्तरी एशिया के नेतृत्व में 2023 की मजबूत शुरुआत हुई है। आशा है यह गति बरकरार रहेगी। बहरहाल अधिकांश निजी बाजारों में मूल्य समायोजन अब भी अधूरा है। जबकि सार्वजनिक बाजारों में तीव्र सुधार के कारण हम मूल्यांकन में कमी के अंत की ओर पहुंच चुके हैं। मेरे विचार में निजी बाजारों में अभी भी कुछ हलचल होनी है।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)