इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने प्रस्तावित डिजिटल इंडिया विधेयक पर सार्वजनिक परामर्श के दौरान पेश की गई अपनी रिपोर्ट आज जारी की, जिसमें ऑनलाइन दिवानी और आपराधिक अपराधों के लिए एक विशेष और समर्पित निर्णायक तंत्र की तत्काल आवश्यकता को चिह्नित किया गया है।
सरकार ने डिजिटल इंडिया विधेयक का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया तेज कर दी है, जो आधुनिक समय के इंटरनेट द्वारा पैदा की गई नई चुनौतियों पर ध्यान देते हुए देश के प्राथमिक डिजिटल कानून सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000 का स्थान लेगा।
आगामी विधेयक के व्यापक सिद्धांतों को रेखांकित करने वाले इस दस्तावेज में कहा गया है कि आईटी अधिनियम में जागरूकता निर्माण के लिए किसी संस्थागत तंत्र के बिना हानियों और साइबर अपराधों के नए रूपों की पहचान के संबंध में कई सीमाएं हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 22 साल पुराने अधिनियम में हानिकारक और अवैध सामग्री के लिए स्पष्ट नियामकीय दृष्टिकोण और उपयोगकर्ता के अधिकारों, विश्वास और सुरक्षा के संबंध में व्यापक प्रावधानों का अभाव है।
नए प्रकार के साइबर अपराधों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए सरकार डीआईए के अधिनियमन के समानांतर आईपीसी और सीआरपीसी में संशोधन कर सकती है।
रिपोर्ट के अनुसार जवाबदेह इंटरनेट के लिए एक प्रभावी उपयुक्त प्रशासनिक संरचना, समर्पित जांच एजेंसी और विशेष विवाद समाधान या अधिनिर्णय ढांचे के साथ ‘एक एकीकृत, समन्वित, कुशल और उत्तरदायी’ प्रशासन के लिए संपूर्ण सरकार की प्रतिक्रिया की आवश्यकता थी।
इसमें कहा गया है कि यह डिजिटल ऑपरेटरों के लिए सहायक और अपीलीय तंत्र, अद्यतन मध्यस्थ ढांचे और महत्त्वपूर्ण डिजिटल परिचालकों के संबंध में दायित्वों को वर्गीकृत करके या नई अनिवार्यता बनाकर प्राप्त किया जाना चाहिए।