सरकार वाहन चालकों के लिए सिबिल जैसी रेटिंग के लिए एक प्रायोगिक परियोजना शुरू कर रही है, जिससे यह पता चल सके कि चालक कितने सुरक्षित तरीके से वाहन चलाते हैं।
इस कार्यक्रम के तहत बीमा कंपनियों को चालकों की रेटिंग प्रदान की जाएगी, ताकि वे वाहन बीमा के प्रीमियम पर छूट दे सकें। स्कोर अधिक होने पर प्रीमियम की रकम कम हो जाएगी और कम होने पर अधिक। मूल उपकरण विनिर्माताओं (ओईएम) को भी यह रेटिंग प्रदान की जाएगी ताकि वे अपने ग्राहकों को विशेष प्रोत्साहन दे सकें।
इसके दायरे में आने वाले लाइसेंस धारक चालकों में दोपहिया, तिपहिया और साथ ही यात्री कार, बसें और अन्य वाणिज्यिक वाहन सहित चार पहिया वाहन शामिल हैं। इनमें आईसीई के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहन भी शामिल होंगे।
सिबिल रेटिंग वर्तमान में किसी व्यक्ति की साख का निर्धारण करती है, जिसका उपयोग बैंकों और एनबीएफसी द्वारा आवास से लेकर घरेलू उत्पादों तक के सभी खंडों में उपभोक्ताओं को ऋण देने के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है। ड्राइवर रेटिंग कमोबेश इसी तरह के मॉडल को दोहराएगी।
यह कार्यक्रम ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ईओडीबी) की निगरानी में चलाया जा रहा है, जो विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) में सरकार की टेक पायलटिंग एजेंसी है। इसने अखिलेश श्रीवास्तव के नेतृत्व सड़क सुरक्षा अभियान का दूसरा चरण चलाया था।
श्रीवास्तव ईओडीबी के अंतर्गत नैशनल हाईवे फॉर इलेक्ट्रक व्हीकल नॉलेज ग्रुप के प्रमुख सदस्य हैं। परीक्षण के तौर पर शुरू की गई इस परियोजना के सफल रहने पर इसे देश भर में लागू किया जाएगा।
डब्ल्यूईएफ कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य प्रौद्योगिकी का उपयोग करना है और इससे सड़क सुरक्षा के निराशाजनक रिकॉर्ड में काफी सुधार हो सकता है। विश्व सड़क सुरक्षा रिपोर्ट 2018 के अनुसार भारत सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में 199 देशों में पहले स्थान पर है।
ईओडीबी के राष्ट्रीय कार्यक्रम निदेशक अभिजित सिन्हा कहते हैं, ‘यह विचार देश में सुरक्षित ड्राइविंग को प्रोत्साहित करना है और हम विभिन्न आंकड़ों के आधार पर उनके लिए सिबिल जैसी रेटिंग बनाकर ऐसा कर सकते हैं। उदाहरण के लिए यह बीमा कंपनियों और ओईएम के लिए बहुमूल्य जानकारी हो सकती है। निश्चित रूप से इसके लिए ओईएम को भी भूमिका निभाने की आवश्यकता होगी।’
परीक्षण के तौर पर शुरू की गई परियोजना प्राप्त करने के तौर-तरीकों पर अभी भी काम किया जा रहा है। सिन्हा का कहना है कि एक ड्राइवर कैसा प्रदर्शन कर रहा है, इसके बारे में डेटा विभिन्न स्रोतों से एकत्र किया जाएगा। इनमें लाइसेंसी के खिलाफ चालान का सरकारी रिकॉर्ड, वाहनों की आवाजाही के बारे में उन सड़कों का डेटा शामिल है जहां कैमरा लगा हुआ है।
हालांकि ओईएम को भी इस योजना में शामिल करना होगा। सिन्हा कहते हैं कि वाहनों को ड्राइविंग डेटा एकत्र करने के लिए सेंसर स्थापित करने की आवश्यकता होगी- जो वाहन के लिए एक छोटी सी लागत जोड़ सकता है।
इसके लिए एक एडवांस ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम (एडीएएस) की आवश्यकता होगी जो अनिवार्य रूप से न केवल ड्राइवर को सड़कों पर बातचीत करने में सहायता करता है बल्कि पहियों पर व्यक्ति की तस्वीरें भी लेता है। विचार यह सुनिश्चित करने के लिए है कि वह पहिया पर लाइसेंस दस्तावेज़ पर व्यक्ति के रूप में मान्य है।
ये प्रणालियां इलेक्ट्रिक वाहनों पर मानक हैं, हो सकता है कि वे आईसीई वाहनों के मामले में न हों। हालांकि कई यात्री कारें जो अभी भी पेट्रोल और डीजल पर चलती हैं उन्होंने भी तकनीक को शामिल किया है और अपने मॉडलों में सेंसर लगाए हैं।