उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि शीर्ष भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनियों द्वारा वित्त वर्ष 2022-23 में हाल में कॉलेज की पढ़ाई करने वाले फ्रेशर्स की नियुक्ति में देरी करने के फैसले से इस साल अपनी डिग्री पूरी करने वाले छात्रों के लिए रोजगार के रुझान नकारात्मक दिख सकते हैं।
हाल ही में विप्रो ने उन उम्मीदवारों से वेतन में कटौती करने को कहा है, जिनका चयन कंपनी ने कर लिया था लेकिन उनकी अभी नियुक्ति नहीं हुई है। इसकी वजह यह है कि उनकी श्रेणी की परियोजनाएं तत्काल उपलब्ध नहीं हैं। उद्योग में शायद ऐसा पहली बार हो रहा है।
इन्फोसिस के पूर्व मुख्य वित्तीय अधिकारी मोहनदास पई ने कहा, ‘नियुक्तियों की तारीख एक या दो महीने के लिए आगे बढ़ाना समझ में आता है, लेकिन कंपनियों को अब फ्रेशर्स की नियुक्ति करनी चाहिए और उन्हें अपने वादे के मुताबिक मुआवजा देना चाहिए। नैतिक रूप से ऐसी देरी बहुत गलत है।’
उन्होंने आगे कहा, ‘पहले भी प्रक्रिया स्थगित होती रही है लेकिन यह मांग में अचानक कमी आने के कारण होता था और कंपनियों ने बाद में भर्ती प्रक्रिया पूरी करके अपना वादा निभाया था। हालांकि आज स्थिति अलग है क्योंकि सभी कंपनियां भारी मुनाफा कमा रही हैं और अब वे इतनी बड़ी हैं, मुझे नहीं लगता कि एक हजार लोगों की नौकरी शुरू होने के कारण उन पर कोई बड़ा प्रभाव पड़ेगा। विशेषज्ञों ने बताया कि इन शीर्ष चार भारतीय आईटी कंपनियों के लिए फ्रेशर्स को नौकरी देने की लागत कोई ज्यादा नहीं होती है।
एचआर विशेषज्ञों का कहना है कि एक दशक से अधिक समय से ही फ्रेशर स्तर की इंजीनियरिंग नौकरियों से जुड़ा वेतन 3.5-4 लाख रुपये पर ही स्थिर है। बेशक, भारतीय आईटी कंपनियां इस स्तर के उन छात्रों की अलग-अलग भर्ती करती हैं, जिनके पास अतिरिक्त प्रमाणपत्र होता है या जिन्होंने असाधारण तरीके से अधिक स्कोर हासिल किया है और ऐसे छात्रों का वेतन 6 लाख रुपये से 10 लाख रुपये के बीच होता है। हालांकि, इस श्रेणी में भर्ती के आंकड़े अब भी बहुत कम हैं।
विशेषज्ञ स्टाफिंग सॉल्यूशंस कंपनी एक्सफेनो के सह-संस्थापक कमल कारंत ने कहा, ‘हमने पहले भी दो स्थितियां देखी हैं जिसमें कंपनियां प्रस्ताव रद्द कर देती हैं या वे नौकरी के ऑफर को ही रद्द कर देती हैं। जहां तक मुझे याद है वेतन में कमी नहीं दिखी है। मार्जिन दबाव और ग्राहकों से कम मांग को देखते हुए, कंपनी मूल्य निर्धारण के आपूर्ति पक्ष को सही करने की कोशिश कर रही हैं। यह कम से कम दो तिमाहियों तक बना रहेगा जब तक कि मांग अनुपात में बदलाव नहीं होता है और वे इसका बेहतर उपयोग कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि चार से 10 साल के अनुभव के बीच कुशल प्रतिभा की मांग अधिक बनी हुई है। उन्होंने कहा, ‘इस वक्त प्रतिभाशाली लोगों तादाद बहुतायत में उपलब्ध है। फ्रेशर लोगों को नौकरियों की पेशकश करने के लिहाज से इस साल कैंपस की भर्ती की रफ्तार धीमी रहने वाली है। कंपनियां भी नए प्रतिभाशाली लोगों के लिए भुगतान की राशि में बदलाव ला रही हैं। इस साल नए फ्रेशर की भर्ती की लिहाज से मंदी का रुख छाया रहेगा।
उनके पास चार से 10 वर्षों के अनुभव वाली लक्जरी नहीं है, खासतौर पर एनालिटिक्स, पेगा, फुल स्टैक और अन्य डिजिटल कौशल में। विप्रो ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि उसे बदलते वृहद माहौल और इसके परिणामस्वरूप कारोबारी जरूरतों को देखते हुए अपनी योजनाओं में तालमेल बिठाना होगा।
करियरनेट के सह-संस्थापक और सीईओ अंशुमन दास ने कहा कि कंपनियां अपनी प्रतिबद्धता से पीछे हट रही हैं, जिससे आने वाले महीनों में और मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। लेकिन ये मुश्किलें छात्रों के लिए हैं। दास ने कहा, ‘पहली समस्या 2022 के बैच की नियुक्ति में हो रही देरी से जुड़ी है और उनके पास कई प्रस्ताव हैं। उन्हें जनवरी-फरवरी तक कंपनी की ओर से नियुक्ति नहीं दी गई है जो एक सामान्य प्रक्रिया है।
एक और बड़ी समस्या यह है कि इन सभी कंपनियों को 2023 में पास होने वाले स्नातकों के लिए परिसरों का दौरा करना है हालांकि कई कंपनियों के साथ ऐसा नहीं हुआ है। ऐसे में उनके साथ क्या होगा, यह उद्योग में बड़ी दिक्कत वाला क्षेत्र बन गया है।
तिमाही नतीजों के मुताबिक भारत की चार सबसे बड़ी आईटी सेवा प्रदाताओं ने वित्त वर्ष 2023 की तीसरी तिमाही में कुल मिलाकर 5,000 से कम कर्मचारियों को जोड़ा है। तिमाही के दौरान टीसीएस और विप्रो के शुद्ध कर्मचारियों की संख्या में गिरावट देखी गई। टीसीएस के कर्मचारियों की संख्या में 2,197 की कमी आई है, जबकि विप्रो के कर्मचारियों की संख्या में करीब 500 की गिरावट आई है।
दास ने कहा, ‘कंपनियां 2023 बैच के लिए नई प्रतिबद्धताएं बनाने में संकोच कर रही हैं और अगर यह स्थिति अक्टूबर-नवंबर तक जारी रहती है, तब इस साल के बैच को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। यह निश्चित रूप से एक बड़ी समस्या का संकेत देता है जो अगले छह महीनों से दिख रही है।’
विप्रो और इन्फोसिस ने कथित तौर पर आंतरिक मूल्यांकन में विफल रहने के बाद 2022 बैच के सैकड़ों फ्रेशर्स को निकाल दिया है। भारतीय आईटी उद्योग ने मांग में अचानक बदलाव के कारण कंपनियों ने भर्ती में देरी की है और विशेषज्ञों का कहना है कि नौकरी के प्रस्तावों में संशोधन करना एक असामान्य स्थिति है।