इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के डेटा सेंटर (डीसी) क्षेत्र में अगले 5 से 7 वर्षों में 1.6 लाख करोड़ रुपये से लेकर 2 लाख करोड़ रुपये तक का निवेश होने का अनुमान है। डेटा सेंटर की क्षमताओं की मांग का इसकी आपूर्ति में वृद्धि के साथ तालमेल रह सकता है। इससे ऑक्युपेंसी और किराये की दरों में स्थिर से मध्यम वृद्धि होगी।
डेटा सेंटर कंपनियों ने 7.1 गीगावॉट की नई क्षमता वृद्धि की घोषणा की है। लेकिन इसका लगभग 60 फीसदी अभी भी शुरुआती अवस्था में है जिसमें 1.3 गीगावॉट क्षमताएं कार्यान्वयन के चरण में हैं और अतिरिक्त 1.6 गीगावॉट योजना ते स्तर पर है।
वित्त वर्ष 26-28 के दौरान क्षमता वृद्धि 300-350 मेगावॉट सालाना बढ़ने का अनुमान है जबकि वित्त वर्ष 22-25 के दौरान क्षमता वृद्धि की रफ्तार 150-250 मेगावॉट सालाना होगी। इस प्रकार वित्त वर्ष 28 तक कुल डेटा सेंटर क्षमता 2.4 गीगावॉट तक पहुंच जाएगी। वित्त वर्ष 25 तक यह क्षमता 1.3 गीगावॉट थी।
एक डेटा सेंटर की कुल पूंजीगत लागत 50 से 70 करोड़ रुपये प्रति सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) मेगावॉट आती है। इसमें भूमि और एमएस/क्लाउड का पूंजीगत व्यय शामिल नहीं है। डेटा सेंटर के कुल पूंजीगत व्यय में रियल एस्टेट का हिस्सा 20 फीसदी होता है जबकि बाकी हिस्सा मैकेनिकल इंजीनियरिंग, प्लंबिंग आदि पर खर्च का है। वित्त वर्ष 21-25 के दौरान कुल पूंजीगत व्यय मुद्रास्फीति 5 से 10 फीसदी सालाना चक्रवृद्धि की दर (सीएजीआर) से बढ़ी।
इंडिया रेटिंग एजेंसी के लार्ज कॉरपोरेट्स के निदेशक प्रशांत तरवाड़ी के अनुसार आगे चलकर किराये में सालाना 3 से 5 फीसदी की वृद्धि का अनुमान है। इस बीच, पूंजीगत व्यय मुद्रास्फीति 5-6 फीसदी के आसपास रहने की संभावना है, बशर्ते कि आपूर्ति श्रृंखला में कोई बाधा या भू-राजनीतिक तनाव पैदा न हो।
तरवाड़ी ने कहा, गूगल और एमेजॉन जैसी हाइपर-स्केलर कंपनियां प्रति किलोवाट प्रति घंटा प्रति माह 75 से 85 अमेरिकी डॉलर के बीच भुगतान कर रही हैं। एक एंटरप्राइज़ ग्राहक के लिए यह प्रति किलोवाट प्रति घंटा प्रति माह 95 से 125 अमेरिकी डॉलर के बीच हो सकता है।