भारत अब कारों के निर्यात के लिए आकर्षक विनिर्माण गंतव्य नहीं रह गया है। स्कोडा ऑटो फोक्सवैगन इंडिया के प्रबंध निदेशक गुरप्रताप एस बोपाराई ने कहा कि भारत द्वारा निर्यात की जाने वाली कारों पर शुल्क और घरेलू बाजार में उनकी लंबाई के आधार पर शुल्क संरचना के अंतर की वजह से ऐसा है। वह स्कोडा स्लाविया के अनावरण से इतर बात कर रहे थे। इंडिया 2.0 रणनीतिक का यह दूसरा मॉडल – मध्य आकार की महंगी सिडैन होंडा सिटी, सुजूकी सियाज और हुंडई वेरना को टक्कर देगी तथा वर्ष 2022 की पहली तिमाही में इसकी बिक्री शुरू होगी।
स्कोडा का लक्ष्य 2,500 से 3,000 इकाइयों की मासिक बिक्री के साथ इस खंड का नेतृत्व करना है। स्कोडा ऑटो इंडिया के निदेशक (बिक्री और विपणन) जैक हॉलिस ने कहा कि हमारे पास 20,000 इकाइयों की बुकिंग है और हम कुशाक के दम पर अपनी बिक्री सालाना आधार पर दोगुना करने में सक्षम रहे हैं।
स्कोडा ऑटो को कम आधार पर अक्टूबर 2021 के दौरान अपनी बिक्री में पिछले साल की तुलना में 116 प्रतिशत इजाफे के साथ 3,065 इकाई की उछाल नजर आई है, जो वर्ष 2020 में 1,421 इकाई थी। अब यह निर्यात के लिए कमर कस रही है। हालांकि निर्यात की मात्रा अन्य कारणों के साथ-साथ आयात करने वाले देशों द्वारा लगाए गए शुल्कों के मद्देनजर मांग पर निर्भर करेगी और यह सीमित भी रह सकती है। बोपाराई ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि दुनिया भर में ऐसे बाजार ज्यादा नहीं हैं, जो कारों को बिना शुल्क के अनुमति प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि इस संबंध में सबसे ऊपर घरेलू बाजार में विभिन्नता वाली शुल्क संरचना का होना है।
वर्ष 2015 से पहले भारत यूरोपीय संघ (ईयू) को बिना किसी शुल्क के निर्यात कर सकता था। लेकिन वर्ष 2015 के बाद से यूरोपीय संघ ने भारत से आयातित यात्री वाहनों पर 10 प्रतिशत शुल्क लगाना शुरू कर दिया। इसके अलावा लॉजिस्टिक्स सहित खेप उतारने की लागत 10 प्रतिशत से अधिक है। इसने भारत से आयात को गैरप्रतिस्पर्धी बना दिया। बोपाराई ने कहा कि इसका मतलब यह है कि अगर किसी कंपनी का यूरोपीय संघ में संयंत्र हो, तो भारत से आयात की तुलना में वहां निर्माण करना सस्ता पड़ता है। नतीजतन कई वैश्विक कार विनिर्माताओं ने मॉडलों का उत्पादन आधार भारत से तुर्की और हंगरी जैसे देशों में स्थानांतरित कर दिया।
