तिरुपुर की गलियों में कपड़ों में इस्तेमाल होने वाले रसायनों और रंगों की गंध पसरी रहती है। यहां रहने वाले परिवारों का कम से कम एक व्यक्ति कपड़ा और परिधान उद्योग से जुड़ा है, जहां बनने वाले होजरी, निटवियर, कैजुअलवियर और स्पोर्ट्सवियर देश भर में बेचे जाते हैं।
इन दिनों भी रसायनों और डाई की गंध तमिलनाडु के इस शहर में फैली है, लेकिन कारोबारियों का हौसला कुछ कमजोर है। इसकी वजह कपास और यार्न (धागा) के दाम में जबरदस्त बढ़ोतरी है, जिसके कारण कारखाने कम क्षमता के साथ काम कर रहे हैं और थोक दुकानों में वीरानी छाई है। बाजार में ग्राहक बमुश्किल ही नजर आ रहा है।
खादरपेट में केसी अपैरल्स नाम से कपड़े की थोक दुकान चलाने वाले जाकिर अहमद ने कहा, ‘तिरुपुर पहले कभी ऐसा नहीं था। गलियों में हर समय भीड़ रहती थी और व्यस्त महीनों में हजारों लोग हमारी दुकानों पर आते थे।’ खादरपेट रेलवे स्टेशन के सामने ही शहर का सबसे बड़ा थोक कपड़ा बाजार है।
पिछले वित्त वर्ष में देश के कुल कपड़ा निर्यात में तिरुपुर की हिस्सेदारी करीब 54.2 फीसदी थी। महामारी के बावजूद 2021-22 में यहां से 33,525 करोड़ रुपये मूल्य के कपड़ों का निर्यात किया था, जो देश के कुल निर्यात राजस्व का करीब 1 फीसदी है। देसी बाजार को भी इसमें शामिल कर दें तो तिरुपुर से सालाना 75,000 करोड़ रुपये के कपड़ों की बिक्री हाती है।
स्पोर्ट्सवियर के कुछ पीस अपने हाथ में पकड़े अहमद कहते हैं, ‘दो महीने पहले तक इसकी लागत 100 रुपये प्रति नग थी, जो अब बढ़कर 130 रुपये हो गई है। इससे पता चलता है कि दाम कितने बढ़ गए हैं। लेकिन दाम में बढ़ोतरी कपास तथा यार्न की कीमतों में तेजी का एक अंश भर है। हमारे पास बढ़ी लागत का बोझ ग्राहकों पर डालने की बहुत कम गुंजाइश है।’
खादरपेट में ही थोक दुकान चलाने वाले 30 वर्षीय शेख जे ने कहा कि यह लघु उद्यम है लेकिन पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था कपड़ा उद्योग पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि थोक बाजार में बिक्री 30 फीसदी तक घट गई है। कपास और यार्न की कीमतों में उछाल से हम जैसे लोगों की जिंदगी दुश्वार कर दी है।
उद्योग सूत्रों प्राप्त आंकड़ों के अनुसार यार्न के दाम 112 फीसदी बढ़ गए हैं। जून 2021 में दाम 210 रुपये प्रति किलोग्राम थे और अब बढ़कर 446 रुपये प्रति किलोग्राम हो गए हैं।
डोमेस्टिक गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स असोसिएशन के सचिव रवि चंद्रन ने कहा, ‘अधिकतर कपड़ा इकाइयों में काम घट गया है। हम चाहते हैं कि सरकार यार्न के दाम में कमी लाने के उपाय करे वरना हमारा मार्जिन काफी कम रह जाएगा क्योंकि बढ़ी लागत का पूरा भार हम खरीदारों पर नहीं डाल सकते।’
अनुमान के अनुसार यार्न के दाम में 50 रुपये की बढ़ोतरी से लागत करीब 18 से 19 रुपये बढ़ जाती है। प्राइमर एजेंसीज के आर सेंथिल कुमार ने कहा कि तय कीमत पर अग्रिम खरीद ऑर्डर से हमारी मुश्किल और बढ़ गई है।
कुमार जैसे लोगों को कारोबार में नुकसान इसलिए होता है क्योंकि मध्यम और छोटे उद्यम एक-एक महीने के लिए कच्चे माल की आपूर्ति का करार करते हैं। ऐसे में कच्चे माल की लागत बढ़ने से महामारी से उबरने का प्रयास कर रहे उद्योग को काफी झटका लग रहा है।
तिरुपुर निर्यातक संघ के अनुसार कपास की एक कैंडी का दाम जून 2020 में 37,000 रुपये था, जो अब बढ़कर 97,500 रुपये हो गया है। संघ चाहता है कि आपात उधारी सुविधा गारंटी योजना के तहत एमएसएमई के लिए विशेष योजना लाई जाए। इसमें 10 से 20 फीसदी मौजूदा उधारी की सुविधा तत्काल दी जाए। निटवियर क्षेत्र में 95 फीसदी एमएसएमई काम करती हैं।
संघ के अध्यक्ष राजा एम षण्मुगम ने कहा, ‘फौरी कदम के तहत हम कपास के कारोबार को एमसीएक्स से हटाने और उसके निर्यात पर रोक लगाने की मांग करते हैं ताकि उसकी जमाखोरी न हो सके।’
उद्योग की मांग है कि चीन की तर्ज पर भारतीय कपास संघ के पास कपास का बफर स्टॉक बनाया जाए। दुनिया में सबसे ज्यादा कपास उत्पादन करने के बावजूद निर्यात के मामले में भारत का छठा स्थान है।
तिरुपुर के कई कपड़ा विनिर्माता और कताई मिलों ने अपना उत्पादन घटा दिया है, जिससे कारीगर खाली बैठे हैं। कुमार ने कहा कि उद्योग कार्यशील पूंजी की कमी से जूझ रहा है। कुछ इकाइयों में उत्पादन 30 फीसदी तक घट गया है। हम उत्पादन पूरी तरह बंद नहीं कर सकते हैं क्योंकि आगे चलकर कारीगरों की कमी हो सकती है।
