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पीढिय़ों तक गूंजने वाली सुर साम्राज्ञी की आवाज अब अनंत में

Last Updated- December 11, 2022 | 9:25 PM IST

लता मंगेशकर, एक ऐसा नाम है जिनके लिए दुनिया के सभी विशेषण कमतर मालूम होते हैं और इन लफ्जों में उनके बारे में पूरी तरह से कह देना संभव नहीं है। लता भारत की आवाज थीं और वह आज भी देश की आवाज हैं।
उन्होंने निर्विवाद और बेमिसाल तरीके से अपनी आवाज के मोहपाश में सबको सात दशकों से अधिक वक्त तक बांधे रखा। ऐसे में क्या यह कहा जा सकता है कि उनके निधन के बाद इस युग का अंत हो गया है? बेशक वक्त की बंदिशें लता पर लागू नहीं हो सकती हैं और उनकी गायकी के उत्कृष्ट सफर को देखें तो यह और भी निरर्थक मालूम पड़ता है खासतौर पर इस संदर्भ में कि हर गुजरते दौर के अनुरूप उनकी गायकी अद्वितीय श्रेणी में शीर्ष पर रही। लता एक ऐसी गायिका थीं जिनकी मौजूदगी हमारी जिंदगी में हमेशा से कितनी लंबी और कितनी ज्यादा वाली सीमा से ऊपर ही रही और इसका अंदाजा लगाना भी मुमकिन नहीं है। लता हमारी आत्मा में और हम सबकी जिंदगी में इस कदर रच-बस चुकी हैं कि शायद ही दुनिया में कहीं और कोई कलाकार इस कदर लोगों के जीवन में छाया हो। हम जिस हवा में सांस लेते हैं, हम जो कुछ सोचते हैं, हम जिस धुन में गुनगुनाते हैं और हम जिन भावनाओं को महसूस करते हैं, उन सबमें उनकी मौजूदगी है।
अद्वितीय प्रतिभा की धनी इस गायिका ने न केवल देश के फिल्मी दुनिया के संगीत को बल्कि एक पूरे युग को परिभाषित किया। बात सिर्फ यहीं तक नहीं सीमित रही बल्कि इसके साथ-साथ उन्होंने हिंदी सिनेमा के स्वर्णिम दौर यानी 1950 के दशक की शुरुआत से 1960 के दशक के अंत तक बड़े पर्दे की उभरती नायिकाओं की छवि को भी प्रभावित किया। उनकी दिल को छू लेने वाली मधुर, मखमली आवाज ने नारीत्व को परिभाषित किया और स्वतंत्र भारत के विकास की ओर अग्रसर सामाजिक पटल पर इसे दर्ज भी कराया जिसमें स्वतंत्रता और संयम दोनों पर साथ-साथ जोर दिया जा रहा था। संगीत निर्देशकों ने शायद ही उनकी आवाज को किसी खलनायिका या नृत्य से लुभाने वाली लड़की की आवाज के रूप में सोचा (हालांकि पाकीजा फिल्म को छोड़कर, जिसमें उन्होंने मीना कुमारी के लिए अपनी आवाज दी थी) था। उनकी आवाज हमेशा अच्छे किरदार निभाने वाली अभिनेत्रियों के लिए चुनी गई। हालांकि अपने खास संगीत के लिए मशहूर संगीतकार ओपी नैय्यर ने कभी लता से नहीं गवाया बल्कि उन्होंने उनकी जगह उनकी छोटी बहन आशा भोंसले को चुना।
हालांकि इसका अर्थ यह नहीं है कि लता हरफनमौला नहीं थीं। संगीत के क्षेत्र में बहुमुखी होने की वजह से ही उनकी आवाज में वह भावनात्मक पुट पूर्णता से नजर आता था और उनकी आवाज का दायरा मासूमियत, शोखपन या उदासी से भरे मिजाज वाले किसी भी तरह के गाने के लिए एकदम मुफीद ही रहा। उन्होंने हर तरह के गाने यानी रोमांटिक गाने से लेकर, गजलें, भक्ति रस वाले भजन, सेमी-क्लासिकल गाने भी उतनी ही निपुणता और रस भाव के साथ गाए। उन्होंने लगभग हर भारतीय भाषा में गायन किया था।              
लता की शख्सियत उन कई पुरस्कारों और सम्मानों की तुलना में बहुत अधिक थीं जो उन्होंने कई वर्षों के दौरान गायकी करते हुए पाया था। देश की सामूहिक चेतना पर उन्होंने अपनी एक अमिट छाप छोड़ी और अपनी बेमिसाल आवाज और कई तरह की भावनाओं से सराबोर अपनी जादुई गायकी से उन्होंने पाश्र्व गायन केक्षेत्र को हमेशा के लिए बदल दिया।
उन्होंने सात दशकों के दौरान हिंदी सिनेमा की लगभग वाली हर प्रमुख अभिनेत्रियों को अपनी आवाज दी जिनमें नरगिस, वहीदा रहमान और मीना कुमारी से लेकर माधुरी दीक्षित, प्रीति जिंटा और करीना कपूर तक जैसे मशहूर नाम शामिल हैं। लता ने संगीत निर्देशकों की तीन पीढिय़ों मसलन नौशाद, वसंत देसाई, सी रामचंद्र, सचिन देव बर्मन, सलिल चौधरी और मदन मोहन से लेकर राहुल देव बर्मन, बप्पी लाहिड़ी, अनु मलिक, आनंद-मिलिंद, जतिन-ललित जैसी जोड़ी और ए आर रहमान जैसे संगीतकारों के लिए गाने गाए। उनकी बहन आशा भोंसले के साथ-साथ उनका भी राहुल देव बर्मन के साथ काफी अच्छी युगलबंदी रही।
लता के इस अभूतपूर्व सफर को इस तरह सबसे अच्छी तरह से रेखांकित किया जा सकता है कि उन्होंने चित्रगुप्त और उनके बेटों, आनंद और मिलिंद दोनों के लिए गाया था। उन्होंने अनु मलिक और राजेश रोशन और उनके पिता क्रमश: सरदार मलिक और रोशन के लिए भी गाने गाए। लेकिन उम्रदराज होने बाद उन्होंने करीब डेढ़ दशक पहले सक्रिय पाश्र्व गायन से खुद को दूर करने का फैसला कर लिया था। हालांकि, वह कभी भी फिल्मी संगीत की दुनिया के नए दौर में भी बाहर नहीं मानी गईं क्योंकि उनकी जगह शीर्ष पर ही थी और उनका वह मुकाम हमेशा बना रहा।
अपने पिता, गायक और अभिनेता दीनानाथ मंगेशकर के असामयिक निधन के बाद वह 1940 के दशक के मध्य में मास्टर विनायक के संपर्क में आईं जिन्होंने उनका मार्गदर्शन किया। उनके निधन के बाद गुलाम हैदर उनकी जिंदगी में आए जिनके लिए वह शागिर्द सरीखी रहीं। गुलाम हैदर ने ही लता को अपनी पहली हिंदी फिल्म गीत, ‘अब डरने की कोई बात नहीं’ गाने का मौका दिया था जिसे उन्होंने मुकेश के साथ युगल गीत के तौर पर इसे गाया था। यह फिल्म थी ‘मजबूर’ और इसमें किशोर कुमार और नलिनी जयवंत ने अदाकारी की थी। हैदर ने लता की मुलाकात फिल्म निर्माता सशधर मुखर्जी से भी करवाई जिन्होंने फिल्मिस्तान की स्थापना की थी।  
उन्होंने संगीतकार नौशाद के निर्देशन में महबूब खान की फिल्म ‘अंदाज’ (1949) के लिए ‘उठाए जा उनके सितम’ गाना रिकॉर्ड किया और उसी साल बॉम्बे टॉकीज फिल्म ‘महल’ के लिए अपने करियर को परिभाषित करने वाला गाना, ‘आएगा आने वाला आएगा’ जिसके लिए नौशाद के गुरु खेमचंद प्रकाश ने संगीत रचना की थी। उसके बाद उनकी संगीतमय उड़ान काफी तेज और निर्बाध रही।
हिंदी सिनेमा में महिला पाश्र्व गायिकाओं की पहली पीढ़ी में नाम दर्ज कराने वाली शमशाद बेगम, जोहराबाई अंबालेवाली, राजकुमारी, अमीरबाई कर्नाटकी और सुरैया (जो एक सफल अभिनेत्री भी थीं) जैसी गायिकाओं की शैली या तो शास्त्रीय संगीत घराने या कोठा परंपराओं से जुड़ी थीं और वे लता की तरह नए मिजाज को अपनाने में उतनी सफल नहीं रहीं। वहीं पतली आवाज वाली लता की सुरों की ताकत और बढ़ती गई क्योंकि उनकी आवाज की नरमी 1960 के दशक के आधुनिक रिकॉर्डिंग स्टूडियो के लिए एकदम उपयुक्त मानी गई।
1940 के दशक के अंत में और 1950 के दशक की शुरुआत में ही उनकी सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह उन दिनों कई ऐसे फि ल्म निर्माताओं-संगीत निर्देशकों की टीम के साथ मजबूती से जुड़ी थीं जो अगले दो से तीन दशकों तक हिंदी सिनेमा पर अपना दबदबा बनाने जा रहे थे।
उन दिनों मशहूर दिग्गज फि ल्म निर्माताओं, राज कपूर, बिमल रॉय, कमाल अमरोही और बीआर चोपड़ा और कुछ अन्य ने संगीतकार शंकर-जयकिशन, एसडी बर्मन, सलिल चौधरी, रोशन और मदन मोहन के साथ एक स्थायी रचनात्मक साझेदारी की थी। लता मंगेशकर जल्द ही उनके इस सुरों वाले संसार का एक अभिन्न हिस्सा बन गईं।
जब बी आर चोपड़ा ने अपनी पहली फि ल्म (अफ साना) बनाई, राज कपूर ने अपनी पहली बड़ी हिट फि ल्म (बरसात) दी, कमाल अमरोही ने अपने निर्देशन की शुरुआत (महल) की और बिमल रॉय ने अपनी पहली फि ल्म (दो बीघा जमीन) बनाई तब निर्विवाद रूप से लता इन सबकी पहली पसंद थीं। इन फि ल्मकारों के करियर के शानदार दौर की शुरुआत हुई और लता मंगेशकर ने गायिका के तौर पर उनका पूरा सहयोग दिया। इस अद्भुत तालमेल के बलबूते हीं इन फिल्मकारों की फि ल्में, हिंदी सिनेमा और खुद लता ने एक युगांतकारी दौर की ओर कदम बढ़ाया।

First Published - February 6, 2022 | 11:07 PM IST

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