वित्त वर्ष 2021 की पहली छमाही में वाणिज्यिक वाहनों (सीवी) की बिक्री में 70-75 प्रतिशत की गिरावट आने के बाद सकारात्मक बदलाव के साथ इन वाहनों की बिक्री में तेजी आने लगी है। हालांकि बड़ा सवाल है कि यह क्षेत्र पिछले दो वर्षों से मंदी के जिस चक्र में फंसा है, क्या उससे बाहर आ पाएगा?
महामारी से पहले, आर्थिक मंदी, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के मंद पडऩे और वाहनों पर 20-25 प्रतिशत तक वजन बढ़ा सकने संबंधी नए एक्सल मानदंडों के चलते इस क्षेत्र में संकुचन देखा गया।
फिलहाल देखी जा रही वापसी अभी मामूली है। जुलाई-सितंबर तिमाही में, वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री पिछले वर्ष की समान अवधि के 1,67,000 वाहनों से 20 प्रतिशत घटकर लगभग 1,33,000 वाहन रही। महीने के आधार पर सकारात्मक रिकवरी देखी गई और सितंबर माह में अगस्त के मुकाबले बिक्री में 32 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। अक्टूबर 2020 में बिक्री अक्टूबर 2019 के मुकाबले केवल 4 फीसदी कम थी।
भारत की सबसे बड़ी वाणिज्यिक वाहन निर्माता कंपनी टाटा मोटर्स के अध्यक्ष (वाणिज्यिक वाहन व्यवसाय इकाई) गिरीश वाघ ने कहा, ‘अर्थव्यवस्था अनलॉक की प्रक्रिया, मुख्यत: विनिर्माण क्षेत्र में अनलॉक इसका प्रमुख कारण रहा।’ अक्टूबर में टाटा मोटर्स की वाणिज्यिक वाहन बिक्री सालाना आधार पर एक समान रही जबकि सितंबर 2020 में यह 12 प्रतिशत अधिक थी। मांग के एक प्रमुख संकेतक पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) में भी विनिर्माण क्षेत्र की वापसी देखी जा सकती है जो अप्रैल 2020 (लॉकडाउन के दौरान) के 27.4 से बढ़कर अक्टूबर 2020 में 58.9 पर आ गया। आठ प्रमुख कोर उद्योग सूचकांक में भी वापसी हुई है और अप्रैल में लगभग 38 प्रतिशत संकुचन के बाद अब यह केवल 0.8 प्रतिशत का संकुचन दिखा रहा है। कोर उद्योगों और विनिर्माण उत्पादन में रिकवरी के कारण ट्रांसपोर्टरों द्वारा माल ढुलाई की मांग बढ़ी है, जिसके चलते वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री में तेजी देखी गई है। दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश मांग हल्के वाणिज्यिक वाहनों (एलसीवी) से प्रेरित है। एलसीवी (आमतौर पर 7.5 टन से नीचे) की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2021 की पहली छमाही में वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री का 82 प्रतिशत था, पूरे वित्त वर्ष 2015 में 69 प्रतिशत था। वहीं, पिछले साल कुल मात्रा की एक चौथाई हिस्सेदारी रखने वाले मध्यम वाणिज्यिक वाहन (आईसीवी) अब एक तिहाई रह गई है।
घर से काम करने के बढ़ते चलन और सामाजिक दूरी के मानकों के कारण ई-कॉमर्स पर खरीदारी में तेजी देखी गई है और इससे भी मांग में तेजी आई है। मॉनसून बेहतर होने से फल, सब्जी, अनाज आदि की ढुलाई के लिए भी वाणिज्यिक वाहनों की मांग में तेजी देखी जा सकती है। इसके अलावा, त्योहारी सीजन में मांग में तेजी आने की उम्मीद है। देश में दूसरी सबसे बड़ी वाणिज्यिक वाहन निर्माता कंपनी अशोक लीलैंड के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी विपिन सोंधी ने कहा, ‘त्योहारी सीजन में मांग में तेजी आने से सकारात्मक रुख दिखा रहा है।’
मॉनसून के बाद खनन क्षेत्र खोले जाने से भी वाहनों की बिक्री में विश्वास कायम हुआ है और नवीनतम रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि दूसरी तिमाही में आवासीय रियल्टी की बिक्री भी हुई है। ठेकेदारों के भुगतान जारी होने से बाजार में तरलता की स्थिति में सुधार हुआ है, जिससे अधिक निर्माण परियोजनाओं को फिर से शुरू किया जा सकता है।
हालांकि एक नकारात्मक पक्ष यह है कि समग्र अर्थव्यवस्था की व्यापक रिकवरी अभी होना बाकी है। सोंधी कहते हैं, ‘सामान्य स्थिति में लौटने के साथ, माल एवं लोगों की आवाजाही बढ़ रही है। इसलिए, हम उम्मीद करते हैं कि क्षेत्रों में मांग बढ़ेगी। मजबूत होती ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ई-कॉमर्स से भी बिक्री बढ़ेगी।’
अशोक लीलैंड की अक्टूबर माह की बिक्री इस पैटर्न को दर्शाती है। अक्टूबर में ट्रक की बिक्री में 13 फीसदी की वृद्धि हुई है, लेकिन बस की बिक्री में गिरावट (क्योंकि स्कूलों और सार्वजनिक परिवहन के बंद होने के कारण) आई। इसके चलते अक्टूबर माह में कुल मझोले एवं भारी वाहनों (एमएचसीवी) की बिक्री में 15 फीसदी की गिरावट देखी गई। हालांकि, इसी महीने एलसीवी की बिक्री में 11 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
लॉकडाउन में ढील देने पर स्थिति थोड़ी आसान हो सकती थी। डेमलर इंडिया कमर्शियल व्हीकल के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ सत्यकाम आर्य ने कहा, ‘हमारा मानना है कि भारत साल 2021 और उसके बाद कई उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बेहतर तरीके से उबरेगा। सरकार का आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज विनिर्माण एवं खनन क्षेत्रों में मांग के मजबूत कर रहा है। हम इन क्षेत्रों में सकारात्मक तेजी देख रहे हैं।’
एक तरफ उद्योग आशावादी है, तो वहीं क्षेत्र पर नजर रखने वाले विश्लेषक इसे कम आंक रहे हैं। उदाहरण के लिए, इक्रा का अनुमान है कि इस वित्त वर्ष में 25-28 फीसदी की गिरावट आएगी, जो एक दशक से भी अधिक समय का न्यूनतम स्तर होगी। महामारी से पहले की चुनौतियों, जैसे अत्यधिक क्षमता, दबे हुए माल की उपलब्धता और वित्तपोषण की बाधाओं के साथ साथ महामारी के बाद इनमें और अधिक जटिलता आने से इस क्षेत्र के लिए इक्रा का दृष्टिकोण ‘नकारात्मक’ बना हुआ है। केयर रेटिंग्स ने कहा कि वित्त वर्ष 2021 के लिए जीडीपी अनुमान (-) 8.1 से (-)8.2 तक रहने का संकेत है और इस साल वाणिज्यिक वाहनों, खासकर एमएचसीवी में पूरी तरह से रिकवरी होने की संभावना नहीं है। एजेंसी को उम्मीद है कि वाणिज्यिक वाहन उद्योग की बिक्री में 24-29 प्रतिशत की गिरावट और एमएचसीवी की बिक्री में 40-45 प्रतिशत की गिरावट आएगी।
मोतीलाल ओसवाल के विश्लेषकों ने भविष्यवाणी की कि एमएचसीवी वित्त वर्ष 2020 के स्तर को वित्त वर्ष 2023 में हासिल कर सकेगा। हालांकि अगर स्क्रैपिंग नीति के तहत 15 वर्ष से ऊपर के ट्रकों की अनिवार्य स्क्रैपिंग की घोषणा की जाती है, तो वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री में शीघ्र ही तेजी आ सकती है।
आर्य का मानना है कि इन चुनौतियों के बावजूद दीर्घकालिक दृष्टिकोण अभी भी सकारात्मक है। वह कहते हैं, ‘हम मजबूत विश्वास के साथ मानते हैं कि हम जो चुनौतियां देख रहे हैं, वे अल्पकालिक से मध्यम अवधि की हैं। भारत में आर्थिक रिकवरी के लिए बहुत अधिक संभावनाएं हैं।’
