कोविड-19 संक्रमण के बाद अस्पतालों में बायो-मेडिकल वेस्ट (अस्पतालों में उपचार के बाद बचा कचरा) पांच गुना से भी ज्यादा बढ़ गया है। दरअसल कोविड-19 के मरीजों के इलाज के बाद बचे सुरक्षा उपकरण, मास्क, दस्ताने, सुई आदि से पर्यावरण संबंधी चिंताएं बढ़ गई हैं। इतना ही नहीं, इससे अस्पतालों का वित्तीय बोझ भी बढ़ गया है। फिलहाल इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि कोविड-19 के कारण देश में कितनी मात्रा में कचरा जमा हो रहा है, लेकिन कई राज्यों ने इनका अंबार कम करने के लिए बाहरी एजेंसियों की सेवाएं लेनी शुरू कर दी हैं। इसके साथ ही ऐसा कचरा निपटाने के लिए औद्योगिक कचरा निपटान प्रणाली का भी सहारा लिया जा रहा है।
इस बारे में फिक्की स्वास्थ्य सेवा समिति एवं मेडिका ग्रुप के चेयरमैन आलोक रॉय ने कहा, ‘हम अपने समूह के अस्पतालों में रोजाना 1,500 पीपीई किट का निपटारा कर रहे हैं। सामान्य दिनों के मुकाबले इस समय पांच गुना अधिक कचरा जमा हो रहा है। अब हमें इन उपकरणों जैसे पीपीई किट आदि को संक्रमण मुक्त कर दोबारा इस्तेमाल के बारे में सोचना होगा वरना समस्या बहुत बढ़ जाएगी।’
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने सभी अस्पतालों में बायो-मेडिकल कूड़े का हिसाब रखने के लिए एक मोबाइल ऐप शुरू किया है। सीपीसीबी ने अस्पतालों, देखभाल एवं पृथक्करण केंद्रों (आइसोलेशन सेंटर) के लिए कूड़ा प्रबंधन के दिशानिर्देश जारी किए हैं। इस बारे में सीपीसीबी के सदस्य सचिव प्रशांत गार्गव ने कहा, ‘यह निश्चित तौर पर चिंता का विषय है। बायो-मेडिकल कचरे के प्रबंधन के लिए सबसे पहले सीपीसीबी ने दिशानिर्देश जारी किए थे। हमने स्थिति के अनुसार दिशानिर्देशों में संशोधन भी किए हैं। अब पूरा ध्यान क्रियान्वयन पर टिक गया है।’
सीपीसीबी के ऐप का इस्तेमाल देश के 27 राज्यों में हो रहा है। इस ऐप से जुटाए आंकड़े के अनुसार रोजाना कोविड-19 के उपचार के बाद 60 टन कचरा जमा हो रहा है। उत्तर दिल्ली नगर निगम के मेयर जय प्रकाश ने कहा कि लोक नायक अस्पताल सहित उनके क्षेत्र से 40 से 45 टन कचरा रोज जमा हो रहा है। लोक नायक अस्पताल दिल्ली में कोविड उपचार के बड़े केंद्रों में शुमार है। जय प्रकाश ने कहा कि चूंकि, कूड़ा एकत्र करने के लिए केवल सरकारी तंत्र नाकाफी हो सकता है, इसलिए एक निजी कंपनी को भी इस कार्य में लगाया गया है। उन्होंने कहा, ‘कोविड-19 से साधारण रूप से संक्रमित मरीजों को उनके घरों में रखे जाने के बाद कंटेनमेंट जोन की संख्या बढ़ गई है, इसलिए हमें भी अपनी क्षमता में इजाफा करना होगा। हमने उन घरों की भी पहचान कर रहे हैं, जहां कोविड-19 मरीज आइसोलेशन में हैं ताकि कूड़ा एकत्र करने में आसानी हो।’ सीपीसीबी ने भी कूड़े का रोज अंबार लगते देख कचरा निपटान करने वाली संस्थाओं की सेवाएं लेनी शुरू कर दी हैं। सीपीसीबी ने औद्योगिक कचरा निपटान करने वाली जगहों में भी बायो-मेडिकल वेस्ट के निपटान की अनुमति दे दी है। गरगावा ने कहा, ‘ग्रामीण क्षेत्रों में अमूमन कूड़ा निपटान की सुविधाएं नहीं होती हैं। इसे ध्यान में रखते हुए हम उन क्षेत्रों में गहरे गड्ढों में कचरा निपटाने की सलाह दे रहे हैं।’
हालांकि विस्तृत दिशा-निर्देश तो आ चुके हैं, लेकिन जागरूकता की कमी बड़ी चुनौती है जिस कारण कचरा उत्पन्न होने वाले स्थान पर कचरा छांटने में दिक्कत हो रही है और कचरा एकत्रित करने वाले जोखिम में पड़ जाते हैं।
सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि हमने हाल ही में एक निरीक्षण पूरा किया है। जब यह कचरा किसी पंजीकृत स्वास्थ्य देखभाल केंद्र से आता है, तो इस प्रणाली को भली-भांति निर्धारित और ठीक से प्रबंधित किया जाता है। हालांकि चूंकि कई लोग होम आइसोलेशन में रहते हैं, इसलिए दिक्कत यहीं हैं।
पर्यावरण विशेषज्ञ भी उन अस्थायी स्वास्थ्य केंद्रों के बारे में चिंतित हैं जो लक्षण वाले मरीजों को रखते हैं। साइंस, इंटरनैशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनॉलेसिस की उप महानिदेशक लीना श्रीवास्तव ने कहा कि जानकारी के अनुसार इन केंद्रों में बुनियादी ढांचे और चिकित्साकर्मियों पर अधिक ध्यान केंद्रित रहता है। दूषित कचरे का सुरक्षित निपटान सुनिश्चित करने के लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों की उपलब्धता या इनके स्थान पर प्रणाली पर कम या कोई ध्यान ही नहीं दिया जाता है।
न केवल देखभाल करने वाले केंद्र, बल्कि श्मशानघाट भी निशाने पर हैं। उदाहरण के लिए सीपीसीबी को दक्षिण दिल्ली के एक श्मशानघाट में बिना किसी एहतियात के पीपीई इधर-उधर फेंके जाने की शिकायतें मिलीं। प्रदूषण नियंत्रण संस्था का मानना है कि जो पीपीई पूरी तरह से प्लास्टिक से बने होते हैं, उन्हें पर्यावरण संबंधी प्रभाव कम करने के लिए जलाने के बजाय कीटाणुरहित किया जा सकता है।
अस्पताल जहां भी संभव हो चीजों के पुन: उपयोग और इस्तेमाल के बाद फेंकने वाली चादरों, मरीजों के कपड़ों आदि से बचने को प्रोत्साहन देते हुए आर्थिक प्रभाव को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें हैरानी की बात नहीं है कि मुंबई में इस कचरे को प्रबंधित करने के लिए अस्पताल का औसत बिल कोविड से पहले के दिनों की तुलना में एक महीने में पांच गुना से ज्यादा बढ़कर तकरीबन चार से साढ़े चार लाख रुपये हो गया है।
मुंबई के ग्लोबल हॉस्पिटल्स के ऑपरेशंस हेड अनूप लॉरेंस ने कहा कि कूड़ा प्रबंधन कंपनी – बीएमसी ने कोविड कचरे के प्रबंधन के लिए आउटसोर्सिंग की है। वह प्रति किलोग्राम कचरे के लिए अतिरिक्त 100 रुपये वसूल रही है। लॉरेंस ने कहा कि खान-पान के कंटेनर से लेकर बिस्तर के कपड़ों और मरीजों के वस्त्रों तक सभी को पहले हाइपो सॉल्यूशन में भिगोया जाता है और फिर शोधन चक्र से गुजारा जाता है। चूंकि मरीज का दबाव बढ़ता गया है, इसलिए इन चीजों का पुन: प्रयोग करवाया जा रहा है, लेकिन देखभाल के साथ।
उपचार शुल्क की अधिकतम सीमा को ध्यान में रखते हुए मुंबई के अस्पतालों ने नगरपालिका के अधिकारियों से अनुरोध किया है कि उन्हें इस लागत का कुछ हिस्सा मरीजों पर डालने की अनुमति दी जाए। जल्द ही ऐसी अधिसूचना जारी किए जाने की उम्मीद है जिसमें मरीज कोविड-19 के कचरे की लागत का कुछ हिस्सा वहन कर सकते हैं, जो प्रतिदिन 300 से 325 रुपये हो सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि हालांकि सरकार ने चिकित्सा संबंधी कचरे का निपटान करने में शहर के स्थानीय निकायों की भूमिका को मान्यता दी है, लेकिन अगर उन्हें पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित किए जा रहा है और सुरक्षात्मक उपकरण प्रदान किए जा रहे हैं, तो ऐसे प्रयासों से सफलता सुनिश्चित होगी।