नई दिल्ली में आयोजित बिजनेस स्टैंडर्ड मंथन के दूसरे दिन कृषि को भारत की सबसे बड़ी ताकत बताया गया। नीति आयोग के सदस्य डॉ. रमेश चंद ने बिजनेस स्टैंडर्ड के संजीब मुखर्जी के साथ बातचीत में कहा कि कृषि हमेशा से भारत की मजबूती रही है और आगे भी बनी रहेगी। उन्होंने बताया कि भारत की कृषि प्रणाली मजबूत है और इसे और अधिक सशक्त बनाया जा सकता है।
भारतीय कृषि की खासियत
डॉ. चंद ने कहा कि भारत में कृषि मुख्य रूप से श्रम-आधारित है। देश में बड़ी संख्या में लोग खेती से जुड़े हैं, जो इसे एक बड़ा फायदा देता है। इसके अलावा, भारत में फसल और पशुपालन का मिश्रित मॉडल अपनाया जाता है, जिससे कृषि अधिक टिकाऊ बनती है। प्राकृतिक और जैविक खेती की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है, लेकिन भारत में यह पद्धति सदियों से अपनाई जा रही है।
उन्होंने यह भी बताया कि छोटे और सीमांत किसान नई तकनीकों को तेजी से अपनाते हैं, जिससे कृषि क्षेत्र में निरंतर विकास हो रहा है। हालांकि, किसानों की आय को लेकर चुनौतियां बनी हुई हैं। राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो किसान न तो सबसे अमीर वर्ग में आते हैं और न ही सबसे गरीब में, बल्कि वे निम्न-मध्यम वर्ग का हिस्सा हैं।
पिछले 10 सालों में हुए बड़े बदलाव
डॉ. चंद ने बताया कि 2014 के बाद से कृषि क्षेत्र में कई बड़े बदलाव हुए हैं। पहली बार कृषि की औसत वार्षिक वृद्धि दर 4% तक पहुंची, जो पहले कभी हासिल नहीं हुई थी। दूसरी बात, कृषि उत्पादों के दाम गैर-कृषि उत्पादों की तुलना में 30% अधिक बढ़े हैं, जिससे किसानों की आय में बढ़ोतरी हुई है।
तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि पहली बार कृषि क्षेत्र की आय गैर-कृषि क्षेत्र की जीडीपी के बराबर बढ़ी है। हालांकि, कृषि से गैर-कृषि क्षेत्र में श्रमिकों का स्थानांतरण रुक गया है, जिससे किसानों की आय उतनी तेजी से नहीं बढ़ पाई जितनी हो सकती थी।
सीएससी शेखर का नजरिया
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री सीएससी शेखर ने कहा कि कृषि ने भारत को 1960 के दशक की खाद्य संकट से उबारकर आज खाद्यान्न निर्यातक देश बना दिया है। उन्होंने कहा कि भारत के पास वैश्विक खाद्य बाजार में बड़ी भूमिका निभाने का अवसर है।
हालांकि, उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि छोटे और सीमांत किसानों की आर्थिक स्थिति अब भी कमजोर है। 90% भारतीय किसान छोटे जोत वाले हैं और उनके लिए खेती लाभदायक नहीं बन पा रही है। इसलिए, कृषि नीति में सुधार और प्रभावी क्रियान्वयन की जरूरत है, ताकि किसानों को भी इस वृद्धि का लाभ मिल सके।
क्या किसानों को खेती छोड़नी चाहिए?
डॉ. शेखर ने कहा कि दीर्घकालिक रूप से किसानों को कृषि से बाहर निकालकर अन्य रोजगारों में लगाना जरूरी होगा। उन्होंने समझाया कि यदि तीन लोग मिलकर खेती करते हैं और 300 रुपये कमाते हैं, तो प्रति व्यक्ति आय 100 रुपये होगी। लेकिन अगर उनमें से एक व्यक्ति कृषि छोड़कर अन्य नौकरी कर ले, तो बाकी दो किसानों की प्रति व्यक्ति आय बढ़कर 150 रुपये हो जाएगी।
इसके लिए गैर-कृषि क्षेत्रों में नौकरियों का विकास और लोगों को आवश्यक कौशल प्रदान करना जरूरी है। शिक्षा और कौशल विकास के बिना, कृषि से बाहर निकलने वाले लोग सिर्फ मजदूरी जैसे कम वेतन वाले कामों तक सीमित रह जाएंगे।
अजय वीर जाखड़ की बड़ी चिंता
अग्रणी किसान नेता अजय वीर जाखड़ ने कहा कि भारत में खाद्यान्न अधिशेष (food surplus) होने की बात पूरी तरह सही नहीं है। असल में, बड़ी संख्या में लोग पर्याप्त पौष्टिक भोजन खरीद पाने में सक्षम नहीं हैं। अगर लोगों के पास अधिक आय हो, तो वे फल, सब्जियां और पोषक आहार अधिक खरीदेंगे, जिससे खाद्य अधिशेष की धारणा बदल जाएगी।
उन्होंने कहा कि सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। उन्होंने सरकारी कर्मचारियों की वेतन वृद्धि का उदाहरण देते हुए कहा कि 8वें वेतन आयोग के तहत सरकारी कर्मचारियों का वेतन 35,000 रुपये से बढ़कर 1 लाख रुपये हो जाएगा। जबकि किसान औसतन 10,000 रुपये प्रति माह कमाते हैं और उनके पास पेंशन, चिकित्सा सुविधाएं या अन्य लाभ नहीं होते।
भारत को चाहिए एक ठोस कृषि नीति
जाखड़ ने जोर देकर कहा कि भारत को एक दीर्घकालिक कृषि नीति की जरूरत है, जो किसानों की आय और उनके जीवन स्तर को सुधारने पर केंद्रित हो। उन्होंने कहा कि पिछले 30 वर्षों में भारत में कोई ठोस कृषि नीति नहीं बनी है। सरकार को किसानों के भविष्य को ध्यान में रखकर 20 साल की योजना बनानी चाहिए, जिसमें समाजशास्त्रियों, पर्यावरणविदों और जलवायु विशेषज्ञों को भी शामिल किया जाए।
आगे का रास्ता
विशेषज्ञों ने इस बात पर सहमति जताई कि भारत की कृषि को मजबूत बनाए रखने के लिए समग्र नीति बनानी होगी। किसानों की आय बढ़ाने, गैर-कृषि क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करने और कृषि-आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने की जरूरत है। यदि इन बिंदुओं पर ध्यान नहीं दिया गया, तो 2047 तक “विकसित भारत” बनने की योजना में सबसे बड़ा अवरोधक कृषि क्षेत्र ही बन सकता है।