कोविड संक्रमण की लहर में तेजी आने और इसके ‘कम होने’ के चरणों से गुजरने के बाद अब आखिरकार दुनिया पहले के दौर में वापस पहुंचने की कोशिश में है। विशेषज्ञों का मानना है कि देश में संक्रमण अपने आखिरी चरण में प्रवेश कर रहा है। ऐसे में भारत में चौथी लहर की आशंका कम ही है जब तक कि कोरोनावायरस का कोई बड़ा म्यूटेशन न हो जाए।
वेलूर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में क्लिनिकल वायरोलॉजी ऐंड माइक्रोबायोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख तथा वरिष्ठ विषाणु विज्ञानी टी जैकब जॉन का मानना है कि महामारी विज्ञान के कारणों और आबादी में पर्याप्त प्रतिरोधक क्षमता आने के कारण भारत में चौथी लहर की आशंका नहीं दिख रही है। जब महामारी अपने आखिरी चरण में होती है तब चार हफ्ते या उससे अधिक समय तक मामूली उतार-चढ़ाव के साथ संक्रमण दर स्थिर हो जाती है। उन्होंने कहा, ‘भारत में तीसरी लहर अभी खत्म हुई है और संक्रमण की दर रोजाना 10,000 मामले के आंकड़े तक पहुंच गई है। हम निचले स्तर पर पहुंच गए हैं और अगर चार हफ्ते तक ऐसे ही हालात रहते हैं तब संक्रमण अपने आखिरी चरण में प्रवेश कर जाएगा।’ विषाणु विज्ञानी ने कहा, ‘वायरस के महामारी विज्ञान के बारे में उपलब्ध जानकारी के मुताबिक मेरी राय में भारत में कोई चौथी लहर नहीं होगी। मुझे लगता है कि महामारी जल्द ही खत्म होने जा रही है।’
कोविड के इलाज के लिए बायोलॉजिक दवाओं की पेशकश करने वाली कंपनी बायोकॉन समूह की अध्यक्ष किरण मजूमदार शॉ ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘महामारी अब आखिरी चरण में प्रवेश कर रही है और यह धीरे-धीरे कम हो रही है।’ वह कहती हैं कि टीके कारगर हुए हैं। उन्होंने कहा, ‘हम तीसरी लहर के गंभीर होने की आशंका जता रहे थे जबकि हमने ऐसी कोई स्थिति नहीं देखी। इससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि वायरल वेक्टर-आधारित टीके और अन्य टीके कारगर हुए हैं क्योंकि भारत में टीकाकरण अधिकांशत: कोविशील्ड और कोवैक्सीन के माध्यम से किया गया है। इसलिए, यह कहना सही नहीं है कि मैसेंजर राइबोन्यूक्लिक एसिड टीके अन्य टीके की तुलना में बेहतर हैं।’
डेल्टा स्वरूप की वजह से आई दूसरी लहर के बाद ही भारत महामारी के आखिरी चरण में पहुंचने वाला पहला देश था। ताइवान, इजरायल और जापान भी संक्रमण दर के स्थिर होने की वजह से महामारी के आखिरी चरण में पहुंच गए। भारत में पांच से छह महीने तक महामारी आखिरी चरण में था जिसके बाद ओमीक्रोन का प्रसार हुआ। टीके भविष्य में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे। जॉन का कहना है कि बूस्टर खुराक की प्रतिरोधक क्षमता आसानी से कम नहीं होती है। वह बताते हैं कि पहली खुराक के चार महीने से कम के अंतराल के भीतर दी गई टीके की कोई भी खुराक प्राथमिक खुराक का हिस्सा है। वह कहते हैं, ‘छह महीने के अंतराल के बाद, अगर हम टीका देते हैं तो यह एक बूस्टर खुराक है। यह अंतर लंबा हो सकता है। लेकिन किसी को ‘बूस्टर’ खुराक दिए जाने के बाद हम कम से कम एक साल के लिए प्रतिरोधक क्षमता में कमी की उम्मीद नहीं करते हैं।’
मजूमदार शॉ को भी लगता है कि सालाना टीकाकरण होना चाहिए। वह कहती हैं, ‘हमें सुरक्षा के दृष्टिकोण से सालाना टीकाकरण करने की जरूरत है। पूरी दुनिया को टीका लगवाने की जरूरत है और हमें मास्क पहनते रहना चाहिए। अच्छी बात यह है कि हमने प्राकृतिक रूप से प्रतिरोधक क्षमता बनाई है।’ उन्होंने कहा, ‘हम एक बड़ी तीसरी लहर से गुजरे हैं जो विनाशकारी नहीं था। वैसे अब कोरोनावायरस के किसी घातक संस्करण के आने की संभावना कम है।’ आखिर विशेषज्ञ अब संक्रमण की बड़ी लहर से प्रभावित नहीं होने को लेकर इतने आशावादी क्यों हैं? जॉन का कहना है, ‘वायरस म्यूटेशन इस बात पर निर्भर करता है कि यह लोगों में कितनी तेजी से फैल रहा है। महामारी के दौर में म्यूटेशन की संभावना अधिक होती है लेकिन आखिरी चरण में म्यूटेशन की संभावना कम होती है। दरअसल आखिरी चरण में प्रतिरोधक क्षमता उच्च स्तर पर होती है और कई म्यूटेशन की संभावना कम होती है।’
म्यूटेशन के बारे में बात करते हुए दिल्ली के शालीमार बाग के मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के निदेशक (बाल चिकित्सा) पी एस नारंग कहते हैं, ‘दो प्रकार के म्यूटेशन होते हैं जिसमें प्रमुख म्यूटेशन (जिसे हम शिफ्ट कहते हैं) या एक मामूली म्यूटेशन (जिसे ड्रिफ्ट) कहते हैं। वायरस लगातार म्यूटेट कर रहा है। मामूली म्यूटेशन के मामले में हमें प्रतिरोधक क्षमता से जुड़ी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता है। जब कोई बड़ा बदलाव होता है तब प्रतिरोधक प्रणाली के लिए वायरस से लडऩा मुश्किल हो जाता है।’
नारंग कहते हैं, ‘म्यूटेशन लाइव ही होते हैं और जैसे-जैसे संक्रमण के मामले कम होते हैं, म्यूटेशन की संभावना कम होती जाती है। अगर वायरस में ज्यादा म्यूटेशन नहीं होता है तब कोविड-19 लहर खत्म हो जाएगी। तीसरी लहर के बाद, हमें उम्मीद है कि संक्रमण खत्म हो जाएगा।’ इस उम्मीद के पीछे एक दूसरा कारण यह है कि कोविड प्रतिबंधों को हटाने के बावजूद भारत में संक्रमण के मामलों में कमी आ रही है।
भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान के निदेशक और आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व प्रोफेसर दिलीप मावलंकर कहते हैं, ‘यह एक संकेत है कि संक्रमण आखिरी चरण में प्रवेश कर रहा है। मैं किसी भी समय संक्रमण के मामलों में तेजी के साथ चौथी लहर की उम्मीद नहीं कर रहा हूं जब तक कि वायरस में कोई महत्त्वपूर्ण म्यूटेशन न हो या हमें वायरस के एक अलग स्ट्रेन का सामना ही क्यों न करना पड़े।’
आईआईटी कानपुर के एक हाल के अध्ययन में दावा किया गया है कि 22 जून के आसपास भारत में चौथी लहर आ सकती है। आईआईटी कानपुर के गणित एवं सांख्यिकी विभाग के नेतृत्व में किए गए अध्ययन से पता चलता है कि चौथी लहर का उभार देश भर में नए कोरोनोवायरस स्ट्रेन और टीकाकरण की स्थिति पर निर्भर करेगा। जॉन कहते हैं, ‘अगर मैं एक गणितज्ञ हूं और वायरस के व्यवहार के बारे में बहुत कम जानता हूं तब मैं तीन लहरों में इस पैटर्न को देखूंगा और कहूंगा कि एक और लहर होगी। लेकिन हर महामारी इस तरह के पैटर्न से गुजरती है और खत्म हो जाती है। यह महामारी खत्म हो रही है। गणितीय पैटर्न वायरस के साथ काम नहीं करता है बल्कि यह मौसम, बाढ़, आदि के पैटर्न के साथ काम करता है।’
हालांकि, विशेषज्ञ सतर्कता को कम नहीं करने के बारे में बात करते हैं और जमीनी स्तर की जांच को संस्थागत बनाने की सलाह देते हैं। आईआईटी खडग़पुर के प्रोफेसर और डीन तथा रैपिड न्यूक्लिक एसिड जांच के लिए सीओवीआईआरएपी तकनीक की आविष्कारक सुमन चक्रवर्ती का मानना है कि मामलों का तेजी से पता लगाने और अलग करने के लिए जमीनी स्तर की जांच को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिए। चक्रवर्ती कहती हैं, ‘मान लीजिए कि स्कूलों, कार्यालयों में हमें नियमित अंतराल पर इन्फ्लूएंजा जैसे लक्षणों या यहां तक कि मामूली लक्षणों वाले मामले का भी पता लगाने की आवश्यकता होती है। संक्रमित व्यक्तियों का जल्दी पता लगाना और उन्हें अलग करना महत्त्वपूर्ण है।’
