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बोर्ड से बाहर गडकरी-शिवराज

Last Updated- December 11, 2022 | 4:32 PM IST

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बुधवार को पार्टी के दो महत्त्वपूर्ण सदस्यों केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपने निर्णय लेने वाले शीर्ष निकाय केंद्रीय संसदीय बोर्ड से हटा दिया। उनकी जगह नए सदस्यों को शामिल किया गया है।
चुनाव और उम्मीदवार संबंधी सभी महत्त्वपूर्ण फैसले संसदीय बोर्ड द्वारा लिए जाते हैं। अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, अनंत कुमार के निधन के बाद और वेंकैया नायडू को उपराष्ट्रपति तथा थावर चंद गहलोत को कर्नाटक के राज्यपाल के रूप में पदोन्नत करने के बाद बोर्ड में कई रिक्त पद थे।
केंद्रीय संसदीय बोर्ड केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) के साथ मिलकर काम करता है और बोर्ड के सदस्य भी सीईसी के सदस्य होते हैं। दिल्ली के एक भाजपा नेता कहते हैं कि संसदीय बोर्ड के किसी भी सदस्य को वास्तव में हटाया नहीं जाता है। लेकिन जब रिक्तियां होती हैं तब उन्हें उपलब्ध उपयुक्त व्यक्तियों से ही भरा जाता है। भाजपा के संगठन सचिव संसदीय बोर्ड के पदेन सदस्य होते हैं जो मूलतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से भाजपा में आते हैं।
उस हिसाब से बीएल संतोष को संसदीय बोर्ड में जगह मिलना स्वाभाविक था लेकिन कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा का संसदीय बोर्ड में शामिल होना संतुलन बिठाने के कारक के तौर पर देखा जा सकता है। दोनों ही कर्नाटक के शिमोगा जिले के रहने वाले हैं और दोनों संघ के कार्यकर्ता रहे हैं। येदियुरप्पा ने 2012 में अपनी पार्टी, कर्नाटक जनता पक्ष बनाने के लिए कुछ समय के लिए भाजपा छोड़ दी थी हालांकि उनकी पार्टी को अधिक चुनावी सफलता नहीं मिल सकी थी लेकिन उनके पार्टी से बाहर जाने से 2013 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम प्रभावित हुए जिसके चलते भाजपा सरकार नहीं बना सकी। कर्नाटक में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं।
इकबाल सिंह लालपुरा, संसदीय बोर्ड में जगह पाने वाले पहले सिख सदस्य है। उनके संसदीय बोर्ड में शामिल होने से पता चलता है कि शिरोमणि अकाली दल से भाजपा का रिश्ता अब पूरी तरह से टूट गया है। लालपुरा पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं जो सेवानिवृत्त होने के बाद भाजपा में शामिल हुए। तेलंगाना से ताल्लुक रखने वाले के लक्ष्मण को भी नया सदस्य बनाया गया है जो 1980 में भाजपा में शामिल हुए थे। भाजपा के लिए तेलंगाना एक ऐसा क्षेत्र है जहां भाजपा विकास की संभावना देखती है। उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के माध्यम से संगठन में अपनी पैठ बनाई। लक्ष्मण भाजपा की अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) शाखा के अध्यक्ष भी हैं।
संसदीय बोर्ड में शामिल होने वाली एक नई सदस्य हरियाणा की सुधा यादव भी हैं जिन्होंने आईआईटी रुड़की से पीएचडी की हैं। जब नरेंद्र मोदी हरियाणा के प्रभारी भाजपा महासचिव थे, तब सुधा यादव ने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा था और उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए संसाधनों की मांग की थी।
उस मौके पर, नरेंद्र मोदी ने अपनी जेब से 11 रुपये निकाले जो उनकी मां ने उन्हें कुछ साल पहले दिए थे और सुधा यादव के चुनाव अभियान के लिए दान कर दिया। उन्होंने वहां मौजूद सभी लोगों को अपने किराये को छोड़कर अपने जेब के पूरे पैसे देने के लिए कहा। सुधा यादव ने बताया कि 30 मिनट के भीतर, उनके चुनाव अभियान की राशि बढ़कर 7.5 लाख रुपये हो गई थी।
मध्य प्रदेश के सत्यनारायण जटिया भी नए सदस्य हैं जो दलित हैं और वह अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में श्रम मंत्री भी थे। संसदीय बोर्ड में सर्वानंद सोनोवाल का शामिल होना असम से बिना किसी विरोध के हटने का इनाम भी है लेकिन इससे असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा अधिक सचेत हो सकते हैं जिनकी राजनीतिक किस्मत कुछ साल पहले कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने के बाद से चमकने लगी है। संसदीय बोर्ड में इन नए सदस्यों को जगह देकर भाजपा ने सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन को साधने की कोशिश की है। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, ओम माथुर और भाजपा की महिला शाखा की प्रमुख वनति श्रीनिवासन को शामिल करने के साथ सीईसी में भी बदलाव किया गया। बिहार के नेता शाहनवाज हुसैन और आदिवासी नेता जुएल उरांव सीईसी से बाहर हो गए हैं।
भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘गडकरी को (संसदीय बोर्ड से) बाहर करना और देवेंद्र फडणवीस का सीईसी में शामिल होना एक नई कहानी को बयां करता है।’

First Published - August 18, 2022 | 10:48 AM IST

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