तिरुवनंतपुरम के पीआरएस अस्पताल के हृदयरोग विभाग (कार्डियोलॉजी) के प्रमुख डॉ टिनी नायर कहते हैं, ‘मेरा अस्पताल कोविड-19 से पहले एक महीने में दिल के दौरे के 50 मरीजों के मामले देख रहा था लेकिन अब हाल यह है कि यहां हर महीने ऐसे 60 मरीज आ रहे हैं।’ डॉ नायर ने अपने व्यक्तिगत अनुभव के बारे में बताया कि कोविड-19 महामारी के बाद दिल के दौरे के मामलों में 10-20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा, ‘कोरोनावायरस की पहली लहर और देश भर में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान दिल के दौरे के मामले में कमी आई थी। लेकिन फिर से ऐसे मामले देखे जा रहे हैं और अब महामारी से पहले के मुकाबले इसमें काफी बढ़ोतरी हुई है।’ हाल के दिनों में राजनीति से लेकर संगीत और फिल्मों से जुड़ी कई युवा हस्तियों का अचानक दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
हालांकि व्यापक शोध में अभी इस बात का अंदाजा लगाना बाकी है कि दुनिया भर में दिल के दौरे में कितनी वृद्धि हुई है लेकिन डॉक्टर इस बात से सहमत हैं कि कोविड-19 महामारी से हृदय प्रणाली प्रभावित हुई है और यह न केवल कोविड-19 से संक्रमित होने के दौरान बल्कि इसके कई हफ्ते बाद और बीमारी के लगभग एक साल बाद तक भी हृदयाघात के जोखिम को बढ़ाता है।
फरवरी में नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में सेंट लुई, मिसौरी में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में ज्याद अल-अली के शोध का हवाला दिया गया है जो सेंट लुई के हेल्थ केयर सिस्टम के अनुसंधान एवं विकास प्रमुख भी है।
शोधकर्ताओं ने अपने शोध में अमेरिका के बुजुर्गों के मामलों वाले विभाग के एक व्यापक स्वास्थ्य-रिकॉर्ड डेटाबेस को आधार बनाया है। उन्होंने 150,000 से अधिक बुजुर्गों, जो कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद कम से कम 30 दिनों तक जीवित रहे और असंक्रमित लोगों के दो समूहों के साथ तुलना की जिसमें महामारी के दौरान बीए चिकित्सा प्रणाली का उपयोग करने वाले 50 लाख से अधिक लोगों का एक समूह, और समान आकार का एक और समूह शामिल है जिसने 2017 में इस प्रणाली का इस्तेमाल किया था। अध्ययन से पता चलता है कि जो लोग कोविड-19 से ठीक हो गए थे, उनमें नियंत्रण समूह की तुलना में हृदयाघात होने की संभावना 52 प्रतिशत अधिक थी, और दिल के काम करना बंद करने का खतरा 72 प्रतिशत तक बढ़ गया था।
भारतीय डॉक्टर इससे सहमत हैं। मुंबई के मसीना अस्पताल के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. रुचित शाह कहते हैं, ‘ऐसे अध्ययन हैं जिसके मुताबिक पिछले एक साल में कोविड-19 से संक्रमित होने वाले मरीजों में हृदय रोगों और दिल के दौरे में छह गुना वृद्धि हुई है।’
भारतीय डॉक्टर इससे सहमत हैं। मुंबई के मसीना अस्पताल के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. रुचित शाह कहते हैं, ‘ऐसे अध्ययन हैं जो पिछले एक साल में कोविड-19 का पूर्व इतिहास रखने वाले रोगियों में हृदय रोगों और दिल के दौरे में छह गुना वृद्धि दिखाते हैं।’
ऐसी समस्या क्यों बढ़ी है?
कल्याण के फोर्टिस अस्पताल की सीनियर कंसल्टेंट-इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी डॉ. जकिया खान बताती हैं, ‘सार्स-सीओवी-2 से शरीर की धमनियों में जलन और सूजन जैसी स्थिति बनती है जो कहीं भी हो सकती है, यानी मस्तिष्क, हृदय, फेफड़े, आंत आदि में। ऐसे में यह इन क्षेत्रों में पहले से मौजूद किसी मुश्किल वाली स्थिति को बढ़ा सकता है जैसे हृदय की नली में रुकावट या थक्के आदि।‘ उनका कहना है कि डॉक्टर युवा वर्ग के दिल की मांसपेशियों में कमजोरी देख रहे हैं, जबकि बुजुर्ग लोगों मे यह आमतौर पर धमनियों से जुड़ी समस्या है।
कोविड-19 शरीर की नसों को भी प्रभावित करता है जिससे दिल की धड़कन में अनियमितता और कई अन्य समस्याएं भी दिखती हैं। डॉ नायर इस बात पर जोर देते हैं कि रक्त नलियों के एंडोथेलियम में जलन और सूजन पैदा करने वाला वायरस कहीं अधिक समय तक बने रहते हैं। उनका कहना है, ‘इसके अलावा, वायरस थ्रोम्बोजेनिक भी है जिसका अर्थ है कि यह खून में थक्कों का कारण बनता है। एंडोथेलियम की यह क्षति और रक्त के थक्के बनाने का रुझान काफी लंबे समय तक बना रहता है और यह संक्रमण के लगभग छह महीने से लेकर करीब एक साल तक बना रहता है।’उनका सुझाव है कि अगर डी-डाइमर जांच (हमें खून के थक्के के रुझान के बारे में बताता है) कोविड-19 के कुछ महीनों बाद सामान्य सीमा से अधिक होता है तब मरीज को निश्चित रूप से दिल का दौरा पड़ने का खतरा होता है।
नींद से वंचित लोग, और जिनमें कई निचले स्तर के जोखिम (कभी-कभार धूम्रपान, कोलेस्ट्रॉल बढ़ने की सीमा, बिगड़ा हुआ रक्तचाप या भूख को कारण ग्लूकोज का स्तर) होते हैं, उनमें कोविड 19 के बाद अचानक दिल का दौरा पड़ने का जोखिम अधिक होता है।
डॉक्टर ज्यादातर इस बात से सहमत हैं कि इस तरह की घटनाएं संक्रमण से ठीक होने के लगभग एक साल बाद तक हो सकती हैं। फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट के चेयरमैन डॉ. अशोक सेठ कहते हैं, ‘कोविड-19 से जुड़ी कार्डियोवस्कुलर जटिलताएं यानी हृदय में गड़बड़ी और दिल के दौरे जैसी समस्याएं संक्रमण से ठीक होने के बाद भी एक साल बाद तक हो सकती हैं और इसमें 60-70 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है और यह युवा और बूढ़े को समान रूप से प्रभावित करती है।’
हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर डालते हुए कहा कि देश के युवाओं में दिल के दौरे में वृद्धि केवल कोविड-19 की वजह से नहीं है बल्कि यह पिछले 10-15 वर्षों में बढ़ रहा है और यह कई जोखिम कारकों पर निर्भर करता है। डॉ. सेठ का कहना है कि कोविड-19 में तेजी के दौरान, रक्त के थक्के बढ़ने की समस्या देखी गई जो दिल के दौरे का कारण बन सकता है, खासतौर पर युवाओं में। लेकिन ये अध्ययन टीकाकरण शुरू होने और वर्तमान में ओमीक्रोन स्ट्रेन के प्रसार से पहले कराए गए थे।
इस प्रकार, अब ठीक हो चुके मरीजों के बीच बड़े पैमाने पर और दीर्घकालिक अध्ययन करने की आवश्यकता है। सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल में कंसल्टेंट, (कार्डियक साइंसेज) डॉ. अजीत मेनन का मानना है कि कोविड-19 संक्रमण की जटिलताओं का आकलन करने के लिए पांच साल या उससे अधिक समय तक मरीजों की निगरानी के लिए वैश्विक स्तर के अध्ययन की आवश्यकता है।
