कोविड-19 महामारी के कारण दो साल के अंतराल के बाद बिज़नेस स्टैंडर्ड का बीएफएसआई इनसाइट समिट भौतिक रूप में वापस आ गया है, जिसमें देश के वित्तीय क्षेत्र की कुछ सबसे दमदार शख्सियत शामिल होंगी। इस सम्मेलन की शुरुआत बुधवार को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास के मुख्य भाषण और फायरसाइड चैट तथा भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के पूर्व चेयरमैन एम दामोदरन द्वारा एक्सपो उद्घाटन के साथ होगी। दो दिनों (21 और 22 दिसंबर) तक चलने वाले इस सम्मेलन में भारत की वित्तीय प्रणाली के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित करने वाले विविध विषयों पर 11 पैनल चर्चा करेंगे।
आरबीआई गवर्नर ऐसे समय में अपने विचार साझा करने जा रहे हैं जब मुद्रास्फीति 6 फीसदी से नीचे आ गई है और चालू कैलेंडर वर्ष में मुद्रास्फीति पहली बार आरबीआई के लक्षित दायरे 2 से 6 फीसदी के भीतर है। आरबीआई गवर्नर ने बीते समय में कई मौकों पर जिक्र किया है कि मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। इसलिए मुद्रास्फीति में स्थायी गिरावट देखने के लिए केंद्रीय बैंक अभी भी सतर्क है।
आरबीआई गवर्नर की अध्यक्षता में छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और सहज दायरे में लाने के लिए मई से अभी तक बेंचमार्क नीतिगत दर में 225 आधार अंक की बढ़ोतरी कर चुकी है। इसके परिणामस्वरूप ग्राहकों के कर्ज पर ब्याज दरों में भी इजाफा हुआ है। दूसरी ओर, बचतकर्ता राहत की सांस ले रहे हैं क्योंकि लंबी अवधि के बाद बैंक में जमा उनके धन पर अब ज्यादा ब्याज मिल रहा है।
दास के विचार ऐसे समय में अत्यधिक मायने रखते हैं जब उधार लेने वाले और विशेषज्ञ इस बात को लेकर चिंतित हैं कि आरबीआई दरों में बढ़ोतरी को रोकने से पहले अपनी नीतिगत दर में और कितना इजाफा करने जा रहा है। हालिया बढ़ोतरी के बाद रीपो दर 6.25 फीसदी पर पहुंच गई है।
सम्मेलन के अन्य प्रमुख वक्ताओं में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर टी रवि शंकर और एम राजेश्वर राव, आईआरडीएआई के सदस्य राकेश जोशी, सेबी के पूर्णकाकलिक सदस्य अश्विनी भाटिया, वन97 कम्युनिकेशंस के चेयरमैन एवं मुख्य कार्याधिकारी विजय शेखर शर्मा और जी क्वांट्स के संस्थापक शंकर शर्मा जैसी प्रतिष्ठित शख्सियत शामिल हैं। पैनल चर्चा में बैंकिंग, बीमा और एनबीएफसी क्षेत्र के शीर्ष अधिकारी मौजूदा समय के ज्वलंत विषयों पर अपने विचार साझा करेंगे।
बैंकिंग उद्योग के महारथियों में देश के अग्रणी ऋणदाता भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन दिनेश कुमार खारा, बैंक ऑफ बड़ौदा के संजीव चड्ढा, पंजाब नैशनल बैंक के अतुल कुमार गोयल, ऐक्सिस बैंक के अमिताभ चौधरी, सिटी इंडिया के आशु खुल्लर आदि भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास को आगे बढ़ाने और बैंकिंग क्षेत्र इसमें किस तरह से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, इस पर अपने विचार साझा करेंगे।
गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र में एकीकरण देखा जा रहा है और आईएलऐंडएफएस संकट के बाद कई एनबीएफसी का बड़ी इकाइयों के साथ विलय किया जा रहा है तथा एचडीएफसी लिमिटेड का भी एचडीएफसी बैंक में विलय किया जा रहा है। ऐसे समय में देश के कुछ सबसे बड़ी एनबीएफसी के शीर्ष अधिकारी इस पर अपने विचार व्यक्त करेंगे कि क्या उनकी बैंक बनने की महत्त्वाकांक्षा है क्योंकि आरबीआई ने बैंकों और एनबीएफसी के बीच मौजूद नियमन अंतर को लगभग समाप्त कर दिया है।
दो दिवसीय कार्यक्रम में इस बात पर भी चर्चा होगी कि भुगतान क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियां कैसे कमाई कर सकती हैं या एक व्यवहार्य व्यवसायिक मॉडल बना सकती हैं। इस विषय पर यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) का संचालन और प्रबंधन करने वाली एनपीसीआई के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी दिलीप आसबे अपने विचार साझा करेंगे।
कार्यक्रम में इस पर भी चर्चा होगी कि नए बैंक यानी लघु वित्त बैंक खुद को बड़ा बना सकते हैं। दिग्गज अर्थशास्त्री इस बात पर बहस करेंगे कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं की आसन्न मंदी को भारत द्वारा मात दिए जाने की कितनी संभावना है। बीमा कंपनियों के शीर्ष अधिकारी इस पर अपने विचार साझा करेंगे कि बीमा की पहुंच को और कैसे बेहतर बनाया जा सकता है।
खास तौर पर ऐसे समय में जब बीमा नियामक सक्रिय रूप से इस क्षेत्र में कारोबारी सुगमता लाने की कोशिश कर रहा है ताकि कंपनियां देश के बड़े हिस्से को बीमा के दायरे में लाने के लिए अपनी पूरी क्षमता और संसाधनों का उपयोग कर सके। म्युचुअल फंड हाउसों के मुख्य कार्याधिकारी इस पर मंथन करेंगे कि ‘इंडिया’ से ‘भारत’ की यात्रा कैसे तय की जाए जबकि उनके सीआईओ इस पर राय देंगे कि इस बाजार में कहां निवेश करना चाहिए।