ऐसे वक्त में जब कर्ज की मांग, जमा में वृद्धि के मुकाबले बढ़ रही है, बैंकों को अपनी देनदारियों के प्रबंधन में अधिक आक्रामक रणनीति जरूर अपनानी चाहिए। बिज़नेस स्टैंडर्ड के बीएफएसआई इनसाइट समिट में शिरकत करने वाले कई निजी बैंकों के शीर्ष अधिकारियों ने यह बात कही।
ऐक्सिस बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और प्रबंध निदेशक (एमडी) अमिताभ चौधरी ने कहा, ‘निश्चत रूप से देनदारियों के मोर्चे पर स्पष्ट रूप से थोड़ी कठिनाई है। सभी चीजों की शुरुआत देनदारियों से होती है। उसके बगैर आप बड़ी परिसंपत्ति वृद्धि के बारे में नहीं सोच सकते हैं। ऐसा लगता है कि कर्ज में वृद्धि की राह थोड़ी लंबी है और अगर जमा वृद्धि की रफ्तार नहीं बढ़ती है तब कुछ स्तर पर कर्ज की वृद्धि पर भी असर पड़ेगा।’ उन्होंने कहा, ‘हममें से कुछ ने एक स्तर पर जमाओं के लिए काफी मेहनत की है और हम सभी यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि हमारी अतिरिक्त नकदी, बैलेंसशीट के फंसे कर्ज वाले हिस्से में न आए।’
वर्ष 2022 में बैंक की ऋण वृद्धि, जमा वृद्धि से ऊपर रही और आरबीआई के के ताजा डेटा यह दर्शाते हैं कि कर्ज में वृद्धि सालाना 17.5 फीसदी रही जबकि 2 दिसंबर तक जमा वृद्धि 9.9 फीसदी रही। पिछले कुछ महीने में बैंकों ने कर्ज में वृद्धि की मांग को पूरा करने के लिए जमा दरों में तेजी से बढ़ोतरी की है। इससे बैंकों के शुद्ध ब्याज मार्जिन पर दबाव पड़ सकता है और इसका असर मुनाफे पर भी दिख सकता है। निजी बैंकरों ने कहा कि कर्ज की मांग टिकाऊ है लेकिन बैंकों के लिए परिसंपत्तियों और देनदारियों का प्रबंधन कुछ वक्त तक चुनौतीपूर्ण रहेगा।
एचएसबीसी बैंक के सीईओ (भारत) हितेंद्र दवे का कहना है, ‘मेरा यह मानना है कि हमें ऋण में जो वृद्धि दिख रही है वह काफी संरचनात्मक है। कुछ नए ऋण लेने वाले हैं जो कर्ज लेने में सक्षम हैं जिन्हें हम पहले नहीं पाते थे। ऐसे में निश्चित रूप से कर्ज लेने वालों के आधार में बढ़ोतरी हुई है और यह निजी स्तर के साथ-साथ एसएमई और एमएसएमई जैसे कारोबारी स्तर पर भी देखा जा रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘यह एक या दो साल की वृद्धि नहीं है ऐसे में सभी बैंक प्रबंधन को ज्यादा वक्त देनदारियों पर देना होगा। परिसंपत्तियां पहले के मुकाबले बेहतर क्रम में हैं लेकिन कई सालों के बाद हमें देनदारियों को लेकर संघर्ष करना पड़ेगा।’
बैंक के अधिकारियों ने कहा कि कर्ज में वृद्धि और जमा वृद्धि के बीच कई सालों के अंतर के बीच बैंकों को इस अंतर को कम करने के लिए पूंजीगत बाजार से अधिक संपर्क करना होगा। पिछले कुछ महीने में बैंको नें टीयर1 और टीयर 2 पूंजी जुटाने के लिए कई तरह के बॉन्ड जारी करने की दिशा में कदम उठाए हैं। अधिक ब्याज दर से बैंकों को फायदा होगा और इससे अन्य माध्यमों से फंडों को बैंकिंग तंत्र में स्थानांतरित करने का फायदा मिलेगा।
आईडीएफसी फर्स्ट बैंक के एमडी और सीईओ वी वैद्यनाथन का कहना है, ‘देनदारियों के स्तर पर बात करें तब एक बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी होने पर स्वतः तरीके से बैंकिंग तंत्र की जमाओं में वृद्धि होगी। नकदी के वैकल्पिक स्रोत की बात करें तब यह कहा जा सकता है कि जो लोग म्युचुअल फंड में पैसे लगा रहे हैं वे बैंक का रुख कर सकते हैं। बॉन्ड और उधारियों के जरिये पूंजी जरूर जुटाया जा सकेगा।’ कुछ बैंकरों का मानना था कि इस साल से पहले नकदी से जुड़ी परिस्थितियां काफी अनुकूल थीं जिसकी वजह से कई बैंकों ने अपने बुनियादी परिचालन पर जोर देने में सक्षम रहे।
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आईडीबीआई बैंक के एमडी और सीईओ राकेश शर्मा का कहना है, ‘बैंक के नजरिये से देखा जाए तो हम पिछले तीन-चार सालों में ज्यादा कर्ज नहीं दे रहे थे बल्कि हम खुदरा कारोबार में ही जुटे थे। ऐसे में नकदी की स्थिति काफी अच्छी है।’ उन्होंने कहा, ‘नकदी के बेहतर प्रबंधन के चलते हम सभी मोर्चे पर अपने परिचालन को बेहतर करने में सक्षम हैं। हम अपनी परिसंपत्ति-देनदारियों का प्रबंधन करने में ज्यादा सक्षम रहे हैं।’
आशु खुल्लर के मुताबिक सिटी इंडिया के सीईओ ने कहा, ‘अगर आप सामान्य नकदी प्रबंधन की तरह ही जमाओं से जुड़ी सेवा ग्राहकों की जरूरत के आधार पर करेंगे और इसकी गुणवत्ता और बढ़ाएंगे तब आपकी देनदारियां कम लागत के साथ निपटाई जा सकेंगी। ऐसे में हमारे लिए अहम यह है कि हम ऐसा करने के लिए प्रौद्योगिकी में निवेश करें।’ अधिकारियों का मानना था कि वित्तीय क्षेत्र में विभिन्न नई इकाइयों की तरफ से बढ़ने वाली प्रतिस्पर्द्धा अच्छी है और ऐसे में इस क्षेत्र के सभी हितधारक अपनी सेवाओं की पेशकश में सुधार ला पाएंगे।