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क्या जाति जनगणना से भारत की राजनीति बदलने वाली है? अमित शाह ने दिया ऐतिहासिक बयान!

केंद्र सरकार के जाति गणना फैसले पर अमित शाह ने किया ऐतिहासिक कदम का स्वागत

Last Updated- April 30, 2025 | 8:09 PM IST
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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार (30 अप्रैल) को आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति गणना को शामिल करने के केंद्र सरकार के फैसले की सराहना की। उन्होंने इसे आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को सशक्त बनाने के लिए एक ऐतिहासिक कदम बताया। शाह ने कहा कि यह निर्णय सरकार की “सामाजिक समानता और हर वर्ग के अधिकारों के प्रति मजबूत प्रतिबद्धता” का संदेश देता है। गृह मंत्री ने कांग्रेस और उसके सहयोगियों पर तीखा हमला करते हुए उन्हें दशकों तक जाति जनगणना का विरोध करने और सत्ता में रहते हुए इसका राजनीतिक इस्तेमाल करने का आरोप लगाया।

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शाह ने कहा, “कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने सत्ता में रहते हुए जाति जनगणना का विरोध किया और विपक्ष में रहते हुए इसके साथ राजनीति की।” उन्होंने आगे कहा, “मोदी सरकार, जो सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध है, ने जाति जनगणना पर ऐतिहासिक निर्णय लिया है।”

विपक्ष ने जाति जनगणना मुद्दे का राजनीतिक लाभ उठाया: वैष्णव

उसी दिन, केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स (CCPA) के फैसले की घोषणा की, जिसमें आगामी जनगणना में जाति गणना को शामिल करने का निर्णय लिया गया था। वैष्णव ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, “कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स ने आज निर्णय लिया है कि आगामी जनगणना में जाति गणना को शामिल किया जाए।” विपक्ष की आलोचना करते हुए वैष्णव ने कांग्रेस-नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन पर जाति जनगणना का उपयोग केवल चुनावी लाभ के लिए करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “यह स्पष्ट है कि कांग्रेस और उसके INDI गठबंधन ने जाति जनगणना का इस्तेमाल केवल एक राजनीतिक उपकरण के रूप में किया है।”

उन्होंने कहा कि पिछली बार किए गए सर्वेक्षणों ने समाज में संदेह और भ्रम पैदा किया। उन्होंने कहा, “इन सर्वेक्षणों ने समाज में संदेह पैदा किया। समाज के ताने-बाने को राजनीति से प्रभावित होने से बचाने के लिए जाति गणना को सर्वेक्षण के बजाय जनगणना में पारदर्शी तरीके से शामिल किया जाना चाहिए।”

जाति जनगणना: बिहार चुनावों पर प्रभाव

केंद्र सरकार का यह फैसला बिहार चुनावों में महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव डाल सकता है, जहां इस डेटा की मांग चुनावी माहौल में तेज हो गई है। यह घोषणा विपक्ष के एक प्रमुख मांग के अनुरूप है, जिसने बीजेपी के हिन्दू जातियों में फैले समर्थन आधार को चुनौती देने के लिए जाति जनगणना की मांग की है। बिहार में पिछड़ी जातियां राज्य की बड़ी जनसंख्या का हिस्सा हैं, और विपक्ष इस डेटा का इस्तेमाल इन समुदायों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए करना चाहता है।

राष्ट्रीय स्तर पर इस कदम को उठाकर बीजेपी इस बहस को अपने पक्ष में करना चाहती है। पार्टी को उम्मीद है कि यह फैसला बिहार में फायदा पहुंचाएगा, खासकर तब जब जनतादल (यूनाइटेड) ने पिछली बार एक राज्यस्तरीय जाति सर्वेक्षण किया था, जिसमें यह खुलासा हुआ था कि बिहार की दो-तिहाई जनसंख्या पिछड़ी जातियों की है। केंद्र के इस फैसले पर बिहार में बीजेपी के सहयोगियों ने त्वरित समर्थन जताया। जनतादल (यूनाइटेड), लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास), और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने इसे “सामाजिक न्याय की ओर एक ऐतिहासिक कदम” बताया।

जाति जनगणना का ऐतिहासिक संदर्भ

भारत में आखिरी बार जाति आधारित जनगणना 1931 में की गई थी। हालांकि 1941 में जाति संबंधी आंकड़े इकट्ठा किए गए थे, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के कारण उन्हें प्रकाशित नहीं किया गया। इसके बाद से हर 10 साल में होने वाली जनगणनाओं में केवल अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आंकड़े शामिल किए गए, जिससे अन्य पिछड़ी जातियों (OBCs) का कोई आधिकारिक डेटा नहीं जुटाया गया। विश्वसनीय राष्ट्रीय डेटा की कमी के कारण मंडल आयोग की रिपोर्ट, जिसमें OBCs को भारत की लगभग 52% जनसंख्या माना गया था, का इस्तेमाल नीति निर्धारण और चुनावी गणनाओं में किया गया। हालांकि, ये आंकड़े अब पुराने और सही नहीं माने जाते।

राज्य वर्तमान में अपनी-अपनी OBC सूची बनाए रखते हैं, जिनमें और भी उपविभाजन होते हैं जैसे “सबसे पिछड़ी जातियां”। इन विविधताओं के कारण पूरे देश में एक स्थिर जाति डेटाबेस बनाना मुश्किल हो गया है, जिसे अब केंद्र सरकार संबोधित करने की तैयारी कर रही है।

First Published - April 30, 2025 | 7:54 PM IST

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