दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) को करारी हार का सामना करना पड़ा है। पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल, पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया सहित पार्टी के कई बड़े नेता चुनाव हार चुके हैं। हालांकि, पार्टी ने मुस्लिम बहुल इलाकों में अच्छा प्रदर्शन किया है। 2020 में सातों सीटों पर बड़े अंतर से जीतने वाली AAP इस बार भी छह सीटों पर मजबूत स्थिति में है, जबकि मुस्तफाबाद सीट पर बीजेपी ने बढ़त बना ली है।
हालांकि आम आदमी पार्टी के खिलाफ मुस्लिम समुदाय में नाराजगी थी, खासकर 2020 के दंगों और नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर पार्टी की चुप्पी को लेकर, लेकिन इसके बावजूद इस समुदाय ने AAP को ही वोट देना बेहतर विकल्प माना। मुस्लिम मतदाताओं का मानना था कि बीजेपी को हराने के लिए AAP ही एकमात्र मजबूत पार्टी है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, AAP के एक अल्पसंख्यक नेता ने इस समर्थन को पार्टी के लिए “सांत्वना” बताया। उन्होंने कहा, “हमारी पार्टी भले ही पूरे चुनाव में संघर्ष कर रही हो, लेकिन मुस्लिम समुदाय ने हमें फिर से समर्थन दिया है।” यह बयान बताता है कि AAP को अल्पसंख्यक समुदाय से अपेक्षित समर्थन मिला, हालांकि इसका स्तर पहले की तुलना में थोड़ा कम हो सकता है।
AAP ने इस चुनाव में भी उन्हीं पांच सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, जहां उसने 2020 में जीत दर्ज की थी— मटिया महल, बल्लीमारान, ओखला, सीलमपुर और मुस्तफाबाद। ताजा रुझानों के अनुसार, AAP चांदनी चौक, मटिया महल, बाबरपुर, सीलमपुर, ओखला और बल्लीमारान में आगे चल रही है। केवल मुस्तफाबाद में बीजेपी ने बढ़त बनाई हुई है।
इस बार के चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या बढ़ी है। जहां 2020 में केवल 16 मुस्लिम उम्मीदवार थे, वहीं इस बार यह संख्या लगभग दोगुनी हो गई, क्योंकि बहुजन समाज पार्टी (BSP) और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने भी मुस्लिम बहुल सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। AIMIM ने दो सीटों ओखला और मुस्तफाबाद से चुनाव लड़ा था।
मुस्तफाबाद में पूर्व AAP पार्षद और दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन तीसरे स्थान पर थे, जबकि ओखला में AIMIM के उम्मीदवार शिफा-उर-रहमान खान, जो 2020 दंगों के आरोपी भी हैं, दूसरे स्थान पर चल रहे थे। हालांकि, इन दोनों सीटों पर AIMIM का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा और मुस्लिम वोटरों ने AAP को ही प्राथमिकता दी।
हालांकि कांग्रेस ने इस चुनाव में मुस्लिम समुदाय पर खास ध्यान दिया, लेकिन यह वोटों में तब्दील नहीं हो पाया। कांग्रेस छह सीटों पर तीसरे स्थान पर रही, जबकि ओखला में पार्टी चौथे स्थान पर खिसक गई। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने स्वीकार किया कि कांग्रेस मुस्लिम समुदाय को यह भरोसा दिलाने में विफल रही कि वह दिल्ली में बीजेपी को टक्कर दे सकती है। उन्होंने कहा, “हम बीजेपी को हराने की ताकत रखते हैं, यह विश्वास हम मुस्लिम समुदाय में जगा नहीं सके। पिछले दो चुनावों में हमारा प्रदर्शन कमजोर रहा, जिससे हमें इस बार नुकसान हुआ।”
2020 में कांग्रेस ने पांच मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन सभी सीटों पर AAP ने उन्हें हराया था। इस बार कांग्रेस ने सात मुस्लिम प्रत्याशी उतारे, लेकिन सीलमपुर को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर उसका वोट शेयर बहुत कम रहा। सीलमपुर में उसे 15.61% वोट मिले, जो अन्य सीटों की तुलना में बेहतर था।
दिल्ली में मुस्लिम समुदाय, दलितों और झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले मतदाताओं ने 2015 और 2020 में AAP को भारी समर्थन दिया था, जिससे पार्टी ने क्रमशः 67 और 62 सीटें जीती थीं। इस बार भी मुस्लिम बहुल इलाकों में AAP को ही समुदाय की प्राथमिकता मिली, हालांकि पिछले चुनावों की तुलना में मार्जिन कुछ कम हो सकता है। कुल मिलाकर, यह साफ हो गया कि दिल्ली में मुस्लिम वोटर अब भी AAP को ही बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत विकल्प मानते हैं, जबकि कांग्रेस को अपना जनाधार वापस पाने के लिए अभी लंबा संघर्ष करना होगा।