उत्तर प्रदेश के गौतमबुुद्ध नगर के छोटे से गांव अच्छेजा में बहुत से घरों के बाहर पानी से भरी बाल्टी और नीम की टहनियां रखी हैं। स्थानीय लोगों ने इस संवाददाता को बताया कि इससे पता चलता है कि उस परिवार में हाल में कोई मौत हुई थी और आने वाले सभी लोगों के दरवाजे पर नहाने के आसार हैं। अच्छेजा में ऐसी बाल्टियां लगभग हर गली में देखी जा सकती हैं। करीब 5,000 लोगों के इस गांव में पिछले एक महीने के दौरान करीब 25 लोगों की मौत हो चुकी है। ग्राम प्रधान हरिंदर नागर ने कहा, ‘उनमें से 10-15 तो लड़के थे। परिवार खत्म हो गए हैं… कोविड ने हम पर तूफान की तरह प्रहार किया है।’
अब इस गांव की गलियां सुनसान हैं। पिछले एक सप्ताह में मामले घटने के बावजूद लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं, इसलिए ज्यादातर दुकानें बंद हैं। अपनी छोटी सी डिस्पेंसरी के बाहर खड़े अच्छेजा के एक डॉक्टर सुदेश कुमार ने कहा, ‘भय है लोगों में।’
कुमार ने कहा कि कुछ दिनों पहले तक उनके क्लिनिक के बाहर मरीजों की लंबी कतार लगती थी। वह उनकी मदद के लिए जितना कुछ कर सकते थे, उन्होंने उतना किया। वह मरीजों को बताते थे कि नारियल पानी, भाप, तुलसी, गिलोय जैसी जड़ी-बूटी लें और उन्हें पैरासिटामॉल टैबलेट देते थे। उनकी मेज पर ओखली एवं मूसल रखा हुआ है, जिसमें कुमार अपने मरीजों के लिए हरड़ कूटते हैं। माना जाता है कि हरड़ से रोग प्रतिरोधक क्षमता सुधरती है और आयु लंबी होती है। जिन लोगों में खर्च करने की कुव्वत थी, वे गाजियाबाद शहर के अस्पतालों में पहुंच गए। अच्छेजा के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है, जो पड़ोसी गांव बादलपुर में पड़ता है। यह केंद्र आसपास के करीब एक दर्जन गांवों को सेवा देता है। ग्रामीणों के मुताबिक अगर आप जांच में संक्रमित पाए जाते हैं तो यह अस्पताल केवल आपको दवाएं दे देता है, जहां ऑक्सीजन या गंभीर मरीजों के इलाज की कोई सुविधा नहीं है।
नागर के भाई अस्पताल में है और पिछले एक महीने से कोविड से उबर रहे हैं। नागर को ऑक्सीजन की व्यवस्था करने और बेड तलाशने में यहां-वहां बहुत चक्कर लगाने पड़े। वह कहते हैं कि जिन लोगों के पास उनके जितने संसाधन नहीं थे, वे ऑक्सीजन के अभाव में अस्पतालों के बाहर ही मर गए।
नागर ने गांवों तक कोविड पहुंचने के लिए पंचायत चुनावों और कुंंभ मेले को जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा कि सरकार को इतनी ढिलाई नहीं दिखानी चाहिए थी।
पड़ोसी गांव बादलपुर में नजारा थोड़ा अलग है। यहां शायद ही किसी ने मास्क पहन रखा था और कोविड की चिंता को हर कोई हवा में उड़ा रहा था। बुखार, ठंड या खांसी से मौतों को लेकर पूछने पर एक दुकानदार ने कहा, ‘केवल बूढ़ों की मौत हुई है, जिनकी तबियत पहले ही सही नहीं थी।’ थोड़ी ही दूर काकोरी के नजदीक बहुटा गांव में स्कूल शिक्षिका अंजलि बेहटा ने हाल में कोविड से अपने दादा-दादी खोए हैं। उन्होंने कहा कि उनके गांव में ज्यादातर लोग महामारी का बात नहीं मानते हैं और इसे हौवा बताते हैं, जबकि गांव में पिछले एक महीने के दौरान बहुत से लोग बुखार, सांस नहीं आने की वजह से मर चुके हैं। बेहटा ने कहा, ‘उनका कहना है कि जिसका समय आ गया, उसे जाना ही होगा…अगर मैं घर से बाहर निकलते समय मास्क पहनती हूं तो गलियों में खड़े लोग मजाक बनाते हैं।’
