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विकास की चोटी का पथरीला रास्ता

Last Updated- December 05, 2022 | 4:50 PM IST

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बी सी खंडूड़ी के 8 मार्च को सत्ता संभाले एक वर्ष हो गए। ऐसे में उनकी उपलब्धियों को बयां करने के लिए ‘वर्ष एक उपलब्धि अनेक’ नामक पुस्तक का विमोचन किया गया।


 इस पुस्तक में खंडूड़ी के सपनों का उत्तराखंड का जिक्र किया गया है। यानी राज्य को समृद्ध बनाने के इसमें सपने बुने गए हैं।खंडूड़ी अपने आवास पर जब मीडिया को अपनी साल भर की उपलब्धि बयां कर रहे थे, तब निवास के बाहर लोगों में उतनी खुशी नजर नहीं आ रही थ, बल्कि उनके विपक्षी लोग मुख्यमंत्री का विरोध कर रहे थे। खंडूड़ी यह सब देखकर हैरान थे।


 वे यह समझ नहीं पा रहे थे कि ऐसा क्यों हो रहा है, क्योंकि उनके सत्ता संभालने के समय राज्य सरकार कर्ज में डूबी हुई थी, लेकिन अब राज्य की अर्थव्यस्था पटरी पर आ रही है।खंडूड़ी के उदास होने का कारण भी है। दरअसल, पहाड़ी इलाकों के लिए नई औद्योगिक नीति, भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना, भूमि के बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाना, वैट में राहत देना और मुनाफे का बजट पेश करने के बाद भी उन्हें ऐसा होने का अंदेशा नहीं था।


इतना विकास करने के बाद भी विपक्षी दल विधानसभा के बाहर और अंदर, दोनों जगहों पर राज्य सरकार को हमेशा कठघरे में खड़ा करते नजर आए।खंडूड़ी के एक विश्वासपात्र ने बताया कि मुख्यमंत्री की ओर से कई ऐसे कदम उठाए गए हैं, जिससे राज्य का विकास तेज गति से होगा। उनकी ओर से जारी की गई पहाड़ी इलाकों के लिए नई नीति कहीं से भी गलत नहीं है।


 दरअसल, कांग्रेस के काल में केवल मैदानी इलाकों के विकास पर ही ध्यान दिया गया था, जबकि खंडूड़ी पहाड़ी इलाकों में विकास की बयार लाना चाहते हैं। हालांकि इससे पहाड़ी और मैदानी इलाके के लोगों के बीच भेदभाव की बात भी सामने आ सकती है। अगर ऐसा हुआ, तो देहरादून के विकास के लिए बना मास्टर प्लान बेकार हो सकता है।


ओएनजीसी गैस प्लांट के बंद होने से पिछले दो माह से राज्य में भीषण बिजली संकट है। विपक्ष इसे मुद्दा नहीं बना सकें, इसके लिए खंडूड़ी ने उत्तरकाशी में 304 मेगावाट के मनेरी भाली परियोजना के प्रथम चरण की शुरुआत भी कर दी।इस बीच, उत्तराखंड पावर कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) ने राज्य को बिजली संकट से उबारने के लिए पावर बैकअप सिस्टम को दुरुस्त करने की भी बात कही है।


सच तो यह है कि पहाड़ी इलाके के विकास की योजना खंडूड़ी के एक साल के कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके अब तक विकास से कोसों दूर थे। हालांकि खंडूड़ी के इस कदम से पहाड़ी इलाकों में भी विकास की बयार चलेगी और कुमाऊं और गढ़वाल इलाके के लोगों को भी रोजगार के साधन उपलब्ध होंगे। अगर ऐसा हुआ, तो इस इलाके के नौजवानों को देश के दूसरे हिस्सों में रोजगार के लिए नहीं जाना होगा।


हालांकि विशेषज्ञ इस कदम को राज्य के विकास के लिए पर्याप्त नहीं मानते हैं। दरअसल, उनका कहना हैकि राज्य के समेकित विकास के लिए खंडूड़ी को औद्योगिक नीति में भी सुधार के लिए कदम उठाना चाहिए।उधर, खंडूड़ी कई उद्योगों के लंबित पड़े प्रस्तावों के बारे में फिलहाल कोई कदम नहीं उठाना चाहते हैं और औद्योगीकरण की राह पर फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं।


 खंडूड़ी के इस बयान से कि वे औद्योगीकरण के खिलाफ नहीं हैं, उद्यमियों को नहीं लुभा रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि नए उद्योगों के लिए विशेष इकोनोमिक क्षेत्र (सेज) स्थापित करने के लिए राज्य सरकार की ओर जमीन अधिग्रहण में सहयोग नहीं किया जा रहा है।खंडूड़ी की इस बारे में भी विपक्ष खिंचाई कर रहा है कि वे उद्योगों में स्थानीय लोगों के लिए 70 फीसदी रोजगार को आरक्षित कराने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं।


उद्यमियों को यह शिकायत भी है कि जब उन्हें मुख्यमंत्री की जरूरत होती है, खंडूड़ी उपलब्ध नहीं होते हैं।यही वजह है कि विशेषज्ञ कह रहे हैं कि खंडूड़ी के ये कदम राज्य के विकास के लिए पर्याप्त नहीं हैं।नई विकासात्मक परियोजनाओं के निजीकरण की दिशा में भी मुख्यमंत्री कोई ठोस पहल नहीं कर पा रहे हैं। यही नहीं, सेज मामले पर नंदीग्राम में हो रहे बबाल को देखते हुए खंडूड़ी इस बारे में बेहद सर्तकता बरत रहे हैं।


नई कृषि नीति बनाते समय इस बात का उन्होंने जरूर ध्यान रखा कि उपजाऊ जमीन को उद्योगों के विकास के लिए नहीं लिया जाएगा। हालांकि वे यह भी मानते हैं कि अभी उनके पास पर्याप्त समय है। यही वजह है कि राज्य के मुख्यमंत्री खंडूड़ी हर मामले में फूं क-फूंक कर कदम रख रहे हैं।

First Published - March 21, 2008 | 12:05 AM IST

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