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पंजाब: अब सिद्धू का भी इस्तीफा, कांग्रेस में जारी है संकट

Last Updated- December 12, 2022 | 12:41 AM IST

मंगलवार का दिन कांग्रेस पार्टी के लिए कई घटनाक्रम एक साथ लेकर आया और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के गृह मंत्री अमित शाह से मिलने से लगभग 30 मिनट पहले ही नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया। वह जुलाई में पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष बने थे। अमरिंदर सिंह को सत्ता से बेदखल करने के लिए कथित तौर पर जिम्मेदार सिद्धू ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे अपने पत्र में कहा कि उनका यह कदम समझौते से मिली सबक का नतीजा है। इससे यह भी संकेत मिलते हैं कि सिद्धू की पसंद को मानने के नजरिये से देखा जाए तो पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी अधिक स्वतंत्र सोच वाले हो सकते हैं।
उन्होंने पत्र में लिखा, ‘एक आदमी के जमीर का पतन समझौता करने से होता है। मैं पंजाब के भविष्य और पंजाब के कल्याण के एजेंडे से कभी समझौता नहीं कर सकता। इसलिए मैं पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे रहा हूं। मैं कांग्रेस की सेवा करना जारी रखूंगा।’ सिद्धू के इस्तीफे के बाद प्रदेश कांग्रेस के कोषाध्यक्ष गुलजार इंदर चहल ने भी इस्तीफा दे दिया। चहल को सिद्धू का करीबी माना जाता है। अमरिंदर सिंह ने ट्वीट किया, ‘मैंने आपसे यही कहा था। वह स्थिर व्यक्ति नहीं है और वह सीमावर्ती राज्य पंजाब के लिए उपयुक्त नहीं है।’
सिद्धू के इस्तीफे के कुछ ही घंटे बाद रजिया सुल्ताना ने राज्य सरकार का कैबिनेट मंत्री पद छोड़ दिया। पंजाब के मुख्यमंत्री को भेजे त्यागपत्र में सुल्ताना ने कहा कि वह नवजोत सिंह सिद्धू के साथ एकजुटता दिखाते हुए इस्तीफा दे रही हैं। सुल्ताना को सिद्धू की करीबी माना जाता है। उनके पति मोहम्मद मुस्तफा सिद्धू के प्रधान रणनीतिक सलाहकार हैं जो भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी रह चुके हैं।
कांग्रेस के सूत्रों ने कहा कि सिद्धू ने इस्तीफा इसलिए दिया क्योंकि चन्नी ने सभी बातों को मानने वाली भूमिका में रहने से इनकार कर दिया जिसकी उन्हें उम्मीद थी। इसके अलावा कांग्रेस नेतृत्व में इस वजह से भी घबराहट थी कि अमरिंदर सिंह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो सकते हैं। अमरिंदर सिंह ने बताया कि वह गृह मंत्री से मिल रहे थे लेकिन सिद्धू के इस्तीफे के बाद, उनकी तरफ  से यह स्पष्ट किया गया कि उनकी मुलाकात एक ‘शिष्टाचार भेंट’ थी ताकि किसी को इस बैठक को लेकर कोई संदेह न रहे।
अमरिंदर सिंह के करीबी सूत्रों ने कहा कि गृह मंत्री के साथ बैठक में, कृषि कानूनों पर भाजपा सरकार द्वारा यू टर्न लिए जाने पर कुछ चर्चा होनी थी। यह सर्वविदित है कि पूर्व मुख्यमंत्री की कोशिशों के कारण ही पंजाब विधानसभा में कृषि कानूनों के संशोधित संस्करण को पारित कराया गया था और यहां तक कि अकाली दल को भी समर्थन देने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इन सूत्रों ने कहा, ‘कैप्टन साहब सम्मान चाहते थे। भाजपा ने इसे समझा और कृषि कानूनों से समझौता का श्रेय उन्हें दिया होता।’
हालांकि अभी तक इस बात का कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका है कि क्या अकेले सिद्धू का इस्तीफा ही अमरिंदर सिंह को भविष्य में भाजपा में शामिल होने से रोकने के लिए पर्याप्त होगा। भाजपा द्वारा किए गए लागत-लाभ विश्लेषण से संकेत मिलता है कि अगर अमरिंदर सिंह पार्टी में शामिल होते हैं तो यह पार्टी के लिए कोई नकारात्मक पहलू नहीं है बल्कि वह पार्टी के लिए एक अहम जाट सिख चेहरा बन जाएंगे और पूरे पंजाब के नेता के रूप में उनकी मौजूदगी से भाजपा के लिए स्वीकार्यता का दायरा और बढ़ेगा। इससे शिरोमणि अकाली दल (शिअद) पर उसकी निर्भरता भी खत्म होगी। इसके लिए कृषि कानूनों पर समझौता करने की एक छोटी सी कीमत चुकानी होगी। अमरिंदर सिंह ने कहा कि वह अगले कुछ दिनों में अपने समर्थकों के साथ आगे के कदम पर चर्चा करेंगे। लेकिन अब यह स्पष्ट है, पंजाब की राजनीति के प्रबंधन में कांग्रेस नेतृत्व को लेकर नकारात्मकता बढ़ी है।
चन्नी के हालिया कदम से यह स्पष्ट हो गया कि वह सिद्धू के दबदबे को बनाए रखने को लेकर अनिच्छुक थे। मुख्यमंत्री की रिश्तेदार अरुणा चौधरी को मंत्री बनाया गया है जिन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र दीनानगर में सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है। सिद्धू कांग्रेस के राज्य अनुसूचित जाति (एससी) विभाग के प्रमुख राजकुमार छाबेवाल के लिए एक पद के लिए आग्रह कर रहे थे। चन्नी ने भ्रष्टाचार के आरोप के बावजूद राणा गुरजीत सिंह को मंत्री बनाया था। सुखजिंदर रंधावा का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए उसी वक्त कट गया जब सिद्धू को लगा कि एक साथी जाट सिख उन पर हावी हो सकता है। लेकिन रंधावा को गृह विभाग दे दिया गया जो लगभग मुख्यमंत्री जितना ही महत्त्वपूर्ण था। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने ऐसे कई सुझावों को नजरअंदाज कर दिया कि सरकार को किस तरह से काम करना चाहिए। सिद्धू को धीरे से सरकार में हस्तक्षेप करने के बजाय पार्टी चलाने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा गया।
गुजरात में नितिन पटेल के विद्रोह को भाजपा ने जिस तरह से संभाला, उस हिसाब से कांग्रेस के प्रबंधन को लेकर तुलना होना तय है, जिन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए तय उम्मीदवार माना जा रहा था लेकिन वह मंत्रिपरिषद में अपना पद भी बरकरार नहीं रख सके वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पंजाब में एक संकट से दूसरे संकट की ओर बढ़ रही है। लेकिन इस मुद्दे के केंद्र में यह बात प्रमुखता से उभरती है कि नवजोत सिंह सिद्धू टीम के खिलाड़ी के रूप में काम करने में अक्षम हैं।

First Published - September 28, 2021 | 11:31 PM IST

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