करीब 56,000 सक्रिय कोविड संक्रमितों की संख्या के साथ मुंबई देश के सर्वाधिक प्रभावित शहरों में से एक है। लेकिन बीते बुधवार को वृहन्मुंबई महानगरपालिका अचानक सुर्खियों में आ गई जब सर्वोच्च न्यायालय ने ऑक्सीजन की किल्लत पर सुनवाई के दौरान महामारी पर काबू पाने में उसके प्रयासों की तारीफ कर दी।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह के खंडपीठ ने दिल्ली के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी पर सुनवाई करते हुए कहा, ‘वृहन्मुंबई महानगरपालिका (एमसीजीएम या बीएमसी) ने अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है। दिल्ली सरकार के प्रति कोई अनादर भाव न रखते हुए भी क्या ऑक्सीजन आपूर्ति सुनिश्चित करने एवं उसके अधिकतम उपयोग में मुंबई के अनुभव से कुछ सीखा जा सकता है?’
दिल्ली में कोविड की दूसरी लहर इतनी भयावह साबित हो रही है कि अस्पतालों में बिस्तर एवं ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहे हैं। दिल्ली में कोविड संक्रमितों की संख्या अप्रैल में रहे मुंबई के आंकड़ों को पार कर चुकी है।
ऐसे में सवाल उठता है कि कोविड प्रबंधन का वह मुंबई मॉडल क्या है जिसकी सर्वोच्च अदालत ने तारीफ की है?
दिल्ली के लोगों को दूसरी लहर में सबसे बड़ी चुनौती अस्पताल में बिस्तरों, ऑक्सीजन एवं जरूरी दवाओं की कमी की रही है। मुंबई को भी पहली लहर में पिछले साल इन्हीं दिक्कतों का सामना करना पड़ा था लेकिन इस बार वह कोविड पर काबू पाने का ‘मुंबई मॉडल’एमसीजीएम ने गत अप्रैल में जंबो कोविड-19 केंद्र बनाए थे जिन्होंने सार्वजनिक एवं निजी स्वास्थ्य सुविधाओं से इतर एक बफर क्षमता तैयार की। निगम के अधिकारियों को इनकी जरूरत का अहसास शहर की घनी आबादी को देखकर हुआ था। महानगर के बड़े इलाके में लोग घनी बस्तियों में रहते हैं जहां पर लोग साझा शौचालयों का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में उनके संक्रमित होने की आशंका काफी अधिक होती है। उन क्षेत्रों में जंबो कोविड केंद्रों ने कोविड-19 देखभाल केंद्रों और अस्पतालों के सघन चिकित्सा कक्षों (आईसीयू) के बीच एक मध्यवर्ती सुविधा के तौर पर काम किया। निगम के अतिरिक्त आयुक्त सुरेश ककानी कहते हैं कि दूसरी लहर आने की आशंका को देखते हुए निगम प्रशासन ने जंबो कोविड केंद्रों की क्षमता में 4,000 बिस्तर बढ़ा दिए।
निगम के आयुक्त आई एच चहल ने पिछले साल ही नीतिगत तौर पर ‘चेज द वायरस’ कार्यक्रम शुरू कर दिया था ताकि संदिग्ध संक्रमितों का पता लगाया जा सके और उनकी जांच हो पाए। इस बार नगर निगम ने ‘चेज द पेशेंट’ अभियान चलाया हुआ है जिसमें कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए लोगों के इलाज की प्राथमिकता जरूरत के हिसाब से तय की जा सके। इसके लिए 24 निगम वार्डों में 24 घंटे सक्रिय रहने वाले वॉर रूम बनाए गए हैं। इन वॉर रूम में तैनात निगम शिक्षक एवं डॉक्टर एक कोविड-19 मरीज की हालत का आकलन करते हैं और उसके आधार पर गंभीर स्थिति वाले मरीजों को बिस्तर आवंटित करने की सिफारिश की जाती है।
हालांकि अप्रैल के पहले दो महीनों में बिस्तर आवंटन करना काफी चुनौतीपूर्ण काम था लेकिन अधिकारियों की मानें तो अब स्थिति काबू में आ चुकी है। महामारी की पहली लहर में कोविड-19 का प्रकोप सबसे ज्यादा झुग्गी बस्तियों में देखा गया था लेकिन अब मामले मध्यम आय एवं उच्च आय वर्ग वाले इलाकों में ज्यादा सामने आ रहे हैं। हर कोई निजी अस्पतालों में बिस्तर पाना चाहता था जबकि सरकारी अस्पतालों में बिस्तर खाली पड़े हुए थे। पिछले महीने एमसीजीएम ने निजी अस्पतालों के साथ मिलकर पांच सितारा होटलों में भी कोविड-19 सुविधाएं शुरू कर दीं। अस्पतालों में बिस्तर की जरूरत नहीं रखने वाले कोविड मरीजों को शहर के दो पंच-सितारा होटलों में बने स्वास्थ्य केंद्रों में इलाज कराने की मंजूरी दे दी गई जिससे अस्पतालों में बिस्तर की कमी की समस्या पर काबू पाने में थोड़ी और मदद मिली।
महाराष्ट्र सरकार के कोविड-19 कार्यबल के सदस्य डॉक्टर शशांक जोशी कहते हैं, ‘यह एक सुचारु ढंग से चलने वाला मॉडल है जिसे पिछले साल परखा गया था और इस बार भी यह असरदार है।’
मुंबई किस तरह दिल्ली से बेहतर साबित हुई है?
डॉ जोशी की मानें तो महामारी की दूसरी लहर आने के साथ ही मुंबई की प्रतिक्रिया कहीं अधिक संगठित एवं समन्वित रही है। लेकिन इस शहर की अपनी चुनौतियां भी हैं। जोशी कहते हैं, ‘हम यहां तुलना करने एवं फर्क आंकने के लिए नहीं हैं। हमें अपनी लड़ाई खुद लडऩी है।’
कोविड-19 कार्यबल की सलाह पर मुंबई के अस्पतालों ने ऑक्सीजन के अधिकतम उपयोग के तरीके अपनाए। डॉ जोशी कहते हैं, ‘हमने तेजी से ऑक्सीजन पहुंचाने वाले नेजल कैनुअल का इस्तेमाल बंद करने और बाइपैप मास्क पर जोर देने की सलाह दी थी। इसके पीछे ऑक्सीजन बचाने की सोच थी ताकि मरीजों की जान से किसी तरह का समझौता किए बगैर ऑक्सीजन की बरबादी रोकी जा सके।’ कोविड प्रबंधन से जुड़े सभी हितधारकों के बीच होने वाली नियमित चर्चा, इलाज के समान प्रोटोकॉल का पालन करने और जंबो कोविड केंद्रों एवं बड़े अस्पतालों के बीच गठजोड़ होने से भी मदद मिली। इसके अलावा अप्रैल की शुरुआत में जैसे ही हालात बिगडऩे लगे, सरकार ने शॉपिंग मॉल, रेस्टोरेंट एवं सिनेमाघरों को बंद करने जैसी पाबंदियां लागू कर दीं। उसके बाद भी सरकार ने लोगों की आवाजाही सीमित करने के लिए नए आदेश जारी किए। इन्हीं कोशिशों का नतीजा है कि बुधवार को मुंबई में 3,882 नए मामले ही सामने आए।
मुंबई ने ऑक्सीजन आपूर्ति को किस तरह स्थिर बनाए रखा है?
मुंबई में रोजाना 235 टन मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत है और शहर के बड़े अस्पतालों में लगे टैंकरों एवं शहर के बाहरी इलाकों में बने रिफिलिंग संयंत्रों से इसकी आपूर्ति होती है। पिछले कुछ महीनों में 13,000-26,000 टन की भंडारण क्षमता वाले टैंक स्थापित किए गए हैं। एमसीजीएम की योजना है कि ऑक्सीजन की किसी भी तरह की किल्लत से बचने के लिए मुंबई में दो रिफिलिंग संयंत्र स्थापित किए जाएं। इन दो संयंत्रों के लग जाने के बाद मुंबई के बाहर से ऑक्सीजन सिलिंडर लाने की जरूरत नहीं रह जाएगी। नगर निगम भविष्य में पैदा होने वाली जरूरतों को देखते हुए अपने 12 अस्पतालों में ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र लगाने की भी तैयारी कर रहा है। पिछले महीने निगम प्रशासन ने ऑक्सीजन संबंधी आपात स्थिति पैदा न होने देने के लिए कुछ प्रक्रियाएं भी निर्धारित कीं। गत 18 अप्रैल को ऑक्सीजन की किल्लत के चलते छह अस्पतालों से 168 मरीजों को दूसरी जगह ले जाने की जरूरत पडऩे के बाद ये प्रक्रियाएं तय की गई हैं। अस्पतालों के रिफिलिंग चक्र चिह्नित किए जा चुके हैं, ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ताओं को अग्रिम ऑर्डर देने के लिए निर्देश जारी हो चुके हैं और इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी कोविड नियंत्रण कक्ष से की जाती है।
मुंबई में और क्या करने की जरूरत है?
अभी मुंबई दूसरी लहर के चंगुल से नहीं निकल पाया है और तीसरी लहर के आने की भी आशंका जताई जाने लगी है तो स्थानीय प्रशासन किसी भी हाल में चैन की सांस नहीं ले सकता है। जंबो कोविड-19 केंद्रों ने मुंबई को बफर क्षमता भले ही दे दी है लेकिन आईसीयू बिस्तरों की अभी किल्लत है। नगर निकाय मुंबई के अस्पतालों में आईसीयू बिस्तर बढ़ाने की कोशिश में लगा है और बच्चों के लिए भी अलग बिस्तर लगाने की तैयारी है।