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माया की आस, पीपीपी से होगा विकास

Last Updated- December 07, 2022 | 10:03 AM IST

राज्य के तेजी से विकास और लोक कल्याण के खर्चों को पूरा करने के वास्ते संसाधन जुटाने के लिए उत्तर प्रदेश में निजी-सार्वजनिक-भागीदारी (पीपीपी) मॉडल एक नया मंत्र सिद्ध हो रहा है।


मायावती सरकार पीपीपी के जरिये विकास के नए रास्ते तलाशने की कोशिश में जुटी है। इसके लिए सरकार ऊर्जा, शिक्षा, बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य, पर्यटन और शहरी विकास हरेक क्षेत्र में पीपीपी के जरिये विकास की नई कहानी लिखने की कोशिश कर रही है।

इसके अलावा सरकार का उत्साह तब और बढ़ गया, जब निजी कंपनियों ने भी इस विकास की प्रक्रिया में भागीदार बनने की इच्छा जताई। रिलायंस, एस्सार, जीएमआर, डीएलएफ, लैंको इन्फ्राटेक आदि बड़ी भारत की उन बड़ी कंपनियों में शुमार हैं जो उत्तर प्रदेश सरकार के साथ मिलकर पीपीपी में निवेश करने की इच्छुक हैं।

हालांकि पीपीपी की छंटाई प्रक्रिया में बहुत सारी परियोजनाओं को निजी कंपनियों को दे दिया गया है और कुछ परियोजनाएं अभी विचाराधीन हैं। सरकार की महत्त्वाकांक्षी परियोजना गंगा एक्सप्रेस वे प्रोजेक्ट को बोली की प्रक्रिया के तहत जेपी ग्रुप को दे दिया गया है। यह परियोजना 30,000 करोड़ रुपये की है। कानूनी और प्रशासकीय बाधाओं के हाल ही में खत्म होने के बाद ताज एक्सप्रेस वे प्रोजेक्ट भी अब सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल हो गया है। बिजली के क्षेत्र में शाहजहांपुर जिले का रोजा प्लांट रिलायंस पावर द्वारा स्थापित किया जा रहा है।

कंपनी सूत्र ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि 2010 तक यह प्लांट भी पूरी तरह से काम करना शुरू कर देगा। सोनभद्र जिले का मेगा अनपारा सी प्रोजेक्ट भी दक्षिण भारतीय कंपनी लैंको कोंडापल्ली ग्रुप को दिया गया है।  इसके पूरा हो जाने के बाद उत्तर प्रदेश में व्यस्ततम समय में बिजली की किल्लत से राहत मिल जाएगी। इस प्रोजेक्ट के जरिये 2000 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जाएगा। राज्य सरकार इलाहाबाद में दो बिजली प्लांट स्थापित करने के लिए पांच कंपनियों द्वारा लगाई गई बोली की जांच कर रही है।

रिलायंस, लैंको, एनटीपीसी, जिंदल स्टील ऐंड पावर लि. (जेएसपीएल), और कलकत्ता इलेक्ट्रिक सप्लाई कंपनी (सीईएससी) में से रिलायंस ने सबसे कम टैरिफ की बोली लगाई है। सरकार राज्य की चीनी मिलों के निजीकरण पर भी काम कर रही है और इस बाबत उसने 22 उत्तर प्रदेश शुगर कॉरपोरेशन मिलों को बेचने के लिए अभिरूचि पत्र आमंत्रित किए हैं। पीपीपी मॉडल को आगे बढ़ाने और राज्य को बेहतर निवेश गंतव्य साबित करने के लिए राज्य सरकार निवेशकों की एक बैठक 14 जुलाई को नई दिल्ली में बुला रही है।

इस बैठक में देश के वरिष्ठ उद्योगपतियों, निवेशकों, बैंकरों, औद्योगिक चैंबरों और प्रतिनिधियों के शामिल होने की संभावना है। उत्तर प्रदेश के सात शहरों- लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, आगरा , इलाहाबाद, मेरठ, गाजियाबाद और अलीगढ़ में शहरी विकास विभाग ने भी एकीकृत शहरी कायाकल्प योजना (आईयूआरपी) को तैयार करने के लिए अभिरूचि पत्र आमंत्रित किए हैं। आईयूआरपी में मल्टी-मॉडल यातायात तंत्र, पार्किंग सुविधाएं, बुनियादी ढांचे का विकास, साफ-सफाई, जन-सुविधाएं और कूड़ा-कचरा निपटारा आदि को शामिल किया जाएगा।

चयनित परामर्शदाता इस संबंध में एक व्यवहारिक रिपोर्ट सौंपेगी और इसी आधार पर बोली लगाने के लिए निजी कंपनियों को आमंत्रित किया जाएगा। शिक्षा क्षेत्र में भी सरकार उच्च और तकनीकी शिक्षण संस्थानों की स्थापना के लिए निजी कंपनियों की भागीदारी बनाने की योजना पर विचार कर रही है। निजी क्षेत्रों के लिए सूचनाओं और व्यापार प्रस्तावों पर त्वरित कार्रवाई के लिए एक प्लेटफॉर्म तैयार करने के वास्ते राज्य सरकार ने उद्योग बंधु की स्थापना की है। वैसे इस इकाई को काम करने के लिए ज्यादा स्वतंत्रता नहीं प्रदान की गई है।

राज्य में पीपीपी की उपादेयता और स्पष्ट रेखा विभाजन के मुद्दे पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस हर कदम के अलावा नियंत्रण और गतिविधियों को लेकर विभागों में टकराहट पैदा होने की बात पर भी सोचा जाना चाहिए। भारतीय उद्योग संघ (आईआईए) के कार्यकारी निदेशक डी एस वर्मा ने कहा कि पीपीपी मॉडल को छोटे और मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) में लागू नहीं किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि एमएसएमई को अनाथ क्षेत्र की भांति इस मॉडल में भी नजरअंदाज किया जा रहा है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को भी नजरअंदाज किया जा रहा है। वर्मा ने सुझाव दिया है कि किसी भी परियोजना को निर्धारित अवधि में पूरा करने के लिए संक्रमण पथ मापक (सीपीएम) सूत्र की रूपरेखा तय की जानी चाहिए।

First Published - July 9, 2008 | 10:33 PM IST

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