धान की उपज के लिए हिमाचल में खाद की कमी की कोई खबर नहीं आई है। धान के लिए मुख्य तौर पर नाइट्रोजन फॉस्फोरस पोटैशियम (एनपीके) और यूरिया का इस्तेमाल किया जाता है।
खरीफ मौसम में राज्य को 4000 टन एनपीके और 32000 टन यूरिया की जरुरत होती है। एजेंसियों से प्राप्त एनपीके का बफर स्टॉक 2200 टन का है। हिमाचल प्रदेश राज्य को-ऑपरेटिव मार्केटिंग और उपभोक्ता फेडरेशन लि. (हिमफेड) से पहले ही 1200 टन खाद की खरीद की जा चुकी है और 800 टन खाद ईफको दे चुकी है।
हिमफेड ने 20,000 टन यूरिया की आपूर्ति कर चुकी है और बांकी यूरिया भारतीय किसान खाद को-ऑपरेटिव लि. (इफको) के द्वारा आपूर्ति की जा रही है। किसानों के बीच से राज्य में एनपीके और यूरिया खाद की कमी की कोई खबर नहीं है। वैसे सेब की खेती करने वाले किसानों ने कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट (सीएएन) खाद की कमी की बात कही है।
अधिकारियों का कहना है कि राज्य में 5000 टन सीएएन की जरुरत है जबकि इसका राज्य में मात्र 3500 टन का संग्रह है। सीएएन की कमी की मुख्य वजह यह है कि इसकी आपूर्ति राष्ट्रीय खाद लि. (एनएफएल) से की जाती है और नये नियम के बाद इससे सीएएन की आपूर्ति प्रभावित हुई है। अब सीएएन खाद की मांग गुजरात नेशनल फर्टिलाइजर से पूरी की जा रही है।
सीएएन की कमी के कारण सरकार किसानों को यूरिया के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित कर रही है और उनका कहना है कि यूरिया सीएएन का एक बेहतर विकल्प है। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि यूरिया में नाइट्रोजन की मात्रा 46 प्रतिशत होती है और सीएएन में इसकी मात्रा मात्र 23 प्रतिशत होती है। और तो और यूरिया की कीमत सीएएन खाद की अपेक्षा कम होती है। इसके अलावा राज्य में जैविक खाद का इस्तेमाल भी तेजी से बढ़ा है। इससे रासायनिक खाद पर निर्भरता कम हुई है।
अधिकारियों का कहना है कि धान उपजाने वाले किसान अब गेहूं और धान के बजाय नकदी फसलों को उपजाने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। किसान ऑफ सीजन सब्जियों के उत्पादन पर भी जोर दे रहे हैं। हिमाचल के कृषि अधिकारियों के मुताबिक राज्य में सिंचाई की समस्या है और कृत्रिम सिंचाई के अभाव के कारण किसान ऑफ सीजन सब्जियों के उत्पादन करने लगे हैं। ग्याहरवीं पंचवर्षीय योजना के तहत ऑफ सीजन सब्जियों के लिए 52000 हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की व्यवस्था का प्रावधान है और 13 लाख टन सब्जियों के उत्पादन का लक्ष्य है।