उच्चतम न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि दिल्ली में यदि मकान मालिक अपने वाजिब आवासीय उद्देश्य के लिए अपने मकान का इस्तेमाल करना चाहता है तो वह ऐसे किराएदारों से भी मकान खाली करा सकता है जो परिसर का व्यावसायिक इस्तेमाल कर रहे हैं।
न्यायालय के बुधवार के इस फैसले से मकान मालिकों को बड़ी राहत मिली है क्योंकि अभी तक व्यावसायिक इस्तेमाल करने वाले किराएदारों से परिसरों को खाली नहीं कराया जा सकता था।
इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को भी पलट दिया जिसके तहत व्यावसायिक किराएदारों को संरक्षण दिया गया था। उच्च न्यायालय ने आवासीय और व्यावसायिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल की जा रही जमीन को अलग अलग करते हुए कहा था कि मकान मालिक सिर्फ उस दशा में परिसर को खाली करा सकता है जबकि किराएदार उसका इस्तेमाल आवासीय उद्देश्य के लिए कर रहा हो।
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि उच्च न्यायालय का आदेश अब अप्रासंगिक हो चुका है क्योंकि यह आदेश विभाजन के समय विस्थापितों की बढ़ी संख्या के कारण राष्ट्रीय राजधानी में भवनों की कमी हो जाने के संदर्भ में दिया गया था।न्यायालय ने आगे कहा कि अब हालात में काफी सुधार हुआ है और इसलिए उक्त आदेश प्रासंगिक नहीं रह गया है। न्यायालय ने कई मकान मालिकों की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया।
इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली किराया नियंत्रण कानून 1958 की धारा 14 (1)(ई) को भी आंशिक तौर से खत्म कर दिया है। इस धारा में किराए के प्रकार में विभेद किया गया था।
न्यायमूर्ति बी एन अग्रवाल और न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी की खंडपीठ ने कहा कि यदि मकान मालिक अपने या अपने परिवार के किसी आश्रित के रहने के लिए वाजिब वजह के साथ मकान खाली कराना चाहता है तो यह प्रावधान आवासीय और गैर-आवासीय परिसरों के बीच भेदभाव करता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 14 की भावना का उल्लंघन है।
वास्वतिक उपबंध मकान मालिक के वाजिब आवासीय उद्देश्य के लिए किराएदार से परिसर को खाली करने के संबंध में है। इसलिए उच्चतम न्यायालय ने प्रावधान के भेदभावपूर्ण शब्द को हटा दिया है और अब इसे इस तरह पढ़ा जाएगा : ‘ मकान मालिक या उसके परिवार के आश्रित के वाजिब उद्देश्य के लिए …’। इससे पहले कानून के मुताबिक दिल्ली में मकान मालिकों के पास किराएदारों से परिसर को खाली करने के लिए आवासीय और वाणिज्यिक मामले में एक समान अधिकार नहीं हासिल थे।
दिल्ली किराया नियंत्रण कानून में 1956 में संशोधन कर यह वर्गीकरण किया गया था। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि संशोधन के जरिए किए गए वर्गीकरण का कानून द्वारा हासिल किए जाने वाले उद्देश्य के साथ कोई संबंध नहीं है। न्यायालय के इस फैसले से दिल्ली में बड़ी संख्या में मकान मालिकों को फायदा मिलेगा। आदेश में कहा गया है कि मकान मालिक की वाजिब जरुरत के लिए परिसर खाली करने में किराएदारों को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।