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आरी जरदोजी की देश-विदेश में धूम

Last Updated- December 07, 2022 | 12:42 AM IST

देश में ही नहीं पूरी दुनिया में प्रसिद्ध लखनऊ की आरी जरदोजी(हाथ की कढाई) नए कीर्तिमानों को स्थापित कर रही है।


पिछले दस सालों में आरी जरदोजी के काम में भारी उछाल आया है। इससे नवाबों के समय से चली आ रही हाथ की इस कारीगरी की काया ही पलट गई है। कुछ सालों पहले मंदी से परेशान दिखाई देने वाला यह काम नवाबी शहर से निकलकर अब बालीवुड और फैशन जगत की रौनक बढ़ा रहा है।

हाथ की कढ़ाई का यह काम फैशन डिजाइनरों द्वारा बनाए गए लंहगों,साड़ियों, कुर्तो और शेरवानियों में आसानी से देखने को मिल जाता है। लखनऊ स्थित आरी जरदोजी के कारखाने के मालिक अकबर खान का कहना है कि आरी जरदोजी के काम वाले कपड़ो जैसे सलवारसूट,साड़ी, चुनरी, लंहगे, शेरवानी की बाजार में लगातार मांग बढ़ रही है।

अकबर का कहना है कि पिछले दस सालों में नवाबों के समय से हो रहे आरी जरदोजी के इस काम में काफी उछाल आ गया है। इसका कारण आरी जरदोजी की कढ़ाई वाले कपड़ो की बढ़ती मांग है। आज लखनऊ में ही आरी जरदोजी के लगभग 10 हजार कारखाने होंगे। इन कारखानों में लगभग 50 हजार लोग कारीगर के तौर पर काम कर रहे है। अकबर का कहना है कि देश में पंजाब, कलकत्ता, बनारस, दिल्ली, मुंबई में आरी जरदोजी की कढ़ाई वाले कपड़ो की भारी मांग रहती है।

इसके साथ ही इन कपड़ों की लंदन, पेरिस, इटली,खाड़ी देशों और अमेरिका में भी भारी मांग रहती है। बालीवुड और टीवी जगत में आरी जरदोजी की कढ़ाई वाले कपड़ो ने फैशन को एक नया आयाम दे दिया है। अकबर का कहना है कि लखनऊ में आरी जरदोजी का कारोबार करोड़ो रुपयों का है।

चार से पांच कारीगरों वाले एक कारखाने में महीने भर में पांच से छ साड़ियों का काम पूरा किया जाता है। इनमें से प्रत्येक साड़ी की कीमत 3 हजार से  5 हजार के बीच होती है। लेकिन इस धंधे में ज्यादा मुनाफा कारखानदारों और कारीगरों को न होकर बड़े दुकानदारों व इन कपड़ो को सीधे तौर पर ग्राहक के हाथों में बेचने वाले व्यापारियों को होता है। क्योंकि वे इन क पड़ो की ग्राहकों से दौगुनी कीमत वसूल लेते है।

आरी जरदोजी का काम करने वाले एक कारीगर मोहम्मद असलम का कहना है कि रमजान, होली, दीवाली, और दूसरे त्यौहारों के मौसम में काम में भारी-भरकम उछाल रहता है लेकिन गर्मी के मौसम में काम इतना गिर जाता है कि कई बार कारखाना मालिक लागत भी नहीं निकाल पाते है। लखनऊ शहर के अलावा यह काम अब देहातों में भी अपने पैर पसार चुका है।

First Published - May 20, 2008 | 9:31 PM IST

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