भारत इस वक्त जी-20 देशों की अध्यक्षता कर रहा है और इसके तहत अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान के रूप में पहचाने जाने वाले बहुपक्षीय विकास बैंकों (एमडीबी) में सुधार वास्तव में वैश्विक स्तर के सुधार एजेंडे का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। सबसे बड़े बहुपक्षीय विकास बैंकों के रूप में विश्व बैंक समूह (डब्ल्यूबीजी) ऐसे सुधारों के लिए सबसे प्रमुख समूह माना जा रहा है। स्वयं में सुधार लाने में अग्रणी भूमिका निभाकर यह अन्य एमडीबी के लिए एक उदाहरण स्थापित कर सकता है।
डब्ल्यूबीजी, वित्त प्रदाता, सूचनाओं का संग्रहकर्ता और एक विश्वसनीय सलाहकार जैसी तीन मुख्य अहम भूमिकाएं निभाता है। वित्त प्रदाता के रूप में इसे अपने कम आय वाले सदस्य देशों (एलआईसी) और मध्यम आय वाले देशों (एमआईसी) को ऋण देने की मात्रा के जोखिम को कम करने के साथ-साथ इसका दायरा बढ़ाने की आवश्यकता है।
कम आमदनी वाले सदस्य देशों की बाजार तक पहुंच कम है। इनकी अर्थव्यवस्था का आकार छोटा और इसमें काफी अस्थिरता भी है। इन्हें प्राकृतिक आपदाओं, वैश्विक जोखिम से बचने के उपायों, वैश्विक मांग में अस्थिरता, अनिश्चित व्यापार के माहौल, व्यापार की शर्तों और विनिमय दर में उतार-चढ़ाव से पैदा हुई कई चुनौतियों का सामना करना होता है। ये सभी कारक उनकी कर्ज लेने की क्षमता में बाधा बनकर खड़े होते हैं। विश्व बैंक समूह को अधिक लचीलापन बरतने और कम आमदनी वाले देशों की क्षमता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
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कम आय वाले देशों के बाहरी ऋण में आधी हिस्सेदारी एमडीबी की है लेकिन इसके बावजूद इन्हें ऋण संकट से जूझना पड़ता है। यह एमडीबी द्वारा कराए गए ऋण का बोझ उठाने में सक्षम होने से जुड़े आकलन के अध्ययन की सटीकता के बारे में सवाल उठाता है। विश्व बैंक समूह सहित जितने भी एमडीबी हैं वे नए ऋण कारोबार को हासिल करने के लिए पुरस्कृत करने को तैयार होते हैं। ताजा ऋण की स्वीकृति तभी मिल सकती है जब यह माना जाए कि देश निरंतर ऋण लेने की क्षमता रखता है। इससे अनुकूल ऋण की निरंतरता के आकलन को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है।
इसके लिए विश्व बैंक समूह को विनिमय दर मूल्यह्रास, जलवायु जोखिम और व्यापार से जुड़ी प्रतिस्पर्द्धा की स्थितियों पर विचार करते हुए कम आमदनी वाले देशों के अधिक विश्वसनीय ऋण स्थिरता आकलन करना चाहिए। कम आमदनी वाले देशों के ऋण की समग्र समीक्षा, ऋण पारदर्शिता में वृद्धि और उनके मुद्रा जोखिम को कम करना आवश्यक है।
ऐसे देशों की द्विपक्षीय फंडिंग के निजी या संदिग्ध स्रोतों तक पहुंच कम की जानी चाहिए और रियायती दरों पर बहुपक्षीय फंडिंग का हिस्सा बढ़ाया जाना चाहिए। इसके अलावा चुनौतियों से उबरने और क्षमता बढ़ाने के साथ ही कम आमदनी वाले देशों को स्थिरता और संपन्नता की दिशा की ओर जाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
इन देशों के विपरीत मध्यम स्तर की आमदनी वाले देशों की बाजार तक पहुंच होती है और वे निजी पूंजी प्रवाह को आकर्षित करने में भी सक्षम हैं। लेकिन पूंजी आवक की गति में स्थिरता नहीं होती है। वैश्विक धारणा में किसी भी तरह के बदलाव से निजी पूंजी प्रवाह पर तात्कालिक रूप से विपरीत प्रभाव पड़ता है। विश्व बैंक समूह निजी पूंजी प्रवाह के जोखिम को कम कर मध्यम स्तर की आमदनी वाले देशों की फंडिंग के दायरे को बढ़ा सकता है। इसे गारंटी, अस्थायी विनिमय या आकस्मिक ऋण की पेशकश के जरिये पूरा किया जा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) वर्तमान में आकस्मिक ऋण की पेशकश करता है, लेकिन इसे लेने वालों देशों की संख्या सीमित है क्योंकि आईएमएफ से मदद मांगने पर एक नकारात्मक छवि बनती है। विश्व बैंक समूह द्वारा दी जाने वाली मदद से ऐसी किसी नकारात्मक छवि की संभावना नहीं होती है क्योंकि आईएमएफ आर्थिक संकट के दौरान उधार देता है, जबकि विश्व बैंक समूह विकास से जुड़े कार्यों की जरूरतों के लिए ऋण देता है। परिचालन के स्तर पर देखा जाए तो यह जोखिम बीमा और गारंटी इकाई, बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (एमआईजीए) के माध्यम से नवाचार को शामिल करेगा।
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इसके अलावा इसे जलवायु परिवर्तन जैसी प्राथमिकताओं के लिए मध्यम स्तर की आमदनी वाले देशों को उपलब्ध कराए जाने वाले वाले वित्त में वृद्धि करनी चाहिए। भारत की जी-20 अध्यक्षता में गठित स्वतंत्र विशेषज्ञ समूह ने इसको लेकर महत्त्वपूर्ण सिफारिशें की हैं।
‘नॉलेज बैंक’ के रूप में विश्व बैंक समूह के प्रदर्शन में सुधार के लिए समान रूप से बड़ी गुंजाइश मौजूद है। इस नॉलेज बैंक की परिकल्पना विश्व बैंक ऋण की गुणवत्ता बढ़ाने और विकासशील देशों के लिए सेवाओं की एक नई धारा विकसित करने के अवसर के रूप में की गई थी। इसके परिचालन बजट का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा, ज्ञान के उत्पादन और प्रसार के लिए आवंटित किया जाता है लेकिन इसके बावजूद इसकी प्रासंगिकता या प्रभाव सीमित रहा है। इसके लिए एक अलग स्वतंत्र समूह शुरू करने की आवश्यकता है जो आंतरिक संगठन और प्रोत्साहन, बाहरी जुड़ाव, सहयोग और इसके ज्ञान कार्य के प्रभाव मूल्यांकन को देखे।
डब्ल्यूबीजी की जानकारी से जुड़ा काम अक्सर विभिन्न देशों के सूचकांक से जुड़ी सूचना से संबंधित होता है। उदाहरण के तौर पर इनमें से कुछ सूचकांक जैसे कि ‘कारोबार सुगमता’ सूचकांक, कई बार अपने पक्षपातपूर्ण रवैये और अविश्वसनीयता के चलते आलोचना के घेरे में आए हैं। विश्व बैंक समूह को इससे जुड़े तर्क, इसकी प्रणाली और प्रासंगिकता पर कड़ी निगाह रखने की आवश्यकता है और उनमें ही बदलाव लाने की आवश्यकता है जो सबसे ज्यादा प्रासंगिक हो।
इसे अपनी शोधपरक तथा प्रमुख रिपोर्टों को देश की प्रासंगिकता के अनुरूप बनाने और इसके पहुंच के दायरे का भी आकलन करना चाहिए। भारत में इसके काम का अंदाजा एक उदाहरण से मिलता है। भारत में विकास से जुड़ी कई चुनौतियां हैं जिनमें महिला श्रम बल की निरंतर कम होती भागीदारी, विनिर्माण क्षेत्र में सुस्ती और अपने कार्यबल को न केवल भारतीय, बल्कि वैश्विक बाजारों की सेवा के लिए भविष्य के लिए तैयार करने जैसी अनिवार्यता शामिल है। विश्व बैंक समूह इन महत्त्वपूर्ण मुद्दों से जुड़ी चर्चा के परिदृश्य से ही गायब है।
वहीं दूसरी ओर, यह हर साल भारत में वृद्धि से जुड़े छह पूर्वानुमान प्रकाशित करता है, जिनमें से प्रत्येक एक बड़े पूर्वानुमान में त्रुटि होती है और अन्य की तुलना में भी कोई सटीकता नहीं होती है। आईएमएफ भी पहले से ही इसी तरह के पूर्वानुमान प्रकाशित करता है इसलिए विश्व बैंक के संसाधनों को किसी और दिशा में लगाया जा सकता है। एक विश्वसनीय सलाहकार के रूप में इसकी भूमिका में इसी तरह की कमियां हैं, जिसके मुताबिक इससे यह उम्मीद की जाती है कि यह विकासशील देशों के सामने आने वाले जटिल नीति विकल्पों को लेकर विभिन्न देशों के प्रासंगिक अनुभवों को साझा करे। वर्तमान विकेंद्रीकृत मॉडल में देश के कर्मचारी खुद वैश्विक चलन से अच्छी तरह से वाकिफ नहीं हैं। देश के कार्यालयों में थोड़े-बहुत विचार-विमर्श से देश-विशिष्ट से जुड़ी जानकारी नहीं बढ़ती है ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्तर के व्यापक ज्ञान से लैस होना दूर की बात है।
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विश्व बैंक समूह को नीतिगत मुद्दों पर विभिन्न देशों को सलाह देने के लिए और दूसरी तरफ स्थानीय भागीदारों के साथ जुड़ने के लिए अधिक अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों को केंद्र में लाने की आवश्यकता है। स्थानीय संस्थान, विश्व बैंक समूह द्वारा किए गए खर्च के एक हिस्से पर काम करते हैं और इसकी प्रासंगिकता और वैधता को बरकरार रखते हुए इसके संसाधनों का उपयोग बुद्धिमानी से करना ही फायदेमंद होगा।
विश्व बैंक समूह, एक अनूठा संस्थान है और इसके पास देने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन यह एकाधिकार वाले भाव के साथ काम करने के लिए उपयुक्त नहीं है। इसे अपनी अधिक जांच, आत्मनिरीक्षण पर जोर देना चाहिए। ये सभी सुधार तभी संभव हैं जब विश्व बैंक पूरी तरह से निजी तौर पर काम करने लगे जैसा कि इसके ग्राहक देशों ने किया है।
विकासशील दुनिया के देशों ने महामारी को पीछे छोड़ते हुए काम फिर से शुरू कर दिया है वहीं विश्व बैंक समूह पिछले साढ़े तीन वर्षों से ज्यादातर वर्चुअल तरीके से काम करता रहा है। वॉशिंगटन डीसी में इसके मुख्यालय के साथ-साथ नई दिल्ली सहित इसके देश के कार्यालयों में भी यही स्थिति रही है। स्वतंत्र विशेषज्ञ समूह की रिपोर्ट के प्रस्ताव के अनुसार जी-20 की भारत की अध्यक्षता में एमडीबी और विश्व बैंक समूह से जुड़े सुधार ऐतिहासिक परिणाम साबित हो सकते हैं।
(लेखिका एनसीएईआर की महानिदेशक हैं। उन्होंने विश्व बैंक और आईएमएफ दोनों में एक-एक दशक तक काम किया है)