एडटेक कारोबार बैजूस एक समय तेजी से विकसित होने वाले भारतीय स्टार्टअप जगत का एक खराब विज्ञापन बनकर सामने आया है। देश में 80,000 से अधिक पंजीकृत स्टार्टअप हैं जिनमें से कम से कम 70 फीसदी अंतत: नाकाम हो जाएंगी जबकि दूसरी ओर करीब 100 स्टार्टअप ने यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल किया है और उनका मूल्यांकन 100 करोड़ डॉलर से ऊपर जा पहुंचा।
इनमें बैजूस सबसे बड़ी और लगातार विवादित रही है और अब वह ऐसे उतारचढ़ाव से गुजर रही है जहां उसका पतन भी हो सकता है और वह किसी तरह बच भी सकती है। इनमें से दूसरी संभावना के बारे में हाल के सप्ताहों और महीनों में काफी कुछ लिखा जा चुका है।
बैजूस के 22 अरब डॉलर के मूल्यांकन (जो टाटा मोटर्स से ज्यादा कम नहीं) के अलावा ये बातें उसकी ओर ध्यान आकृष्ट करती थीं- बिक्री के आक्रामक तौर तरीके, खराब कार्य संस्कृति, अंकेक्षण के मामले में उसका प्रश्नांकित करने योग्य व्यवहार और निरंतर संदेह की यह स्थिति कि छात्रों को की जा रही पेशकश क्या वाकई उन्हें मिल पा रही है?
मार्च 2021 में समाप्त हुए वर्ष में उसने 4,588 करोड़ रुपये का घाटा दर्शाया जो उसके राजस्व से दोगुना था। मार्च 2022 के नतीजे अब तक सामने नहीं आए हैं क्योंकि अंकेक्षक छोड़कर जा चुका है और गैर प्रवर्तक निदेशक कंपनी छोड़ गए हैं। इस बीच कंपनी ने हजारों कर्मचारियों को निकाल दिया है।
एक निवेशक ने अपने निवेश में 40 फीसदी की कमी की है जबकि एक अन्य ने अपने बहीखातों में कंपनी का मूल्यांकन 75 फीसदी कम कर दिया है। कंपनी कर्जदाताओं के खिलाफ अदालत में गई है। उसका कहना है कि उसे एक अरब डॉलर की नई धनराशि जुटाने की उम्मीद है और कंपनी के संस्थापक बैजू रवींद्रन लगातार वादा कर रहे हैं कि भविष्य बेहतर होगा।
असमय विफलता इस क्षेत्र के कारोबार का हिस्सा रही है। एडुकॉम्प का उदाहरण हमारे सामने है। यही वजह है कि शुरुआती दौर में चीजों की अनदेखी करते हुए निजी निवेशकों ने अवास्तविक मूल्यांकन पर भी निवेश किया। उन्हें आशंका थी कि वे कहीं पीछे न छूट जाएं। उनका कहना था कि कंपनी प्रबंधन ने भी अक्सर मुनाफे के बजाय वृद्धि पर जोर दिया। इसमें लालच की भूमिका रही।
कई प्रवर्तकों पर धोखाधड़ी का आरोप लग चुका है और कई कंपनियों पर खराब संचालन मानक अपनाने का। हालांकि अभी भी भारत में अमेरिका के थेरानॉस जैसा कोई मामला सामने नहीं आया है। परंतु यह स्पष्ट है कि वर्षों तक नकदी की आसान उपलब्धता और अवास्तविक मूल्यांकन का दौर समाप्त हो चुका है। एक ऐसे क्षेत्र में जिसमें बीते एक दशक में 150 अरब डॉलर का निवेश आया हो (इसमें से अधिकांश पैसा विदेशों से आया) वहां 2023 के शुरुआती महीनों में यह 2022 की तुलना में 80 फीसदी कम है।
ऐसे में मूल्यांकन में कमी आ रही है। कुछ अन्य स्टार्टअप की बात करें तो जोमैटो के शेयरों की कीमत पहले चढ़ी फिर उनमें गिरावट आई और अब वे आरंभिक सूचीबद्धता मूल्य के आसपास हैं। जबकि पेटीएम के शेयरों में तो बिना तेजी के ही गिरावट आ गई। नायिका और पॉलिसी बाजार के शेयरों की कीमतों में भी उतार-चढ़ाव और फिर आंशिक सुधार आया।
निवेशकों का पैसा न आने के कारण कई कंपनियों ने स्थायित्व और मुनाफे पर ध्यान केंद्रित कर लिया है। इसका असर प्रचार खर्च में कटौती, धीमी वृद्धि और कारोबार में कमी के रूप में सामने आया। इसके अलावा बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी ने भी सुर्खियां बटोरी हैं।
कई ऐसी स्टार्टअप जिनका नाम घर-घर में सुनाई देता है वे भी घाटे में चल रही हैं। नायिका घाटे में है जबकि पेटीएम मुहाने पर है। ओयो को उम्मीद है कि वह एक या दो साल में घाटे से उबर जाएगी। बैजूस समेत कई अन्य कंपनियों के मुताबिक साल-दो साल में उनकी स्थिति सुधर जाएगी जबकि कुछ अन्य ने परिचालन मुनाफे के रूप में अंतरिम कदम की बात कही है। इसका अर्थ यह हुआ कि नकदी की खपत जारी रहेगी। इसके बावजूद बाहरी फंडिंग से हासिल वृद्धि के बजाय टिकाऊपन की ओर जाने से ही इस क्षेत्र की वास्तविक स्थिति सामने आएगी।
इस कहानी का एक वृहद आर्थिक पहलू भी है जहां कुछ स्टार्टअप बड़े कारोबार में तब्दील हो गए हैं और बड़ी तादाद में कर्मचारियों से काम लेते हैं। इसके अलावा बड़ी स्टार्टअप ने भारतीय बाजारों को बदला है और छोटे कारोबारों के लिए परिचालन माहौल को परिवर्तित करते हुए उपभोक्ताओं की आदतों में भी तब्दीली लाई है। लाखों लोगों के लिए डिजिटल भुगतान और चीजों की तत्काल आपूर्ति, डायल-अप कैब सेवा, सस्ती दवाओं, आसान निवेश आदि के बिना जिंदगी की कल्पना करना भी मुश्किल होगा।
इनमें से कई अमेरिका तथा दुनिया के अन्य हिस्सों की स्टार्टअप की नकल पर चल रहे हैं तो कुछ में तकनीकी गहराई भी है। बैजूस लड़खड़ा गई है और उसका पतन भी हो सकता है लेकिन हमें उम्मीद करनी चाहिए कि अधिकांश स्टार्टअप बदले हुए संदर्भ में पनपना सीख जाती हैं। उनके बिना अर्थव्यवस्था इतनी जीवंत नहीं रह जाएगी।