नेविल तूली तो इस वक्त एक बेहतरीन हफ्ते का लुत्फ उठा रहे हैं। अभी हाल ही में उनकी कला संस्था ‘ओसियान’ की कीमत 10 या 20 नहीं, पूरे 840 करोड़ रुपए लगाई गई है।
फिर दुबई की एक प्राइवेट इक्विटी फर्म अबराज कैपिटल ने 80 करोड़ रुपए की मोटी कीमत देकर इस संस्था में 9.4 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी है। साथ ही, तूली की भारत के आधुनिक और समकालीन कला पर आयोजित हुई नीलामी से उन्होंने 30.38 करोड़ रुपए एक ऐसे समय कमाए, जब बाजार की नब्ज पर कथित रूप से हाथ रखने वाले बुरे वक्त का दावा कर रहे थे।
तब तो तूली के लिए अब बचा नहीं, क्यों? हमारी मानें तो नहीं। मीठी जुबान वाले और काफी चर्चा में रहने वाले यह शख्स घरेलू कला बाजार की अहमियत को पहचाने वाला पहला आदमी है। उन्होंने कला बाजार में अपनी जगह बनानी तब शुरू की, जब खुद को खुदा की नेमत समझने वाले कलाकार उनकी घोर आलोचना करने में जुटे हुए थे।
हर तरफ से विरोध का सामना करने के बावजूद यह शख्स अपने मुकाम को हासिल में करने में कामयाब रहा। जिसने किसी ने भी उन्होंने स्कूली बच्चों के साथ एमएम सूजा की पेंटिग्स पर चर्चा करते हुए देखा, वह कला को लेकर उनके जोश से अच्छी तरह से परिचित होगा। जब वह पेंटिग्स को बनाने या उनकी निलामी में व्यस्त हुआ करते थे, तो उनके ऑफिस का सोफा ही उनका बिस्तर बन जाता था। भूख तो जैसे गायब ही हो जाती थी।
वैसे, जब आप उनसे बात करेंगे तो वह अक्सर इस मुल्क में अच्छे कला संस्थानों की कमी का मुद्दा जोरदार तरीके से उठाएंगे। वैसे, खाने के टेबल पर वह खाने से ज्यादा बात करना पसंद करते हैं। उनकी 28 इंज की कमर इसी बात का तो नतीजा है।
उनकी द फेल्मेड मौजैक और उनकी नीलामियों के कैटलॉगों को भारतीय कला पर लिखा गया पहला उच्च स्तरीय साहित्य माना जाता है। बाद में पॉपुलर कल्चर की धारा में बहते हुए उन्होंने फिल्मों के पोस्टर और दूसरी चीजें इकट्ठी करनी शुरू कर दी। उन्होंने फिर सिनेमाया फिल्म मैगजीन और डूरंड कप के अधिकार भी खरीद लिए। वैसे उनके हर कदम की तारीफ ही नहीं की गई। उनके कई आलोचक भी मौजूद हैं।