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जो नही है सुनने में सक्षम वो चलायेगे रेस्त्रा

Last Updated- December 05, 2022 | 4:31 PM IST

ऐसा देश में शायद पहली बार हो रहा है। एक रेस्तरां को वैसे लोग चलाएंगे जो दूसरों की आवाज सुनने में सक्षम नहीं हैं। ये लोग आपके होठों की हरकत को समझकर आपकेसामने आपका पंसदीदा व्यंजन पेश करेंगे।


अंतरराष्ट्रीय फास्ट फूड चेन केनटकी फ्राइड चिकन (केएफसी) ने कोलकाता में एक ऐसा ही रेस्तरां खोला है। यह रेस्तरां वैसे लड़केऔर लड़कियां मिलकर चलाएंगे, जो अपने कान से लाचार हैं।


कुल 37 ऐसे लड़के-लड़कियां मिलकर इस काम को अंजाम देंगे।
गौरतलब है कि केएफसी केचैन्ने स्थित एक रेस्तरां में किचन की जिम्मेदारी पहले से ही ऐसे लोग संभाल रहे हैं।


लेकिन देश में यह पहली बार होगा जब ये लोग किचन के प्रंबधन के अलावा उपभोक्ताओं से ऑर्डर लेंगे, उन्हें भोजन परासेंगे और रेस्तरां की साफ-सफाई भी करेंगे।


इस रेस्तरां में 8 सामान्य लोगों को भी बहाल किया गया है, जो फोन केजरिए उपभोक्ताओं से ऑडर ले सकें।


साथ ही अगर इन लड़के-लड़कियों को उपभोक्ताओं से संवाद कायम करने में दिक्कतें पेश आती हैं, ये लोग इसमें भी उनकी मदद करेंगे।
केएफसी के प्रबंध निदेशक उन्नत वर्मा का कहना है कि कहीं न कहीं कॉरपोरेट जगत की समाज के प्रति भी जिम्मेदीरी बनती है और इसी को ध्यान में रखकर उन्होंने यह फैसला किया।


उन्होंने बताया कि कोलकाता स्थित इस रेस्तरां के सभी कर्मचारियों को संकेत भाषा और होठों की हरकतों को समझने की ट्रेनिंग दी गई है, ताकि वे उपभोक्ताओं की बातों को आराम से समझ सकें।


उन्हें उपभोक्ताओं की पंसद और ऑर्डर लेने के बारे में गहन प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। इसी तरह सामान्य कर्मचारियों को भी इन लोगों से बेहतर तरीके से संवाद स्थापित करने के लिए ट्रेनिंग दी गई है।


वर्मा ने बताया कि विश्वस्तर पर पहले से ही सिंगापुर और मध्यपूर्व के देशों में कंपनी के ऐसे रेस्तरां मौजूद हैं, जिनका संचालन आवाज सुनने से लाचार लोगों द्वारा किया जाता है।


ये लोग न सिर्फ किचन का काम संभाल रहे हैं, बल्कि उपभोक्ताओं से ऑर्डर भी लेते हैं। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि विश्वभर में कंपनी के ऐसे रेस्तराओं की तादाद कितनी है।


कोलकाता स्थित अपने इस रेस्तरां के लिए केएफसी ने यहां के गैरसरकारी संगठन ‘साइलेंस’ से हाथ मिलाया है।


संस्था के सुब्रतो मजूमदार कहते हैं कि ‘साइलेंस’ आवाज सुनने में अक्षम लोगों के बीच 1979 से काम कर रही है और अखबारों में विज्ञापनों के जरिए रोजगार के इच्छुक ऐसे लोगों को संस्था में बुलाती है।


उनके मुताबिक, चूंकि ऐसे हर लोगों को संस्था में रखना संभव नहीं होता, लिहाजा उनके लिए दूसरी जगहों पर रोजगार का प्रबंध किया जाता है। साथ ही संस्था ऐसे लोगों के लिए रोजगारोन्मुखी कोर्स भी चलाती है।


संस्था द्वारा चलाए जा रहे आर्ट एंड क्राफ्ट कोर्स की फीस महज 500 रुपये है। इस कोर्स की अवधि एक साल की होती है। इसके अलावा इन लोगों के लिए 6 महीने का कंप्यूटर कोर्स भी उपलब्ध है, जिसकी फीस 288 रुपये है।


इन कोर्सों के सर्टिफिकेट जादवपुर विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान किए जाते हैं।


संस्था में काम करने वाले लोगों की तादाद 105 है, जिनमें 90 सुनने से लाचार हैं। मजूमदार ने बताया कि संस्था ने कई ऐसी महिलाओं को अपने स्टोर में रखा है, जो हस्तकला से जुड़ी चीजें बेचती है।


 इस स्टोर की सालाना बिक्री 1.5 करोड़ रुपये है। साथ ही संस्था के कई लड़के-लड़कियां आईटीसी होटलों में हाउसकीपिंग से जुड़े काम कर रहे हैं।


ऐसे लड़के-लड़कियां औसतन 2 से 3 हजार रुपये महीना कमा रहे हैं। साथ ही इन्हें एक वक्त का खाना और प्रॉविडेंट फंड भी मिल रहा है।
मजूमदार ने बताया कि सरकारी दावों के बावजूद सुनने से मरहूम लोगों के लिए भारत में काम मिलना काफी मुश्किल है। केएफसी, पेप्सी, आईटीसी समेत कुछ कंपनियों ने ऐसे लोगों के लिए रोजगार के अवसर मुहैया कराए हैं।


उनके मुताबिक, आने वाले दिनों के अनुभव बताएंगे कि ये लोगों सामान्य लोगों के मुकाबले ज्यादा मेहनती होते हैं। साथ ही अपनी जिम्मेदारियों के प्रति इनकी प्रतिबध्दता भी ज्यादा होती है।


मजूमदार को उम्मीद है कि भविष्य में अन्य कंपनियां भी इस मार्ग का अनुसरण करेंगी।

First Published - March 11, 2008 | 9:40 AM IST

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