पिछले दिनों ही शतरंज में सबसे कम उम्र के विश्व चैंपियन बने गुकेश दोम्माराजू के कामयाबी भरे इस सफर का एक पहलू बहुत दिलचस्प था और वह था पैडी अप्टन का उनकी टीम में शामिल होना। दक्षिण अफ्रीका के अप्टन प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेल चुके हैं और रग्बी के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी रहे हैं। वह स्ट्रेंथ और कंडीशनिंग कोच के रूप में भी काम कर चुके हैं।
मगर अप्टन की असली पहचान मेंटल कोच (मानसिक मजबूती में मदद करने वाले) की है और वह 20 से ज्यादा खेलों में यह भूमिका निभा चुके हैं। भारत के लोग अप्टन को 2011 में क्रिकेट विश्व कप जीतने वाली टीम के हिस्से और 2020 में टोक्यो ओलिंपिक में हॉकी का कांस्य पदक जीतने वाली टीम के सलाहकार के रूप में याद कर सकते हैं। अप्टन ने एक बेहद लोकप्रिय पुस्तक ‘बेयरफुट कोच: लाइफ चेंजिंग इनसाइट्स फ्रॉम वर्किंग विद द वर्ल्ड्स बेस्ट क्रिकेटर्स’ भी लिखी है। अब इस किताब को शतरंज की दुनिया में भी खासी शोहरत मिल सकती है।
अप्टन खुद को शतरंज का नौसिखिया खिलाड़ी बताते हैं। मई में जब गुकेश के प्रायोजक ने उनसे संपर्क किया तो उन्हें हिचक भी हुई और उत्सुकता भी। बकौल अप्टन वह पहले कभी ऐसे खेल से नहीं जुड़े थे, जहां सारा खेल दिमाग का ही होता है। परंतु उन्होंने सोचा कि किसी भी खेल में प्रदर्शन सुधारने के गुर तो एक जैसे ही होते हैं।
अप्टन और गुकेश की बढ़िया छनने लगी और हर हफ्ते कुछ घंटे साथ में बिताकर वे ऊंचे दर्जे का शतरंज खेलने के तैयारी करते और उस पर चर्चा भी करते। नए विश्व चैंपियन ने अप्टन को पूरा सम्मान देते हुए संवाददाता सम्मेलन में उनके योगदान का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अप्टन ने उनका व्यायाम तथा नींद का समय दुरुस्त किया और मानसिक तौर पर उन्हें इस तरह तैयार किया कि वह खिताबी मुकाबले में किसी भी तरह की स्थिति का सामना कर सकें।
अप्टन से पूछिए तो उनके मुताबिक गुकेश किसी छात्र की तरह तैयारी करते हैं, जो परीक्षा के लिए पाठ्यक्रम की सभी किताबों को शुरू से आखिर तक पढ़ता है। वह कहते हैं कि गुकेश ने पूरी ‘किताब’ पढ़ी है, समझ लिया है कि सही तरीके से नींद कैसे ली जाए, निराशा से कैसे उबरा जाए और खेल के हर पल में खुद को कैसे संभाला जाए। अप्टन गुकेश को जबरदस्त तैयारी वाला असाधारण पेशेवर बताते हैं, जो खुद को बहुत अच्छी तरह जानता है और 25 साल के उन सभी युवाओं से ज्यादा परिपक्व है, जिनके साथ उन्होंने काम किया है।
अप्टन कहते हैं कि किसी भी खेल में आने वाले युवाओं को एक चीज सीखनी चाहिए – किसी बड़े मुकाबले में पहली बार हिस्सा लें तो अपनी सामान्य शैली तथा सामान्य तरीके से खेलें और एकदम नए स्तर का खेल शुरू कर हारने का जोखिम मोल न लें। यह बहुत अहम बात है। आप बड़ी प्रतियोगिता में पहुंच ही इसीलिए पाए हैं क्योंकि आपका सामान्य स्तर वहां तक ले जाने के लिए काफी था। यह बात अजीब लग सकती है कि शतरंज सबसे ज्यादा दिमागी मशक्कत वाला खेल है फिर भी मानसिक तैयारी को इसके खिलाड़ियों की तैयारी का अभिन्न अंग बनने में इतना समय लग गया।
ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि शतरंज ने हमेशा खुद को दूसरे खेलों से अलग माना है। कुछ साल तक तो ऐसा रहा भी होगा मगर अब ऐसा नहीं है क्योंकि यह खेल टूर्नामेंट के सख्त माहौल में खेला जाता है, तय समय के भीतर चाल चलनी होती हैं और जीतने वाले को इनाम में भारी-भरकम रकम भी मिलती है। ऐसे में इसके खिलाड़ियों पर भी उस तरह के डर और घबराहट हावी रहते हैं, जैसे दूसरे खेलों में होते हैं और हरेक पेशेवर खिलाड़ी को इनसे निपटना तथा अपना हुनर निखारना सीखना चाहिए।
शतरंज के खिलाड़ी तस्वीरों (विजुअल पैटर्न) को पहचानने में बेहतर होते हैं और आम तौर पर सामान्य या कभी-कभार कुछ बेहतर मेधा वाले होते हैं। परंतु वे मान लेते हैं कि दिमागी खेल में एक दूसरे को पछाड़ने समेत बाकी बातों में भी वे उतने ही चतुर हैं। जरूरी नहीं है कि यह सच हो। यह बहुत कम संभव है कि एक पेशेवर शतरंज खिलाड़ी जिसने अपना समय खेल की ओपनिंग सीखने और कठिन खेलों से निपटना सीखने में लगाया हो वह अपने भावनात्मक उतारचढ़ाव से निपटने के मामले में किसी मनोवैज्ञानिक से बेहतर हो क्योंकि मनोवैज्ञानिक का तो काम ही दिमाग को समझना है। जिस पेशेवर शतरंज खिलाड़ी ने अपना वक्त बाजी की शुरुआती चालों में बढ़त हासिल करना और आखिरी लम्हों में मुश्किलों के बीच उम्दा चाल चलकर सामने वाले को मात देना सीखने में ही खपा दिया हो, वह अपने जज्बातों पर उस मनोवैज्ञानिक के मुकाबले ज्यादा अच्छी तरह काबू कर सकता है, जिसने अपनी जिंदगी ही दिमाग की गुत्थियां सुलझाने में लगा दी है, यह मानना मुश्किल है।
मेंटल कोचिंग यानी दिमागी प्रशिक्षण, प्रेरित करने वाला प्रशिक्षण जैसे कौशल वे हैं, जिनके असर को मापना और तय करना मुश्किल होता है। अप्टन कहते हैं कि एक अच्छा मेंटल कोच अव्वल दर्जे के खिलाड़ी के प्रदर्शन में एक-दो फीसदी सुधार ही कर सकता है। लेकिन जब आला दर्जे के दो खिलाड़ी भिड़ रहे हों तो इतना सा फर्क ही बहुत काम आ सकता है। शायद यही बात गुकेश का पलड़ा भारी बना गई हो।
परंतु इतने मामूली अंतर का आकलन कर पाना मुश्किल है और इंटरनेट ऐसी सेवाएं देने वाले नौसिखियों और धोखेबाजों से भरा पड़ा है। यह पता कर पाना वाकई बहुत मुश्किल है कि उनमें से कौन सही और काम का है। फिर भी अब अप्टन की मदद लेकर गुकेश शानदार सफलता हासिल कर चुके हैं तो दुनिया भर में शतरंज की प्रतिभाएं ऐसे कोच और ऐसी सेवाओं के बाजार का रुख करेंगे। हो सकता है कि दिमाग को पढ़ने वाले ऐसे प्रशिक्षकों का नया बाजार खड़ा हो जाए।