अमेरिका की व्यापार नीति को देखते हुए इस वक्त भारत को किसी बाहरी दबाव के आगे झुके बगैर अपने महत्त्व की प्राथमिकताओं का पालन करने की जरूरत है। बता रहे हैं अजय श्रीवास्तव
डेट्रॉयट में 11 अक्टूबर को एक जनसभा के दौरान अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कहा कि भारत विदेशी वस्तुओं पर सबसे ज्यादा शुल्क लगाता है। यह पहला मौका नहीं था। पिछले महीने भी उन्होंने भारत को आयात शुल्क का सबसे ज्यादा दुरुपयोग करने वाला बताया था। 2020 में तो उन्होंने भारत को ‘टैरिफ किंग’ तक कह डाला था।
आइए, देखते हैं कि भारत द्वारा अधिक शुल्क या टैरिफ लगाने जाने के ट्रंप के दावे में कितना दम है और भारत के शुल्क क्या वाकई वैश्विक व्यापार के नियम तोड़ रहे हैं तथा भारत-अमेरिका संबंध इससे कैसे प्रभावित हो रहे हैं।
ट्रंप सबसे ज्यादा शुल्क की ही बात करते हैं। भारत का औसत आयात शुल्क 17 प्रतिशत है जो अमेरिका के 3.3 प्रतिशत से काफी ज्यादा है। लेकिन ट्रंप इसकी बात ही नहीं करते। इसके बजाय वह अधिकतम शुल्क की बात करते हैं, जिस पर लोगों का ध्यान फौरन पहुंच जाता है।
मिसाल के तौर पर 2019 में उन्होंने कहा कि भारत अमेरिकी व्हिस्की पर 150 प्रतिशत शुल्क लगाता है। भारत बेशक व्हिस्की (150 प्रतिशत) और वाहनों (100-125 प्रतिशत) पर ऊंचा शुल्क लगाता है मगर कई देश अपने कुछ खास उद्योगों को संरक्षण प्रदान करने के लिए अधिक शुल्क लगाते हैं और भारत ऐसा करने वाला अकेला देश नहीं है।
अमेरिका ने विभिन्न उत्पाद समूहों पर उच्चतम शुल्क लगाए हैं। इनमें डेरी उत्पाद (188 प्रतिशत), फल एवं सब्जियां (132 प्रतिशत), अनाज एवं खाद्य सामग्री (193 प्रतिशत), तिलहन, वसा और तेल (164 प्रतिशत), पेय पदार्थ एवं तंबाकू (150 प्रतिशत), खनिज एवं धातु (187 प्रतिशत) और कपड़े (135 प्रतिशत) शामिल हैं।
भारत के उच्चतम शुल्कों को देखकर उसे टैरिफ किंग बताने का ट्रंप का दावा सही नहीं है क्योंकि कई दूसरे देशों के शुल्क भारत से ज्यादा हैं। जापान का उच्चतम शुल्क 457 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया का 887 प्रतिशत और अमेरिका का उच्चतम शुल्क 350 फीसदी है जबकि भारत का उच्चतम शुल्क 150 प्रतिशत ही है।
उच्चतम शुल्क आम तौर पर संवेदनशील क्षेत्रों को महफूज रखने के लिए लगाया जाता है। मसलन जापान अपने किसानों के हितों की रक्षा के मकसद से चावल पर ऊंचा शुल्क लगाता है। लेकिन ये सर्वोच्च शुल्क अपवाद हैं और उन देशों में ज्यादातर व्यापार इतनी ऊंची दरों पर नहीं होता। देश के आयात शुल्क की सही तस्वीर उसके औसत टैरिफ से ही मिलती है।
भारत का 17 प्रतिशत का औसत टैरिफ अमेरिका के 3.3 प्रतिशत औसत से अधिक है। मगर यह दक्षिण कोरिया के 13.4 प्रतिशत और चीन के 7.5 प्रतिशत के करीब है। औद्योगिक उत्पादों के लिए भारत का औसत शुल्क 13.5 प्रतिशत है और लेकिन आयातित मूल्य की इकाई के हिसाब से औसत शुल्क या ट्रेड वेटेड एवरेज देखें तो यह 9 प्रतिशत ही पड़ता है।
भारत नहीं अमेरिका तोड़ रहा डब्ल्यूटीओ के नियम
वैश्विक व्यापार के नियम विश्व व्यापार संगठन (WTO) तय करता है और भारत उसके शुल्क संबंधी नियमों का उल्लंघन नहीं करता। लेकिन अमेरिका ऐसा करता है। नियम तोड़े जाएं तो सदस्य देश डब्ल्यूटीओ से हस्तक्षेप करने के लिए कह सकते हैं। हालांकि अमेरिका अक्सर भारत का नाम लेकर चिंता जताता है मगर उसने भारत के ऊंचे शुल्कों को डब्ल्यूटीओ में चुनौती नहीं दी है क्योंकि वह जानता है कि भारत का शुल्क डब्ल्यूटीओ की सहमति वाली सीमा के भीतर है।
जब 1995 में डब्ल्यूटीओ की शुरुआत हुई तब विभिन्न देशों ने उत्पादों पर अधिकतम शुल्क तय कर दिए जिन्हें ‘बाउंड टैरिफ’ (बाध्यकारी शुल्क) कहा गया और शुल्क उससे अधिक नहीं बढ़ाने पर भी वे रजामंद हो गए।
अमेरिका और जापान जैसे विकसित देशों ने कम बाउंड टैरिफ (लगभग 3-4 प्रतिशत) रखा था और भारत जैसे विकासशील देशों को अधिक टैरिफ (40-150 प्रतिशत) की इजाजत दे दी गई।
मगर विकसित देशों ने विकासशील देशों के लिए ऐसा लचीला रुख अपनाते समय यह शर्त रख दी कि उन देशों को डब्ल्यूटीओ की वार्ता में बौद्धिक संपदा अधिकार और सेवाओं को भी शामिल करना होगा। कम बाउंड टैरिफ के कारण ही अमेरिका डब्ल्यूटीओ के नियम तोड़े बगैर शुल्क नहीं बढ़ा सकता। मगर भारत स्टील पर टैरिफ 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत तक कर सकता है और डब्ल्यूटीओ नियमों का उल्लंघन भी नहीं होगा क्योंकि स्टील पर बाउंड टैरिफ 40 प्रतिशत है।
किसी देश के बाउंड टैरिफ और वास्तविक टैरिफ के बीच का अंतर ‘वाटर’ कहलाता है। अमेरिका, जापान और चीन जैसे देशों का वाटर कम है, जबकि भारत का ज्यादा है। इसका मतलब है कि भारत के पास डब्ल्यूटीओ के नियम तोड़े बगैर शुल्क बढ़ाने की ज्यादा गुंजाइश है। अमेरिका डब्ल्यूटीओ के राष्ट्रीय सुरक्षा अपवाद नियमों के सहारे ही शुल्क बढ़ा सकता है। मगर यह दलील गले नहीं उतरेगी कि स्टील और एल्युमीनियम के आयात से अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
एफटीए पर हिचक
भारत के ऊंचे शुल्कों की आलोचना करते हुए ट्रंप ने कहा कि अगर वे दोबारा चुने गए तब वे भारतीय उत्पादों पर भी उतना ही शुल्क लगा देंगे। लेकिन भारत का शुल्क डब्ल्यूटीओ नियमों के अनुरूप है, इसलिए ट्रंप के कदम इन नियमों का उल्लंघन होंगे।
अमेरिका मुक्त-व्यापार समझौते (FTA) के माध्यम से भारतीय बाजारों में बेहतर पैठ बना सकता है क्योंकि भारत पहले ही आसियान, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे एफटीए साझेदारों के लिए शुल्क कम कर चुका है। इससे पता चलता है कि व्यापार के लिए उसका रुख कितना उदार है।
मगर एफटीए में दोनों पक्षों को शुल्क घटाना पड़ता है और अपने उद्योगों की हिफाजत के फेर में अमेरिका शुल्क कम करने से हिचक रहा है। यह हिचक इंडो-पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क समझौते में साफ दिख रही है क्योंकि इसमें शुल्क कटौती शामिल नहीं है। इस समझौते में अमेरिका और भारत सहित 14 देश शामिल हैं, जिनका मकसद व्यापार, आपूर्ति श्रृंखला के लचीलेपन, स्वच्छ अर्थव्यवस्था और निष्पक्ष अर्थव्यवस्था (कर तथा भ्रष्टाचार निरोधक) के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाना है।
भारत-अमेरिका संबंध
ट्रंप बार-बार भारत के ऊंचे शुल्कों की बात कर रहे हैं। इनसे उन्हें सुर्खियां तो मिल गईं मगर भारत-अमेरिका संबंध बेअसर रहे। अमेरिका भारत का शीर्ष व्यापारिक साझेदार है और दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ता ही जा रहा है। उनका द्विपक्षीय कारोबार 2018 में 141.5 अरब डॉलर था, जो 2023 में 34.4 प्रतिशत बढ़कर 190.1 अरब डॉलर हो गया। वस्तु व्यापार 41.6 फीसदी और सेवा व्यापार 22.4 प्रतिशत तक बढ़ा। भारत से अमेरिका को निर्यात 54.4 प्रतिशत तक बढ़ा और अमेरिका से भारत को निर्यात 20.8 प्रतिशत तक बढ़ा।
अमेरिका-भारत साझेदारी का लक्ष्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखना और क्वाड अलायंस तथा यूएस-इंडिया डिफेंस टेक्नोलॉजी ऐंड ट्रेड इनीशिएटिव जैसी पहल के जरिये रक्षा संबंधों को बढ़ाना है।
क्वाड में अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं और इनका उद्देश्य चीन पर निर्भरता कम करते हुए आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करना है। सेमीकंडक्टर और स्वच्छ ऊर्जा पर भारत और अमेरिका के सहयोग से भारत को अपने तकनीक और नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलती है।
साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग से डिजिटल सुरक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत का नेतृत्व मजबूत होता है, जिससे नवाचार और वैज्ञानिक प्रगति को बढ़ावा मिलता है। मगर अमेरिका कभी-कभी कारोबारी हितों को नीति से ज्यादा प्राथमिकता देता है।
उदाहरण के तौर पर उसने लैपटॉप आयात रोकने की भारत की योजना का विरोध किया क्योंकि इससे ऐपल, डेल और एचपी जैसी अमेरिकी कंपनियों प्रभावित होंगी, जो चीन में लैपटॉप बनाती हैं।
पर्सनल कंप्यूटर (पीसी) और लैपटॉप के वैश्विक बाजार का 81 प्रतिशत हिस्सा चीन के नियंत्रण में है और भारत स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देते हुए इस पर अपनी निर्भरता कम करने का प्रयास कर रहा है।
अमेरिका भी अपने उद्योगों के संरक्षण के लिए चीन के सेमीकंडक्टर और सोलर सेल जैसे उत्पादों पर शुल्क लगाता है। इससे पता चलता है कि भारत को बाहरी दबाव के आगे झुके बगैर अपनी अहम प्राथमिकताएं पूरी करनी चाहिए।
अंत में ट्रंप के शुल्क मसले का निष्कर्ष यह है कि भारत द्वारा शुल्क का दुरुपयोग किए जाने का उनका दावा सही नहीं है। लेकिन भारत को उत्पाद के स्तर पर शुल्कों में सुधार पर विचार करना चाहिए ताकि किफायती, मूल्यवर्द्धित विनिर्माण एवं व्यापार को बढ़ावा देने जैसे राष्ट्रीय लक्ष्यों को ज्यादा सहारा मिल सके।
(लेखक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव के संस्थापक हैं)