दिल्ली में केंद्रीय लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले एक कोचिंग संस्थान में तीन छात्रों की दर्दनाक मौत के बाद हमारी ‘व्यवस्था’ का हिस्सा समझे जाने वाले सभी लोग एवं संगठन हरकत में दिख रहे हैं। पश्चिमी दिल्ली में यूपीएससी के लिए तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थानों का गढ़ बन चुके ओल्ड राजिंदर नगर में ‘राउज आईएएस स्टडी सर्कल’ में हुई इस घटना की जांच दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी है।
दिल्ली सरकार ने दूसरे कोचिंग केंद्रों के तहखानों यानी बेसमेंट सील कर दिए हैं। राज्य सरकार ने यह भी कहा है कि वह कोचिंग व्यवसाय को नियम-कायदे में रखने के लिए नया कानून बनाएगी। कोचिंग संस्थानों के मालिक और वरिष्ठ प्रबंधन के कुछ लोग हिरासत में भी लिए गए हैं। सबसे अजीब और चौंकाने वाला कदम तो दिल्ली पुलिस ने उठाया है। उसने एक एसयूवी के चालक को केवल इसलिए गिरफ्तार कर लिया क्योंकि वह कोचिंग संस्थान के सामने वाली उस सड़क से अपनी गाड़ी लेकर गुजर रहा था, जिसमें पानी लबालब भरा था। उसकी गिरफ्तारी के पीछे पुलिस की दलील थी कि उसकी गाड़ी चलने से पानी बेसमेंट के भीतर चला गया और वहां बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गए।
इन कोचिंग केंद्रों के कुछ मालिक और सुपरस्टार ‘शिक्षक’ कुछ खास टेलीविजन चैनलों एवं उन मीडिया प्लेटफॉर्मों पर आ रहे हैं, जिनके साथ उनके एक-दूसरे को कारोबारी फायदा पहुंचाने वाले रिश्ते हैं। वहां आकर वे घटना के शिकार छात्रों से झूठी सहानुभूति जता रहे हैं मगर असल में ऐसा कर ये ‘शिक्षक’ अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं।
न्यायालय, सरकार और पुलिस सभी हरकत में हैं मगर कोई भी सबसे अहम सवाल पर ध्यान नहीं दे रहा है। सवाल यह है कि अगर कोचिंग के नाम पर छात्रों से इतनी मोटी फीस वसूली जा रही है और इंस्टाग्राम पर रील बनाकर ‘शिक्षक’ इतनी शोहरत बटोर रहे हैं तो वे ऐसे असुरक्षित, गंदे और बदतर हालात में क्यों और कैसे पढ़ा रहे हैं? या फिर पूछा जाना चाहिए कि आईएएस बनाने वाली जिस परीक्षा में 99.8 फीसदी लोग नाकाम हो जाते हैं, उसमें सफलता दिलाने के नाम पर तगड़ी फीस बटोरने के बाद भी वे बुनियादी सुविधाओं और सुरक्षा पर कुछ भी खर्च क्यों नहीं करते?
हमारी लचर व्यवस्था में शिक्षा से लाभ कमाना कानून सम्मत नहीं है। आप स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय चलाते हैं मगर दिखावा करते हैं कि आप उनसे लाभ नहीं कमा रहे। कोचिंग व्यवसाय के साथ ऐसा कुछ नहीं है। इनमें कई स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध हैं और कई इसकी तैयारी कर रहे हैं। हमारी व्यवस्था कितनी लचर और दोहरे मानदंड की शिकार है कि युवा भारतीयों को शिक्षा देकर लाभ अर्जित करने पर रोक है परंतु उन्हीं छात्रों को ट्यूशन या कोचिंग पढ़ाकर आप हजारों करोड़ रुपये कमा सकते हैं?
कोचिंग व्यवसाय कितना बड़ा है और कितनी तेजी से बढ़ रहा है यह समझने के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के आंकड़े देखे जा सकते हैं, जो केंद्र सरकार उनसे वसूल रही है। वर्ष 2019-20 में इन कोचिंग संस्थानों से जीएसटी में 18 प्रतिशत दर से 2,240 करोड़ रुपये लिए गए थे। पांच वर्षों बाद यह आंकड़ा 150 प्रतिशत बढ़कर 5,517 करोड़ रुपये हो गया। अनुमान लगाया जा रहा है कि 2029 तक कोचिंग व्यवसाय से प्राप्त होने वाला जीएसटी बढ़कर 15,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा।
यह व्यवसाय कितना बड़ा और ताकतवर है, इसे दूसरे तरीके से भी समझा जा सकता है। देश भर के समाचार पत्रों के पहले पन्ने पर अक्सर इन कोचिंग संस्थानों के विज्ञापन दिख जाते हैं। इन कोचिंग संस्थानों के पास समाचार पत्रों में महंगे विज्ञापन देने, अपने सफल ‘छात्रों’ और अपने ‘शिक्षकों’ का भी महिमा मंडन करने के लिए पूरा बजट मौजूद है।
इन विज्ञापनों में हर एक शिक्षक को धांसू व्यक्तित्व बताया जाता है और उनके नाम के बाद ‘सर’ तथा महिला शिक्षक के नाम के बाद ‘मैम’ लगा कर उन्हें और वजनदार बना दिया जाता है। मैं मानता हूं कि भविष्य में हमारे शासकों को ‘जी-हुजूरी’ की घुट्टी पिलाने का यह शुरुआती सबक है। फिल्म उद्योग के बाद भारत में ब्रांड-बिल्डिंग या छवि निर्माण की यह दूसरी सबसे बड़ी कवायद है। इसका सीधा कारण यह है कि कोचिंग संस्थान के संस्थापकों एवं शिक्षकों का महिमा मंडन कोचिंग व्यवसाय की सफलता के लिए आवश्यक है।
कोचिंग व्यवसाय शिक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा धब्बा है। इन संस्थानों में पढ़ाने वाले शिक्षकों के महिमा मंडन से दो बातें परिलक्षित होती हैं। पहली, यह कम चर्चित एवं कम वेतन पाने वाले शिक्षकों का अपमान है और दूसरी, यह हमें अहसास कराता है कि हमारी नियमित शिक्षा व्यवस्था कितनी लचर है। अगर शिक्षा व्यवस्था इतनी चरमराई नहीं होती तो लाखों छात्र बड़े शहरों में कोचिंग संस्थानों के चक्कर क्यों लगा रहे होते?
यह सच है कि बड़ी प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफल होने वाले कई छात्रों की तस्वीरें समाचारपत्रों के पहले पन्ने पर विज्ञापनों में दिखेंगी, कुछ को तस्वीरें छापने के लिए पैसे भी दिए जाएंगे और इस तरह वे अपने करियर की शुरुआत एक तरह की ‘रिश्वत’ के साथ करेंगे। विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘12वीं फेल’ में ऐसा ही दिखाया गया है।
कोचिंग व्यवसाय का आकार बढ़कर 30,650 करोड़ रुपये (18 प्रतिशत दर से 5,517 करोड़ रुपये जीएसटी के हिसाब से) के पार जाने और तेजी से फलने-फूलने का सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारी सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली चरमरा गई है। कई मायनों में हमारे देश में बिजली आपूर्ति की समस्याओं के साथ यह हमारी व्यवस्था में ‘ब्रोकन विंडो’ अर्थशास्त्र का सबसे बड़ा उदाहरण है।
अर्थव्यवस्था में ब्रोकन विंडो सिद्धांत प्रतिपादित करने का श्रेय 19वीं शताब्दी के फ्रांसीसी अर्थशास्त्री एवं संसद सदस्य फ्रेडरिक बास्तीआ ने दिया था। बास्तीआ ने एक काल्पनिक दुकानदार जेम्स गुडफेलो का उदाहरण पेश किया था। अगर कोई खिड़की टूटती है तो इसे दुरुस्त करने के लिए बढ़ई को बुलाया जाता है। इसके बदले उसे कुछ भुगतान किया जाता है, जिससे वह अपनी रोजमर्रा की जरूरत का सामान आदि खरीदता है।
बास्तीआ ने कहा कि यह दुष्चक्र नहीं बल्कि ‘ब्रोकन विंडो’ सिद्धांत है। हां, इस मौके की कितनी कीमत चुकानी पड़ी, इसका जिक्र नदारद है। इस मामले में गुडफेलो के पास दुकान और खिड़की है और इस श्रृंखला में मौजूद लोगों को काम मिल रहा है। मगर इस रकम का इस्तेमाल कर गुडफेलो अपने पुत्र के लिए जूते और अपने लिए पुस्तक खरीदते तो वास्तव में फायदा देने वाला या अच्छा चक्र शुरू होता।
अब यह समझते हैं कि यह सिद्धांत हमारे वास्तविक जीवन में कैसे काम करता है। हम बिजली के लिए सब्सिडी देते हैं, हमारे ग्रिड लचर हालत में हैं, हमारी कंपनियां अस्त-व्यस्त हैं, उत्पादकों को पैसे नहीं मिल रहे हैं और कर्ज देने वाले बैंक संघर्ष कर रहे हैं। इस तरह सभी कहीं न कहीं परेशान हैं जबकि देश में बिजली का जरूरत से ज्यादा उत्पादन हो रहा है। हमारी बिजली भरोसेमंद नहीं है, अक्सर गायब हो जाती है और वोल्टेज में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं।
इससे बचने के लिए हम जेनरेटर, इन्वर्टर बैटरी और वोल्टेज स्टेबलाइजर खरीदते हैं। उसे चलाने के लिए डीजल खरीदा जाता है, जिसके धुएं से हवा प्रदूषित होती है। मुफ्त बिजली और पानी इस्तेमाल कर उपजाई फसल की पराली जलाने से हवा पहले ही खराब है। इस खराब हवा से बचने के लिए हम घरों में एयर प्यूरीफायर खरीदते हैं, जिसकी कीमत एयर कंडीशनर से भी अधिक होती है। जेनरेटर, स्टेबलाइजर, इन्वर्टर और एयर प्यूरीफायर सभी ‘ब्रोकन विंडों’ अर्थशास्त्र को रेखांकित करते हैं। शिक्षा भी इसका अपवाद नहीं है। बस कोचिंग व्यवसाय इसका सबसे वीभत्स रूप है।
चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से कोई कुछ सीखने का इच्छुक नहीं है, मगर 2021 में उन्होंने कोचिंग संस्थानों की समस्या को जिस तरह ठीक किया उस पर जरूर विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने रातोरात चीन में ट्यूशन एवं कोचिंग व्यवसाय बंद करने का हुक्म दे दिया। चिनफिंग ने कहा कि इससे परिवारों की वित्तीय स्थिति बिगड़ रही है, असमानता बढ़ रही है, किसानों का समय बरबाद हो रहा है और युवा जीवन का आनंद नहीं ले पा रहे हैं।
चीन में यूपीएसी के स्तर की परीक्षा ‘गाओकाओ’ की तैयारी कराने वाले सभी कोचिंग संस्थान बंद कर दिए गए। लाभ के लिए शिक्षण कार्य, स्टॉक एक्सचेंजों पर कोचिंग संस्थानों की सूचीबद्धता, शेयरों की बिक्री बंद कर दी गई और ऑनलाइन पढ़ाई पर अंकुश लगाने के साथ विलय-अधिग्रहण, विदेशी साझेदारी सभी पर प्रतिबंध लगा दिए गए। एक झटके में सब कुछ खत्म हो गया।
चीन की शिक्षा-तकनीक कंपनियों को रातोरात शेयर बाजारों में 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक नुकसान हो गया। यह 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से भी बड़ा नुकसान था। जैक मा के अलावा (उन पर दूसरे तरीके से अंकुश लगाया गया) तीन अन्य अरबपति लैरी चेन, माइकल यू और झांग बैंगशिन की संपत्ति 50 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तक घट गई। ये सभी लोग शिक्षा-तकनीक क्षेत्र से जुड़े थे।
चिनफिंग ने जो कदम उठाए वे अतिवादी कहे जा सकते हैं मगर उन्होंने जिन समस्याओं का समाधान किया वे भारत में भी मौजूद हैं। अतः कुछ तो अवश्य किया जाना चाहिए। कोचिंग-ट्यूशन मुनाफाखोरी ढांचा देश की शिक्षा व्यवस्था की बदहाली पर खड़ा किया गया है। यह कलंक है, जिसे अवश्य ही मिटाया जाना चाहिए।