वित्त वर्ष 2025 के लिए बीते गुरुवार को पेश किए गए अंतरिम बजट में भारत के ‘चार प्रमुख वर्गो ‘गरीब, महिलाएं, युवा और किसानों’ पर ध्यान देना जारी रहा और सरकार की तरफ से ऐसे संकेत मिले कि उनकी जरूरतों, आकांक्षाओं को पूरा करना और कल्याण करना ही सरकार की प्रमुख प्राथमिकता बनी रहेगी। लेकिन इसके लिए वित्तीय अनुशासन में किसी भी कीमत पर कोई कोताही नहीं की जाएगी।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपने वादे पर कायम रहते हुए राजकोषीय मजबूती के अपने मार्ग से विचलित नहीं हुईं। चालू वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे का संशोधित अनुमान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 5.8 प्रतिशत है जो पहले के अनुमान से 10 आधार अंक कम है। वित्त वर्ष 2025 के लिए, राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 5.1 प्रतिशत है।
पिछले बजट में वित्त वर्ष 2023 के लिए अनुमानित 6.4 प्रतिशत राजकोषीय घाटे पर टिके रहने के अलावा, वित्त वर्ष 2024 में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 5.9 प्रतिशत पर रखकर सीतारमण ने राजकोषीय प्रगति पथ की रूपरेखा तैयार की थी।
उन्होंने वित्त वर्ष 2026 तक राजकोषीय घाटे को 4.5 प्रतिशत से नीचे लाने की अपनी प्रतिबद्धता भी दोहराई। बजट के दौरान दिए गए वक्तव्य ने हमें आश्वस्त किया कि वह इस मार्ग से अलग नहीं होना चाहती हैं। वित्त वर्ष 2024 और 2025 के लिए अनुमानित राजकोषीय घाटे के आंकड़े ज्यादातर विश्लेषकों की उम्मीद की तुलना में थोड़े बेहतर हैं।
अगले वित्त वर्ष के लिए बाजार के जरिये उधार जुटाने का अनुमान भी बैंकों के कोष प्रबंधकों की उम्मीद के अनुरूप ही है। इस वित्त वर्ष के लिए सकल बाजार उधारी अनुमानित तौर पर लगभग 14.13 लाख करोड़ रुपये है और शुद्ध ऋण भुगतान, शुद्ध उधारी अनुमान 11.75 लाख करोड़ रुपये आंका गया है जो बॉन्ड बाजार के लिए सुखद समाचार है। वित्त मंत्री के बजट भाषण के बाद 10 साल की बॉन्ड यील्ड 7.11 प्रतिशत से घटकर 7.05 प्रतिशत हो गई।
(शुद्ध उधारी लगभग 11.75 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है और वित्त वर्ष 2025 के लिए बॉन्ड ऋण भुगतान लगभग 3.61 लाख करोड़ रुपये है इसलिए सकल उधारी का स्तर लगभग 15.36 लाख करोड़ रुपये होना चाहिए था। लेकिन बजट का अनुमान कम है। करीब 1.23 लाख करोड़ रुपये का अंतर तथाकथित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) मुआवजा पूल के प्रवाह से पूरा किया जा रहा है।)
चालू वर्ष में, सकल बाजार उधारी लगभग 15.4 लाख करोड़ रुपये और शुद्ध उधारी 11.8 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है जो सरकार का अब तक का सबसे बड़ा उधारी कार्यक्रम है। कोविड महामारी का असर वित्त वर्ष 2022 में देखा गया था जिसके बाद राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए सरकार का उधारी कार्यक्रम बढ़ता गया है।
उदाहरण के तौर पर वित्त वर्ष 2020 में, सरकार की सकल उधारी लगभग 7.1 लाख करोड़ रुपये थी। यह राशि वित्त वर्ष 2021 में लगभग दोगुनी होकर 13.7 लाख करोड़ रुपये हो गई। अगले वर्ष, यह घटकर 11.3 लाख करोड़ रुपये हो गई लेकिन वित्त वर्ष 2023 में यह बढ़कर 14.2 लाख करोड़ रुपये हो गई। वित्त वर्ष 2021 से आगे चार वर्षों में, कुल सरकारी उधारी 54.6 लाख करोड़ रुपये रही है जो पिछले दशक में सरकार की कुल बकाया उधार राशि से अधिक है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), सरकार का वाणिज्यिक बैंकर है जिसने महामारी और उसके बाद बड़े स्तर की उधारी का बेहतर प्रबंधन किया है। देश के केंद्रीय बैंक ने सितंबर 2021 से खुले बाजार परिचालन के माध्यम से कोई सरकारी बॉन्ड नहीं खरीदा है जिससे इसकी अपनी बैलेंसशीट पर बोझ पड़ा है। इसने बढ़ती बॉन्ड यील्ड को बाजार को बाधित भी नहीं करने दिया। दस साल की बॉन्ड यील्ड 6.14 प्रतिशत से, जून 2022 में बढ़कर 7.62 प्रतिशत हो गई जो वर्तमान चक्र में इसका उच्चतम स्तर है। गुरुवार को यह 7.06 प्रतिशत पर बंद हुआ।
जून में भारत को जेपी मॉर्गन इमर्जिंग मार्केट बॉन्ड इंडेक्स में शामिल कर लिया जाएगा। इससे बॉन्ड की मांग मजबूत होगी और बैंकिंग तंत्र पर बोझ कम होगा। इसका दोहरा प्रभाव भी देखने को मिलेगा यानी बैंक ऋण वृद्धि का समर्थन करने के लिए पूंजी मुक्त कर पाएंगे और बॉन्ड यील्ड में और कमी आएगी।
बेशक, मौजूदा चक्र के अंत में आरबीआई द्वारा की गई पहली दर कटौती, सरकार की उधारी लागत कम करने में मददगार होगी। यह बहुत जल्द नहीं हो सकती है। लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास वित्त मंत्री के संकेत पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं। इस हफ्ते दर कटौती और यहां तक कि मौद्रिक नीति के रुख में बदलाव की किसी को उम्मीद नहीं है, लेकिन यह देखना होगा कि क्या आरबीआई वित्त वर्ष 2024 की 8 फरवरी को होने वाली मौद्रिक नीति समिति की अंतिम बैठक में कम आक्रामक रुख अपनाएगा?
वित्त वर्ष 2025 के लिए पूंजीगत व्यय 11.1 प्रतिशत बढ़ाकर 11.11 लाख करोड़ रुपये किया जा रहा है। मेरी उत्सुकता यह जानने की भी है कि क्या सीतारमण अंक ज्योतिष में विश्वास करती हैं! अनुमानित पूंजीगत व्यय 11,11,111 करोड़ रुपये को कैसे समझाया जाए? वैसे, उनके 58 मिनट और 24 पन्ने वाले भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उल्लेख आठ बार किया गया और ‘सुधारों’ का उल्लेख भी कुछ ऐसा ही है।
बजट में वित्त वर्ष 2025 के लिए 12 प्रतिशत कर राजस्व वृद्धि और 10.5 प्रतिशत की नॉमिनल जीडीपी वृद्धि (3,27,71,808 करोड़ रुपये या लगभग 3.9 लाख करोड़ डॉलर) की बात की गई है। दास वित्त वर्ष 2025 में 7 प्रतिशत, वास्तविक जीडीपी वृद्धि की बात कर रहे हैं।
अब 8 फरवरी को भारतीय अर्थव्यवस्था के दूसरे नाटकीय घटनाक्रम का इंतजार करना होगा। पहले (बजट) में कोई अधिक नाटकीय क्षण नहीं देखने को मिला लेकिन किसी को इसकी कोई शिकायत नहीं होगी। जब तक आम चुनाव के बाद मुख्य बजट में आंकड़े नहीं बदलते, तब तक यह सामान्य है।