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मोदी के तीसरे कार्यकाल के लिए कुछ काम

अगर नरेंद्र मोदी को तीसरा कार्यकाल मिलता है तो उन्हें जिन मुद्दों पर काम करना चाहिए उनमें प्रमुख हैं अन्य पिछड़ा वर्ग पर अंतिम निर्णय, कृषि सुधार, दल बदल निरोधक कानून

Last Updated- February 25, 2024 | 9:16 PM IST
PM Modi

इन दिनों सबसे अधिक पूछा जाने वाला सवाल यही है कि आम चुनाव कौन जीत रहा है और कितने अंतर से जीत रहा है। फिलहाल अगर हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों पर यकीन कर लें तो हम उन्हें 10 बिंदुओं वाली एक सूची दे सकते हैं। यह ऐसे कामों की सूची है जो हमारी नजर में उन्हें तीसरे कार्यकाल में करने चाहिए। वह मानते हैं और बार-बार दोहराते हैं कि 2024 के चुनाव में उनके दल की जीत निश्चित है। वह इस तरह व्यवहार कर रहे हैं मानो चुनाव प्रचार उनके दूसरे और तीसरे कार्यकाल के बीच का अंतराल है और उनका पद संभालना औपचारिकता भर है।

उदाहरण के लिए पिछले दिनों हुई कैबिनेट की बैठक असाधारण रूप से लंबी थी। वहां उन्होंने एक अहम नीतिगत बदलाव की घोषणा करते हुए कहा कि अंतरिक्ष क्षेत्र को 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोला जा रहा है। उन्होंने मंत्रियों से कहा कि वे अगले कार्यकाल के पहले 100 दिनों का एजेंडा तैयार करें।

ऐसे में हमारे लिए यह अच्छा समय है कि हम उनके तीसरे कार्यकाल को लेकर अपनी ख्वाहिशें सामने रखें। पहली तीन कामनाएं मौजूदा राजनीतिक मुद्दों से निकलती हैं।

1. अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी आरक्षण पर अंतिम तौर पर नजर डालनी चाहिए। उनके लिए एक विकल्प यह है कि वह एक रेखा खींचें और घोषित कर दें कि यह यथास्थिति अंतिम है और 50 फीसदी आरक्षण की सीमा का उल्लंघन नहीं किया जाएगा। इसके लिए उनकी पार्टी और साझेदारों को भी मराठा या जाट आरक्षण जैसे मुद्दों को उछालना बंद करना होगा। उन्हें कर्नाटक के मूर्खतापूर्ण फॉर्मूले को और उलझाना भी बंद करना होगा।

इसके विपरीत वह एक देशव्यापी जाति जनगणना करा सकते हैं। इस आधार पर यह तय हो सकता है कि ओबीसी कौन हैं। अगर इसके लिए आरक्षण को 50 फीसदी के पार ले जाना पड़े तो भी कोई दिक्कत नहीं। बस हमारी राजनीति को बंधक बनाने वाले इस मामले को एकबारगी समाप्त किया जाना चाहिए।

2. अपने दूसरे कार्यकाल में उन्होंने बड़े कृषि सुधारों के प्रयास किए लेकिन नाकाम रहे। तीसरे कार्यकाल में उन्हें वास्तविक राजनीतिक पूंजी और समय का इस्तेमाल करना चाहिए और उन सुधारों का माहौल बनाना चाहिए जिनकी भारत को सबसे अधिक आवश्यकता है। कृषि और किसानों को बाजार से जोड़ने का काम पी.वी. नरसिंह के पुरानी औद्योगिक नीति को रद्द करने से भी अधिक मुकिल है क्योंकि खेती से राजनीतिक शक्ति जुड़ी हुई है।

याद रहे राव ने अल्पमत सरकार के जरिये सुधारों को अंजाम दिया था। अब मोदी को साहस जुटाना चाहिए और एमएसपी की व्यवस्था समाप्त बंद करनी चाहिए। यह 60 वर्ष पहले एक सुधार था लेकिन यह बाजार को बाधित करता है और अब तो यह किसान विरोधी भी हो चुका है। अगर सरकार को खाद्य सुरक्षा के लिए अनाज चाहिए तो उसे निजी कारोबार से प्रतिस्पर्धा करते हुए इसे खरीदना चाहिए। व्यापार को मौसमी चुनौतियों, अतिरिक्त भंडारण और जमाखोरी से मुक्त होना चाहिए। इसके लिए निर्यात और आयात का इस्तेमाल किया जा सकता है।

3. बहुत कम भारतीय इतना अधिक अनाज उगाते हैं कि उसकी सरकारी खरीद की जा सके। सभी भूस्वामी किसानों को पीएम किसान राशि मिलती है। इसके बाद लाखों करोड़ रुपये की धनराशि उर्वरकों, बिजली और पानी की सब्सिडी पर व्यय की जाती है। यह सब समाप्त होना चाहिए और इसकी जगह एक उल्लेखनीय नकद कृषि समर्थन होना चाहिए भले ही लागत बढ़ जाए। सभी कच्चे मालों की कीमत बाजार से निर्धारित होनी चाहिए। इससे किफायत आएगी और सबसे अहम बात पानी की बचत होगी।

4. गरीबों के लिए अन्य सभी समर्थन योजनाओं को भी समाप्त किया जाना चाहिए और उनकी जगह सबके लिए बुनियादी आय सहायता तय होनी चाहिए। इनमें मनरेगा, एनएफएसए के तहत मुफ्त अनाज और घरेलू गैस सब्सिडी आदि शामिल हैं। तीसरे कार्यकाल की बहुमत वाली सरकार यह कर सकती है और उसे ऐसा करना चाहिए। न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन की भावना के तहत ऐसा किया जाना चाहिए।

5. अगर मैं कहूं कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को उसके वर्तमान स्वरूप में समाप्त ही कर देना चाहिए तो शायद आप चीख पड़ें। यह शीर्षस्तर की सरकारी भर्ती प्रणाली बनकर रह गई है। इसमें निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा होती है, लेकिन इसमें सैकड़ों करोड़ रुपये की दर्जनों कोचिंग अकादमियों का खेल भी शामिल हैं।

मध्य, निम्न मध्य और मोदी के शब्दों में नव मध्य वर्ग के परिवार येनकेन प्रकारेण अपने बच्चों को बड़े शहरों में इन कोचिंग में पढ़ने के लिए भेजते हैं। इन बच्चों में से महज कुछ हजार कामयाब होते हैं, जबकि लाखों परिवार बरबाद हो जाते हैं या कर्ज के जाल में उलझ जाते हैं। बुनियादी तौर पर इस प्रक्रिया में मध्यवर्गीय भारत के लोगों की संपत्ति बहुत बड़े पैमाने पर अब बढ़ते निजी पूंजी आधारित कोचिंग कारोबार में जाती है।

यह सुधार केवल पारिवारिक अर्थशास्त्र से संबद्ध नहीं है बल्कि इसका संबंध उस गहन प्रणाली से है जिसके तहत नवाचार के बजाय रटने को प्राथमिकता दी जाती है। एक नई भर्ती प्रणाली तलाशने की आवश्यकता है और रटने को तवज्जो देने वाली अन्य परीक्षाओं मसलन जेईई, नीट आदि में भी ऐसे ही सुधार करने की आवश्यकता है। अगर मोदी अपने पहले कार्यकाल में योजना आयोग और रेल बजट को खत्म कर सकते हैं, दूसरे बजट में सैन्य भर्ती में अग्निवीर योजना ला सकते हैं तो तीसरे कार्यकाल में जरूर वह और ऊंचे मानक तय कर सकते हैं।

6. अब बात करते हैं राजनीतिक सुधारों की। दलबदल निरोधक कानून को खत्म करने की जरूरत है। यह अप्रासंगिक हो चुका है, हमने जो भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी देखी है वह बताता है कि यह कानून खरीद-फरोख्त को रोकने की बजाय उसे बढ़ा रहा है। अब अपने दल को एकजुट रखने की जिम्मेदारी राजनीतिक दलों पर होनी चाहिए। इसके साथ ही व्हिप व्यवस्था भी समाप्त होनी चाहिए और उसे केवल वित्त विधेयक और विश्वास मत तक सीमित रहना चाहिए।

7. इसके बाद चुनाव सुधार शुरू होने चाहिए और इनमें से कुछ सुधार अतीत के सुधारों को बदलने वाले होंगे। चुनावों में उम्मीदवारों के खर्च की सीमा तय करना और दलों को असीमित खर्च करने की इजाजत देना बेतुका है। आदर्श आचार संहिता पर भी यही बात लागू होती है क्योंकि उसकी कोई परवाह नहीं करता है। उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के दौरान देशभर में नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण की योजना को बढ़ाने की घोषणा की।

एक अन्य खराब विचार है चुनाव के 48 घंटे पहले प्रचार बंद करना। इसका सभी उल्लंघन करते हैं और डिजिटल और सोशल मीडिया के दौर में इसका कोई फायदा नहीं बचा। इसे लागू करने की कोशिश सरकार के अत्यधिक हस्तक्षेप की श्रेणी में आती है।

8. अपने दो कार्यकालों में मोदी ने तीन सुधारों को वापस लिया है: भूमि अधिग्रहण, कृषि सुधार और श्रम सुधार। उन्होंने इन्हें बिना बहस के लागू किया। पहले दो को अध्यादेश के जरिये लाया गया। पहला मुद्दा आंशिक तौर पर हल हुआ है और सरकार काफी कुछ पेशकश कर रही है, जमीन की बिक्री को आकर्षक बना रही है। बाकी दो सुधारों को भी एजेंडे में वापस आना चाहिए।

9. थिएटरीकरण (तीनों सेनाओं का एकीकरण) एक बड़ा सैन्य सुधार है जिसमें चार दशकों की देरी हुई है। यह दुखद है कि मोदी के दो कार्यकालों में इसे पूरी तरह लागू नहीं किया जा सका। यही वजह है कि हमें नए आर्मी कोर के रूप में दिखावटी बदलाव देखने को मिला जो मध्य क्षेत्र में चीन से निपटने के लिए तैयार किया गया। तीसरे कार्यकाल या 15 साल तक बहुमत का शासन होने के बाद कोई बहाना नहीं होगा।

10. हमारी सूची में अंतिम काम सबसे चुनौतीपूर्ण है। साढ़े छह दशकों में भारत की सुरक्षा को दो मोर्चों पर चुनौती का सामना करना पड़ा है। चीन ने पाकिस्तान का इस्तेमाल भारत को घेरने के लिए किया है। मोदी ने विदेशी रिश्तों और सामरिक स्थापना में बहुत कुछ हासिल किया है। क्या वह भारत को दो मोर्चों की इस चुनौती से बचा पाएंगे?

इसके लिए भारत को दो परमाणु क्षमता संपन्न पड़ोसियों में से कम से कम एक के साथ रिश्ते सामान्य करने होंगे। इसमें तमाम राजनीतिक जोखिम हैं। परंतु अगर मोदी वास्तव में कोई विरासत छोड़ जाना चाहते हैं तो भारत को इस सामरिक त्रिकोणीय समस्या से निजात दिलाना अहम होगा। नए मंदिरों का निर्माण और पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार तो वे करते ही रह सकते हैं।

First Published - February 25, 2024 | 9:16 PM IST

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