ऐसी उम्मीद जताई जा रही थी कि 5 अप्रैल को खत्म होने वाले हफ्ते में महंगाई की दर इससे पहले वाले हफ्ते के ‘भयंकर’ 7.41 फीसदी के मुकबले थोड़ी कम होगी।
बुधवार को जारी थोक मूल्य सूचकांक के आंकड़े इन उम्मीदों पर खरे उतरे हैं। इसके मुताबिक, इस दौरान महंगाई की दर 7.14 फीसदी होने का अनुमान है, जो इस दौरान एक साल पहले से ज्यादा है। हालांकि यह अब भी खतरे के निशान से ऊपर है, लेकिन कहीं न कहीं यह आंकड़ा सूरत के बदलने का आश्वासन देता है।
यह आंकड़ा इस बात को भी प्रतिबिंबित करता है कि अप्रैल के पहले हफ्ते में सरकार ने महंगाई रोकने के लिए जो कदम उठाए थे, उसका प्रभाव देखने को मिल रहा है। हो सकता है कि खाद्य तेलों के आयात शुल्क में कटौती का महंगाई की दर पर कुछ असर हुआ हो। पिछले हफ्ते में सिर्फ नारियल तेल की कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिली। पिछले हफ्ते चावल के छिलके के तेल और कपास के बीज से बनने वाले तेल में 6 फीसदी गिरावट देखने को मिली, जबकि सरसों और मूंगफली का तेल 2 फीसदी सस्ता हुआ।
जहां तक खाद्य पदार्थों की कीमतों की बात है, पिछले हफ्ते चाय की कीमतों में 4 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इसके अलावा मूंग और उड़द के दाल में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखने को मिली। एक ओर जहां चावल के घरेलू मूल्य में हल्की बढ़त का रुझान देखने को मिल रहा है, वहीं दुनिया की मंडी में इसकी कीमत में कमी देखने को मिल रही है।
इसी तरह मौसम विभाग ने दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के बारे में अग्रिम भविष्यवाणी की है, जिसमें देश में सामान्य बारिश होने की बात कही गई है। बारिश के बारे में एक अन्य ग्लोबल अनुमान में कहा गया है कि जून औैर जुलाई में सामान्य बारिश होगी, जबकि अगस्त और सितंबर में यह सामान्य से थोड़ी कम होगी, जो खरीफ फसलों के लिए शुभ संकेत है।
चावल की अच्छी फसल होने की आस में इस साल के अंत तक इसके घरेलू मूल्य में कमी की संभावना जताई जा सकती है। मॉनसून की हालत अच्छी होने के कारण प्रमुख खाद्य तेलों मसलन टूअर की कीमतें भी नरम रहने की उम्मीद है।
बहरहाल एक ओर जहां विश्व में खतरे की हालत बरकरार है, वहीं भारत में उचित नीति और अच्छी किस्मत की वजह से हालात में सुधार देखने को मिल सकता है। चेतावनी की बात यह है कि मॉनसून के बारे में अग्रिम भविष्यवाणी की बात अब तक पूरी तरह सच साबित नहीं हुई, इसलिए खतरा टला हुआ नहीं समझा जा सकता।
इसके अलावा महंगाई की दर के और प्रमुख कारक धातुओं (खासकर आयरन और स्टील) की कीमतों में कोई कमी देखने को नहीं मिल रही है। विश्व में इसकी कीमतें लगातार ऊंची हो रही हैं और कीमतों को कम करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपाय कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। ऐसे में किसानों, कृषि से जुड़े उद्योगों, आर्थिक प्रशासकों और देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इस भविष्यवाणी की विश्वसनीयता कायम रहे।