तीन दशक पहले शुरू हुई दिग्गज विमानन कंपनी जेट एयरवेज 7 नवंबर को उच्चतम न्यायालय के एक फैसले के साथ ही बंद कर दी गई। इसके कुछ दिन बाद टाटा समूह के मालिकाना हक वाली विस्तारा का विलय एयर इंडिया में कर दिया गया। यह कंपनी 11 साल पहले ही अस्तित्व में आई थी और जेट एयरवेज के बाद इसकी सेवाएं सबसे अच्छी मानी जाती थीं।
एक दिवालिया और दूसरी विलय दोनों घटनाएं दर्शाती हैं कि अप्रैल 1990 में सरकार द्वारा घोषित ‘खुली आकाश नीति’ के बाद से ही भारतीय विमानन उद्योग का सफर कितना उतार-चढ़ाव भरा रहा है। इन साढ़े तीन दशकों के दौरान भारत में लगभग 45 एयरलाइंस शुरू होकर बंद हो गईं। इनमें अधिकांश ऐसी रहीं, जिन्होंने पूरी तरह अपना संचालन रोक दिया तो कुछ ने दूसरी विमानन इकाइयों में विलय, अधिग्रहण अथवा आंतरिक पुनर्निर्माण करके अपनी पहचान को नया रूप दिया।
यह शाश्वत सत्य है कि विमानन क्षेत्र दुनिया के सबसे अधिक अनिश्चितता वाले उद्योगों में से एक है और यह युद्ध, ईंधन कीमतों में उतार-चढ़ाव, ज्वालामुखी विस्फोट जैसी अचानक घटित होने वाली तमाम घटनाओं से प्रभावित होता है। विमान टर्बाइन ईंधन, विमान पट्टे और पायलट प्रशिक्षण जैसी उच्च लागत वाली संरचना के साथ-साथ अनिश्चित नियामकीय प्रणाली के मद्देनजर भारतीय विमानन विश्व के सबसे जोखिम वाले क्षेत्रों में गिना जाता है। इसके बावजूद मोटी पूंजी के निवेश वाला यह उद्योग भारतीय कारोबारी जगत को खूब आकर्षित करता है। नाकाम होने के डर से निवेशक इस क्षेत्र में कदम रखने से बिल्कुल
नहीं घबराते।
वर्ष 1991 के बाद से ही एयरलाइंस कारोबार ने मछली पकड़ने वाले जहाज के मालिक से लेकर चिटफंड के प्रवर्तक, टिकट एजेंट, शराब व्यापारी, राजनेता, उडुपी रेस्टोरेंट संचालक और शेयर मार्केट के जाने-माने खिलाड़ी के साथ-साथ देश के सबसे बड़े कारोबारी समूह के अध्यक्ष तक को पैसा लगाने के लिए लुभाया है। गोएयर, मोदीलुफ्ट, दमानिया, किंगफिशर जैसी कई विमानन कंपनियां कुछ समय तक आकाश में उपस्थिति दर्ज कराने के बाद इतिहास में गुम हो गईं।
खास बात यह कि उद्योग जगत के कुछ ऐसे भी दिग्गज रहे, जिन्होंने विमानन क्षेत्र में नाम कमाया। इस सूची में पहला नाम आता है उदारीकरण के बाद 1994 में अस्तित्व में आई पहली निजी एयरलाइंस ईस्ट-वेस्ट एयरलाइंस का, जिसके मालिक केरल के कारोबारी ताकियुद्दीन अब्दुल वाहिद थे। एयरलाइंस का संचालन शुरू होने के एक साल बाद ही गैंगस्टरों ने वाहिद की गोली मार कर हत्या कर दी थी।
उन्होंने ऐसा क्यों किया, इसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया, लेकिन इस घटना के बाद एयरलाइंस पर बहुत बुरा असर पड़ा। बैंकों ने ऋण देना बंद कर दिया और आपूर्तिकर्ता पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा था। नतीजतन 1998 में इस एयरलाइंस को बंद कर दिया गया।
नरेश गोयल की जेट एयरवेज ने अपना संचालन शुरू करने साथ ही ग्राहकों पर अलग छाप छोड़ी और निजी क्षेत्र की सबसे सफल भारतीय एयरलाइंस बन कर उभरी, जिसने सरकारी विमानन कंपनी को कड़ी टक्कर दी। पहले घरेलू विमानन कंपनी इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया के बीच विलय का गलत निर्णय होने, फिर अनाप-शनाप विमान खरीद जैसा कदम उठाने के कारण इसका कारोबार बैठ गया। अंतत: 2021 में टाटा समूह ने इस कंपनी को 18,000 करोड़ रुपये में खरीद लिया। एयर इंडिया के साथ टाटा समूह का रिश्ता बड़े ही नाटकीय तरीके से बदलता रहा है। टाटा की एयर इंडिया का वर्ष 1953 में राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था। अब जब यह कंपनी लगातार घाटे में जा रही थी तो टाटा समूह ने इसे दोबारा अपने नाम का सहारा दिया।
डेढ़ दशक तक विमानन उद्योग में अपनी अलग छाप छोड़ने वाले नरेश गोयल को देर रात एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए याद किया जाएगा। नौकरी से निकाले जाने का फरमान जारी होने पर जेट कर्मियों ने हड़ताल कर दी थी। उस समय देर रात अचानक गोयल प्रेस के सामने आए, जिसमें उन्होंने अपनी दिवंगत मां का जिक्र किया। इसके अलावा, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाई के बाद अदालत में भावुक हो जाने की घटना को भी कौन भूल सकता है।
वर्ष 2019 में घरेलू एयरलाइन इंडिगो से मिली तगड़ी प्रतिस्पर्धा और कर्ज की गठरी भारी होती जाने के कारण जेट एयरवेज के पंख लचक गए और एयरलाइन कर्जे में डूबती चली गई। इसे दोबारा खड़ा करने के सभी प्रयास विफल साबित हुए। गोयल से पहले विजय माल्या की एयरलाइन किंगफिशर ने कर्ज के बोझ तले दब कर दम तोड़ दिया था। वर्ष 2005 में स्टार्टअप के तौर पर शुरू की गई यह एयरलाइन निस्संदेह उनके बेटे के लिए एक तोहफा थी। अपने पंख फैलाते हुए इस एयरलाइन ने 2007 में किफायती सेवाएं मुहैया कराने वाली एयर डेक्कन को खरीदा था।
किफायती सेवाएं देने की रणनीति पर चलने वाली इस एयरलाइन पर ऋण बढ़ता गया और अंतत: इसका भी दुखद अंत हुआ। माल्या कर्जदारों से बचने के लिए लंदन भाग गए। कम खर्च पर आम आदमी को भी हवाई यात्रा का सुखद अनुभव कराने के लिए गरीबों का रिचर्ड ब्रैन्सन और शानदार पार्टी एवं शानो-शौकत वाली जीवनशैली के लिए कभी ‘किंग ऑफ गुड टाइम्स’ की छवि गढ़ने वाले विजय माल्या बाद में भगोड़ा के नाम से कुख्यात हुए।
जिस जीआर गोपीनाथ से विजय माल्या ने एयर डेक्कन को खरीदा था, वह कहीं बेहतर स्थिति में रहे। उन्होंने ही एयर डेक्कन को किफायती एयरलाइन के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया था, लेकिन वह इसमें कामयाब नहीं हो पाए और तमाम कोशिशों के बावजूद एयरलाइन को लाभ में नहीं ला पाए। अंतत: उन्होंने इसे किंगफिशर को बेच दिया। बाद में उन्होंने कार्गो एयरलाइन की स्थापना की, लेकिन दो साल बाद इसे भी बंद करना पड़ा।
बाद में उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘सिम्फलीफाई’ पर फिल्म बनाई। यह गला काट प्रतिस्पर्धा, भ्रष्ट अफसरशाही और अपने सपनों को पंख देने वाले राजनेताओं की एक नाटकीय कहानी का मिश्रण है। उनकी आत्मकथा का तमिल संस्करण सोरारई पोटरु 2020 और अक्षय कुमार अभिनीत बॉलीवुड फिल्म सिरफिरा इसी साल रिलीज हुई है।
इसके बाद विमानन बाजार में 2006 में बिना तामझाम के इंडिगो एयरलाइन ने उड़ान भरी। लेकिन, एयरलाइन के दो साझेदारों राकेश गंगवाल और राहुल भाटिया के बीच भविष्य की रणनीति, लेन-देन एवं बोर्ड पर नियंत्रण से संबंधित व्यापारिक आरोपों को लेकर मतभेद की खबरें खूब बिजनेस अखबारों की सुर्खियां बनीं। गंगवाल के एयरलाइंस बोर्ड से इस्तीफा देने और कंपनी में अपनी शेयरधारिता घटाने की शुरुआत करने से पहले यह विवाद बाजार नियामक, प्रधानमंत्री कार्यालय, विमानन नियामक और अंतरराष्ट्रीय पंचाट तक भी पहुंचा।
घरेलू एयरलाइनों द्वारा प्रति वर्ष लगभग 15 करोड़ यात्रियों को सफर कराने के साथ भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन बाजार है। यहां लगभग 79 प्रतिशत एयरलाइंस किफायती सेवाएं देती हैं। उम्मीद है कि वर्ष 2030 तक भारतीय विमानन क्षेत्र प्रति वर्ष 30 करोड़ लोगों को यात्राएं कराने में सक्षम होगा। सुनहरी संभावनाओं वाला विमानन क्षेत्र कर्ज और घाटे की अपनी पुरानी समस्या के साथ-साथ ही आगे बढ़ेगा। वित्त वर्ष 2025 में इस क्षेत्र का घाटा 2,000 करोड़ रुपये से 3,000 करोड़ रुपये के बीच रहने की संभावना जताई गई है। घाटा और कर्ज जैसी चिंताओं से बेफिक्र उद्योग के दिग्गज इस समय ताबड़तोड़ खरीदारी में व्यस्त हैं।
देश के 63 प्रतिशत विमानन बाजार पर प्रभुत्व रखने वाली इंडिगो ने हाल ही में 990 तथा टाटा ग्रुप ने 555 विमानों का ऑर्डर दिया है। यही नहीं, विमानन बाजार में 2021 में दस्तक देने वाली आकाश एयर ने भी 226 विमानों को खरीदने के लिए सौदा किया है। जहां विमान पट्टे की देनदारी के कारण लगातार विमानन कंपनियों पर ऋण का बोझ बढ़ता जा रहा हो, वहां इस तरह विमान खरीद के ऑर्डर सकारात्मक पहलू है।
टाटा समूह की विभिन्न एयरलाइंस और इंडिगो की बाजार हिस्सेदारी 89 प्रतिशत है। दोनों के बीच द्विपक्षीय बनते विमानन उद्योग के लिए शायद यह बढि़या दांव है। अब कोई अन्य कपंनी बाजार में आकर नए ऑर्डर दे तो चौंकिएगा नहीं।