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Urban Challenge Fund: शहरी चुनौती फंड को मजबूत बनाने के लिए सात जरूरी कदम

भारत के शहर संभावनाओं से भरपूर हैं मगर धन जुटाने के पुराने तौर-तरीकों और अत्यधिक दबाव का सामना कर रहे हैं। बता रहे हैं विनायक चटर्जी

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विनायक चटर्जी   
Last Updated- September 01, 2025 | 10:19 PM IST

भारत के शहर संभावनाओं से भरपूर हैं मगर धन जुटाने के पुराने तौर-तरीकों और अत्यधिक दबाव का सामना कर रहे बुनियादी ढांचे के कारण अपनी पूरी क्षमता के साथ प्रगति नहीं कर पा रहे हैं। वर्ष 2011 और 2018 के बीच शहरी उपयोगिता ढांचे (रियल एस्टेट को छोड़कर) पर पूंजीगत व्यय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का केवल औसतन 0.6 फीसदी रहा है। यह जरूरी रकम का महज एक चौथाई हिस्सा ही है। वर्ष 1992 में भारतीय संविधान में हुए 74वें संशोधन का लक्ष्य शहरों को ‘अपना भविष्य स्वयं तय करने की स्वतंत्रता’ देना था मगर यह उद्देश्य अधूरा रह गया है।

इस विषय को गंभीरता से लेते हुए इस साल फरवरी में प्रस्तुत केंद्रीय बजट में एक बड़े बदलाव की घोषणा की गई जिसकी जरूरत काफी समय से महसूस की जा रही थी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि केंद्र सरकार ‘शहरों को विकास के केंद्र बनाने’, ‘शहरों के रचनात्मक पुनर्विकास’ और ‘जल एवं स्वच्छता’ जैसे प्रस्ताव लागू करने के लिए 1 लाख करोड़ रुपये के साथ शहरी चुनौती कोष (अर्बन चैलेंज फंड या यूएसीएफ) तैयार करेगी। यह ‘अधिकार आधारित’ अनुदानों से ‘प्रदर्शन आधारित’ वित्त पोषण तंत्र की तरफ उठाया गया एक बड़ा रणनीतिक कदम है।

भारत की जनगणना किसी इलाके को दो शर्तों पर शहरी क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत करती है। पहली शर्त, अगर कोई अधिसूचित शहरी स्थानीय निकाय वाला एक वैधानिक शहर है, तो वह शहरी क्षेत्र में आएगा। दूसरी शर्त, कोई क्षेत्र जनगणना शहर हो जो सभी तीन मानदंडों को पूरा करता हो यानी वहां कम से कम 5,000 आबादी हो, प्रति वर्ग किलोमीटर 400 जनसंख्या घनत्व हो और 75 फीसदी पुरुष कार्य बल गैर-कृषि गतिविधियों में शामिल हो। वर्ष 2027 की जनगणना में इन मानदंडों को लागू करने से ऐसा हो सकता है कि भारत के शहरी क्षेत्रों में 60 फीसदी से अधिक आबादी रहने लगे।

यह आंकड़ा 2011 में जनगणना में दर्ज 31 फीसदी से काफी अधिक होगा। केरल का मामला बिल्कुल अलग है। वहां शहरीकरण की दर वर्ष 2022 में दर्ज 73.19 फीसदी से 2036 में 96 फीसदी पहुंचने का अनुमान जताया जा रहा है। हालांकि, ऐसे राज्य भी हैं जहां शहरीकरण की दर काफी धीमी है। इस स्थिति से निपटने के लिए नीति आयोग चार शहर क्षेत्रों- मुंबई महानगर क्षेत्र, वाराणसी, सूरत और विशाखापत्तनम में आर्थिक गतिविधि और भूमि के इस्तेमाल के आधार पर एक नए ढांचे पर काम कर रहा है। स्पष्ट है कि भारत में शहरीकरण की राह में पेश आने वाली चुनौतियां काफी कम कर आंकी जा रही हैं।

यूसीएफ का ढांचा महत्त्वाकांक्षा और नई सोच को बढ़ावा देने के लिए तैयार किया गया है। इसके तहत 25 फीसदी वित्त पोषण केंद्र सरकार की तरफ से मिलेगा है और शहरों को परियोजना खर्च का कम से कम 50 फीसदी हिस्सा बॉन्ड, ऋणों या सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से जुटाने के लिए कहा गया है। यूसीएफ अधिक प्रभाव एवं राजस्व अर्जित करने वाली परियोजनाओं को प्राथमिकता देकर निजी निवेश को बढ़ावा देगा और शहरों द्वारा विकास के लिए रकम जुटाने के तरीकों को नए सिरे से परिभाषित करेगा।

शहरीकरण को बढ़ावा देने के लिए धन जुटाने को लेकर भारत के पिछले अनुभव को देखते हुए इस विषय पर पुनर्विचार करने की जरूरत महसूस की गई। वर्ष 2015 में शुरू ‘स्मार्ट सिटी मिशन’ से स्थानीय स्तर पर नवाचार को बढ़ावा मिला मगर निजी क्षेत्र की भागीदारी सीमित रही। केवल 6 फीसदी परियोजनाओं में सार्वजनिक-निजी साझेदारियों (पीपीपी) का इस्तेमाल हुआ और 2023 तक केवल 12 फीसदी परियोजनाएं अपना हिसाब-किताब पूरा करने में सफल रहीं जो 21 फीसदी के लक्ष्य से काफी कम है।

सामाजिक ढांचे के लिए 80 फीसदी तक सहयोग की पेशकश करने के बावजूद व्यवहार्यता अंतर वित्त पोषण योजना के अंतर्गत दो दशकों के दौरान केवल 71 परियोजनाएं मंजूर हो पाईं। अफसरशाही के स्तर पर देरी, त्रुटिपूर्ण अनुबंध और दोषपूर्ण परियोजना अवधि से जुड़े अनुमानों के कारण यह नौबत आई। नगर निगम (म्युनिसिपल) बॉन्ड इस्तेमाल नहीं पाए क्योंकि ज्यादातर शहरी स्थानीय निकाय साख के पैमाने पर खरा नहीं उतरते थे।

यूसीएफ के ढांचे एवं इसकी आपूर्ति मजबूत करने के लिए इन्फ्राविजन फाउंडेशन ने अपने व्यापक शोध एवं क्षेत्रीय अनुभव के आधार पर निम्नलिखित सुझाव दिए है-

1. यूसीएफ को परियोजना नियोजन, परिचालन एवं रखरखाव, सेवा आपूर्ति में परियोजना की अवधि से जुड़ी सोच शर्तिया तौर पर शामिल करनी चाहिए और नागरिकों की संतुष्टि को एक प्रमुख घटक मानते हुए इस पर शुरू से ही ध्यान देना चाहिए। परियोजनाओं का ढांचा संरचित परिचालन एवं रखरखाव मानकों, सेवा संबद्ध भुगतान और नागरिक केंद्रित निगरानी के साथ तैयार किया जाना चाहिए। बुनियादी ढांचे के लिए वित्त उपलब्ध कराना ही एकमात्र लक्ष्य नहीं होना चाहिए बल्कि शहरों के नजरिये (बुनियादी ढांचे को उत्पाद के बजाय उन्हें सेवा मानना) को भी बदलने पर ध्यान होना चाहिए।

2. शहरी बुनियादी ढांचे में निवेश से जुड़े जोखिम समाप्त कर निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी को अवश्य बढ़ावा दिया जाना चाहिए। यूसीएफ को अपने अनुदानों को फर्स्ट लॉस गारंटी, ऋण वृद्धि और राजस्व नुकसान से बचाव के साथ जोड़ना चाहिए। विकास वित्त बैंक नैबफिड द्वारा प्रस्तावित आंशिक क्रेडिट गारंटी फंड नगर निगमों के बॉन्ड में निवेशकों के भरोसे को बढ़ावा देने में एक सहायक भूमिका निभा सकता है।

3. शहरों को स्वयं अपने संसाधन जुटाने में बेहतर प्रदर्शन करना चाहिए। विभिन्न नगर निगम सेवाओं के लिए ‘उपयोगकर्ता-भुगतान’ का प्रावधान करना राजनीतिक रूप से गर्म मुद्दा बना रहा है। जब तक शहर राजस्व संग्रह एवं इनका प्रबंधन पूरी पारदर्शिता ने नहीं करते हैं तब तक निजी निवेशकों में हिचकिचाहट बनी रहेगी।

4. क्षमता निर्माण के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता। देश के कई बड़े एवं मझोले शहरों में पुख्ता योजना तैयार करने की क्षमता एवं तकनीकी टीम का अभाव है और जटिल शहरी बुनियादी ढांचे का खाका तैयार करने, निविदा जारी करने और प्रबंधित करने की वित्तीय परख नहीं है। परियोजना की तैयारी एवं क्रियान्वयन मजबूत करने के लिए शहरों को समर्पित परियोजना तैयारी प्रकोष्ठों, तकनीकी मार्गदर्शन और सहज मंजूरी प्रक्रिया के साथ लैस करना जरूरी है।

5. यूसीएफ को जल-सुरक्षित शहर चुनौती या शून्य-अपशिष्ट चुनौती जैसे लक्षित चुनौती कार्यक्रम शुरू करके नवाचार को प्रोत्साहित करना चाहिए। इनमें प्रदर्शन-आधारित वित्त पोषण और परिणाम-संबद्ध मूल्यांकन ढांचे द्वारा समर्थन होना चाहिए।

6. यूसीएफ को पीएम गति शक्ति या अटल नवीकरण मिशन जैसी मौजूदा योजनाओं से अलग अपनी एक पहचान बनाकर स्पष्ट राजस्व मॉडल के साथ उच्च प्रभाव वाली नवीन परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसे पारगमन-उन्मुख विकास केंद्रों, अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्रों जैसी परियोजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए जो अपशिष्ट का मुद्रीकरण करते हैं।

7. संस्थागत स्पष्टता एक और स्तंभ है। यूसीएफ को एक चुस्त और उत्तरदायी निकाय द्वारा संचालित किया जाना चाहिए जो सार्वजनिक और निजी दोनों हितधारकों के साथ प्रभावी ढंग से जुड़ सके। इसे एक और टॉप-डाउन योजना बनने से बचना चाहिए और इसके बजाय परियोजना चयन से लेकर निगरानी और मूल्यांकन तक हर स्तर पर प्रतिस्पर्धा, स्वायत्तता और नवाचार की भावना को बनाए रखना चाहिए।

यदि भारत को 2047 तक वास्तव में विकसित भारत बनना है, तो हमारे शहरों को पहले विश्वसनीय, रहने योग्य और चुनौतियों से निपटने लायक बनना होगा। शहरी चुनौती कोष एक ऐसा प्रेरक बन सकता है जिसका हमें लंबे समय से इंतजार रहा है।


(लेखक बुनियादी ढांचा क्षेत्र के विशेषज्ञ एवं इन्फ्राविजन फाउंडेशन (टीआईएफ) के संस्थापक एवं प्रबंध न्यासी हैं। इस लेख में टीआईएफ की कार्यक्रम प्रमुख मुतुम चाओबिसाना का भी शोध सहयोग है।)

First Published : September 1, 2025 | 10:09 PM IST