द इन्फ्राविजन फाउंडेशन के विस्तृत श्वेत पत्र में केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित एक योजना का प्रस्ताव दिया गया है जिसके जरिये मुख्यत: छत पर लगाए जाने वाले सोलर फोटोवोल्टेक्स (आरटीपीवी) से आमदनी बढ़ाने के मौके तलाशे जाएंगे। यह योजना बड़े पैमाने पर समाज के पिरामिड के निचले स्तर पर मौजूद लोगों और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए लक्षित है। इसमें लोगों के घरों की छतों और आंगनों में आने वाली धूप को आमदनी के स्रोत में बदलकर गरीबी उन्मूलन के लिए प्रभावशाली हस्तक्षेप की क्षमता है।
उदाहरण के तौर पर चीन में ग्रामीण परिवारों को गरीबी के दायरे से बाहर निकालने के लिए सरकार द्वारा आरटीपीवी शुरू की गई 10 पहलों में से एक है। पिछले साल गुजरात के मेहसाणा जिले के मोढेरा गांव में घरों की छतों पर 100 प्रतिशत सौर ऊर्जा के माध्यम से व्यापक परिवर्तनकारी क्षमता का प्रदर्शन किया गया।
भारतीय घरों की छतों पर सौर ऊर्जा के उपकरण अभी तक उतने सफल नहीं हुए हैं। यह अफसोस की बात है। जिस तरह की योजना सुझाई गई है उससे इस क्षेत्र में जान फूंकने की कोशिश की जानी है जो न केवल स्वच्छ ऊर्जा को लक्षित करती है, बल्कि इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह आय सृजन से जुड़ी एक नवाचार योजना है। इसे सूरज से रोजगार (या सूर्य की रोशनी से होने वाली कमाई) कहा जा सकता है।
प्रस्तावित योजना में ग्राहकों के संयोजन के अनुसार केंद्र सरकार भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (आईआरईडीए) के माध्यम से इसमें शामिल होती है। केंद्र सरकार की वित्तीय सहायता के साथ आईआरईडीए राज्य नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसियों (एसआरडीए) की अपनी विस्तारित शाखा के माध्यम से छतों पर लगाए जाने वाले उपकरणों (रूफटॉप मॉड्यूल) और सहायक बुनियादी ढांचे की खरीदारी के साथ ही इसे इंस्टॉल करने का काम भी करता है।
आईआरईडीए की थोक खरीद से मॉड्यूल निर्माताओं को अधिक मात्रा में ऑर्डर देकर पूंजीगत लागत कम की जा सकती है। एसआरडीए, आरटीपीवी की बेंचमार्क लागतों पर राज्य नियामकों के अनुमोदन हासिल करते हैं जिसमें राज्य के लिए विशेषतौर पर ग्रिड लगाने का शुल्क और डेवलपर के लिए मार्जिन शामिल है। बेंचमार्क लागत आईआरईडीए द्वारा निकाली गई पूंजीगत लागतों पर स्थान और सेवाओं की मूल्य वृद्धि को दर्शाती है।
स्थानीय ‘डेवलपरों’ की एक नई पीढ़ी को इस योजना की मार्केटिंग करनी होगी और इसके लिए उपभोक्ताओं के हितों को मुख्य केंद्र में रखना होगा। उसके बाद आवश्यक मॉड्यूल और बुनियादी ढांचे के अनुरोध के लिए एसआरडीए से संपर्क करना होता है। फिर वे उपभोक्ताओं की छतों और आंगनों में इसे इंस्टॉल करते हैं और कम से कम 15 वर्षों तक इसके रखरखाव के लिए जिम्मेदार होते हैं। उन्हें उनकी सेवाओं के लिए एसआरडीए से इंस्टॉलेशन का शुल्क और वार्षिक रखरखाव शुल्क का भुगतान किया जाता है।
उपभोक्ताओं को बेंचमार्क लागत की हिस्सेदारी साझा करनी पड़ रही है जो इस बात पर निर्भर करता है कि वे किस श्रेणी में फिट होंगे जैसे कि उदाहरण के तौर पर कम आमदनी वाले परिवारों से लेकर संस्थागत या छोटे व्यवसायों तक। उन्हें आरटीपीवी से पैदा हुई बिजली के अपने हिस्से के इस्तेमाल और शेष राशि पर सहमत होना होगा जिसे एसआरडीए को बेचा जाएगा (जब तक कि बिजली वितरण कंपनियां नहीं खरीदती हैं), इसके लिए उन्हें उपयुक्त मुआवजा दिया जाएगा।
एसआरडीए सभी प्रतिभागी उपभोक्ताओं से बाकी बिजली एकत्र करते हैं और इस बिजली को अन्य वितरण कंपनियों, बड़े उपभोक्ताओं और बिजली एक्सचेंजों को बेचकर अधिकतम राजस्व हासिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
मूल्य निर्धारण के मौके से ही अंततः केंद्र सरकार द्वारा मिलने वाली वित्तीय सहायता की दर तय होगी जो वास्तव में प्रतिभागी उपभोक्ताओं को भुगतान किए गए मुआवजे और अन्य पक्षों को बेची गई बिजली की वास्तविक बिक्री मूल्य के बीच का अंतर है।
वर्तमान में, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही
रूफटॉप-सब्सिडी योजनाओं के लिए उपभोक्ताओं को लागत का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा वहन करना होगा। इन सुझाए गए कार्यक्रम के लिए, यह सिफारिश की जाती है कि उपभोक्ताओं को तीन अलग-अलग श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाए जिनमें (i) कम आय वाले परिवार (ii) सामाजिक, संस्थागत और छोटे व्यवसाय जैसे नगरपालिका स्कूल और जिला अस्पताल, गैर-सरकारी संगठन, किसान उत्पादक संगठन, लघु एवं मध्यम उद्यम (एसएमई) या सूक्ष्म-एसएमई व्यवसाय और (iii) नियमित आमदनी वाले परिवार शामिल हैं।
इसमें यह प्रस्ताव रखा गया है कि कम आमदनी वाले परिवारों को पूर्ण पूंजीगत अनुदान मिले, यानी उन्हें आरटीपीवी लगाने और उसके रखरखाव की लागत के किसी भी हिस्से के लिए भुगतान नहीं करना होगा। सामाजिक/संस्थागत/छोटे व्यवसाय 80 प्रतिशत लागत वहन करते हैं, जबकि नियमित आमदनी वाले परिवार 60 प्रतिशत का वहन करते हैं, जो वर्तमान चलन के अनुसार है।
डेवलपरों की जिम्मेदारी है कि वे उपभोक्ताओं को इस कार्यक्रम के फायदे के बारे में बताएं और इसकी मार्केटिंग करते हुए मांग बढ़ाएं। एक बार जब उपभोक्ता अपना योगदान (निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार) देते हैं तब डेवलपर उपभोक्ताओं के परिसर में जरूरी आरटीपीवी लगाते हैं। डेवलपर को अपनी सेवाओं के लिए एसआरडीए से एक निश्चित इंस्टॉलेशन शुल्क और वार्षिक रखरखाव शुल्क मिलता है।
इससे स्वाभाविक रूप से स्थानीय ऊर्जा क्षेत्र के उद्यमियों का एक नया समूह तैयार होता है जो जिला स्तर पर ऐसे अवसर तैयार करने के सरकार के दृष्टिकोण के अनुरूप है। प्रस्तावित केंद्रीकृत योजना से पांच साल की अवधि में 20 गीगावॉट की आवासीय आरटीपीवी क्षमता जुड़ने की उम्मीद है। इस योजना के लिए अनुमानित 15 साल की अवधि के लिए शुद्ध रूप से केंद्र सरकार से जुड़े क्षेत्र के बजट समर्थन के लिए लगभग 19,950 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी।
इन सबके अलावा सीमित छत की जगह वाली कम आमदनी वाले परिवार को अपने घर में मिलने वाली सूर्य की रोशनी से प्रति वर्ष 3,500 रुपये से 6,000 रुपये तक कुछ लाभ (अनुमान के आधार पर) मिल सकता है। ‘स्वच्छ ऊर्जा के प्रभाव’ के साथ इस तरह के गरीबी-उन्मूलन के मौके को निश्चित रूप से छोड़ा नहीं जा सकता है।
(लेखक बुनियादी ढांचागत क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं और दि इन्फ्राविजन फाउंडेशन के संस्थापक और प्रबंध ट्रस्टी भी हैं। फाउंडेशन में प्रतिष्ठित फेलो रसिका आठवले ने तकनीकी जानकारी प्रदान की है)