नई दिल्ली में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन में बहुपक्षीय विकास बैंकों (एमडीबी) में व्यापक सुधार के आह्वान के बाद अब सकारात्मक परिणाम दिखते प्रतीत हो रहे हैं। इस शिखर सम्मेलन में दुनिया में विकास कार्यों को बढ़ावा देने के लिए एमडीबी को बेहतर, व्यापक एवं प्रभावी बनाने के लिए सुधारों की एक कार्यसूची तैयार की गई थी। इनमें जलवायु संकट से उत्पन्न ‘वैश्विक चुनौती’ से निपटने में एमडीबी के वर्तमान स्रोतों का इस्तेमाल और दूसरे वित्तीय संस्थानों से भी धन जुटाने के उपाय आदि शामिल हैं।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपनी नवीन वैश्विक वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट (जीएसएफआर) में कहा है कि वर्ष 2050 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने और वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को बेअसर करने के लिए वर्ष 2030 तक सालाना 5 लाख करोड़ रुपये निवेश की आवश्यकता होगी। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार इसका लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा यानी 2 लाख करोड़ रुपये तेजी से उभरते बाजारों एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (चीन को छोड़कर) में खर्च किए जाएंगे।
दिल्ली घोषणापत्र से पहले ही विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बग्गा ने कहा था कि विश्व बैंक ने प्रत्येक डॉलर के प्रभावी इस्तेमाल के लिए एक कार्य योजना तैयार कर रखी है और इससे उसकी ‘एएए’ क्रेडिट रेटिंग पर भी असर नहीं होगा। बग्गा ने कहा था, ‘हम अपनी ऋण आवंटन क्षमता मजबूत करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं और प्रतिदेय पूंजी (कॉलेबल पूंजी) का लाभ उठाने के लिए तरीके ढूंढ रहे हैं।
इसके साथ मिश्रित पूंजी (हाइब्रिड कैपिटल) जैसे विकल्प भी तलाश किए जा रहे हैं जिनसे कई बेहतर परिणाम मिल पाएंगे। हम सस्ते ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराने के विकल्प का दायरा बढ़ाना चाहते हैं, ताकि इससे निम्न आय वाले अधिक देशों को विकास के लक्ष्य प्राप्त करने में आसानी हो।’
एक ओर जहां विश्व बैंक ‘अपने हिस्सेधारकों की आकांक्षाओं के अनुकूल एक नया दृष्टिकोण’ अपनाने पर विचार कर रहा है, वहीं एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) ने पिछले सप्ताह ‘पूंजी प्रबंधन सुधारों की घोषणा की थी। इन सुधारों के माध्यम से एशिया में जलवायु परिवर्तन के अलावा अन्य संकटों से निपटने के लिए अगले दशक में 100 अरब डॉलर की नई पूंजी का प्रबंध करने की योजना है’।
बग्गा ने इन संकटों को ‘एक दूसरे से जुड़ी चुनौतियां करार’ दिया था, जिनमें जलवायु परिवर्तन, कोविड महामारी के बाद शुरुआती सुधार और यूरोप की सीमाओं पर युद्ध आदि शामिल हैं।’
एडीबी ने भी सुधारों की घोषणा की है। इस सुधारों के क्रियान्वयन के बाद उनकी सालाना आवंटन क्षमता बढ़कर 36 अरब डॉलर से अधिक हो जाएगी, जो लगभग 10 अरब डॉलर की बढ़ोतरी होगी। दिलचस्प बात है कि यह बढ़ोतरी सभी विकल्पों पर विचार करने हुए पूरी समझ-बूझ के साथ की जा रही है, वहीं जोखिम वहन करने की क्षमता का भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है।
इन उपायों से एडीबी अपने वित्तीय स्रोतों से विकासशील सदस्य देशों (डीएमसी) और एशिया-प्रशांत में निजी क्षेत्र के अपने ग्राहकों को अगले दस वर्षों में 360 अरब डॉलर तक रकम उपलब्ध कर पाएगा। इस प्रक्रिया में यह अपनी ‘एएए’ क्रेडिट रेटिंग (वित्तीय दायित्व पूरा करने की अत्यधिक क्षमता) और दीर्घ अवधि के लिए कम ब्याज पर ऋण देने की अपनी क्षमता पर भी असर नहीं पड़ने देगा।
एडीबी का पूंजी पर्याप्तता ढांचा (सीएएफ) इसकी परिसंपत्तियों में संतुलन, इनकी देनदारियों और जोखिमों का मूल्यांकन करता है ताकि किसी प्रतिकूल परिस्थिति में यह अपनी जिम्मेदारी पूरी करने में सक्षम रहे। सीएएफ कुछ इस तरह तैयार किया गया है कि जोखिम वहन करने की एडीबी की क्षमता में कोई कमी नहीं आए और इसे प्रतिदेय पूंजी पर भी निर्भर नहीं रहना पड़े। इसका एक अन्य लक्ष्य आपात स्थिति में भी एडीबी की उधार देने की क्षमता सुनिश्चित करना है।
एडीबी के अध्यक्ष मासात्सुगु असाकावा ने कहा कि यह निर्णय एडीबी ने इस आह्वान के बाद लिया है कि बहुपक्षीय विकास बैंकों को अपने मौजूदा संसाधनों के साथ पूरे उत्साह के साथ विकास कार्यों को बढ़ावा देने में भागीदारी निभानी चाहिए। असाकावा ने कहा कि उधार देने की इस अतिरिक्त क्षमता को निजी क्षेत्र से पूंजी जुटाकर और अधिक शक्ति दी जानी चाहिए ताकि विकास कार्यों का अधिक से अधिक असर दिखे।
इस बात को समझना बेहद आवश्यक है कि केवल एमडीबी से मिलने वाली रकम से ही बात नहीं बनेगी। जलवायु परिवर्तन के साथ अनुकूलन स्थापित करने एवं दुष्प्रभावों को दूर करने, आपदा वहन क्षमता बढ़ाने एवं 2030 तक टिकाऊ विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अरबों-खरबों डॉलर रकम की आवश्यकता होगी।
टिकाऊ विकास लक्ष्यों को तय सीमा में प्राप्त करना लगातार कठिन एवं महंगा होता जा रहा है। दूसरे क्षेत्रों की तरह ही एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र भी इन लक्ष्यों की प्राप्ति में फिसल रहे हैं। एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग का अब कहना है कि वर्तमान गति के साथ तो 2065 से पहले टिकाऊ विकास लक्ष्य पूरे होते नहीं दिख रहे हैं।
जीएसएफआर के अनुसार तेजी से उभरती एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (ईएमडीई)- चीन को छोड़कर- में जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने पर आने वाले खर्च में निजी क्षेत्र को 90 प्रतिशत हिस्सा तक वहन करना होगा।
एमडीबी निजी क्षेत्र से अरबों-खरबों रुपये जुटाना चाहते हैं मगर उनका यह प्रयास यह बात पर निर्भर करेगा कि ईडीएमई को निजी पूंजी जुटाने में पेश आ रही दिक्कतों से निपटने के लिए वे डीएमसी के साथ किस हद तक सहयोग कर पाते हैं। एमडीबी को संस्थागत सुधार एवं अनुकूल माहौल बनाने के लिए कई कदम उठाने होंगे तभी निजी निवेश आने की रफ्तार जोर पकड़ेगी।
उदाहरण के लिए एडीबी निजी निवेश के लिए विश्वसनीय परियोजनाएं तैयार करने के लिए सलाहकार सेवाएं देता है और इसके साथ ही डाउनस्ट्रीम फाइनैंसिंग (किसी कंपनी द्वारा अपनी अनुषंगी इकाई को उसके इस्तेमाल के लिए सस्ती दर पर ऋण उपलब्ध कराना) भी उपलब्ध कराता है। हालांकि, हाल में ही इसने न्यू ऑपरेटिंग मॉडल (एनओएम) की शुरुआत की है, जो इस एशिया-प्रशांत क्षेत्र के जलवायु बैंक के रूप में काम करने, गैर-संप्रभु परिचालन में तेजी लाने एवं डीएमसी के समाधान प्रदाता के रूप में इसकी क्षमता में इजाफा करता है।
पूंजी पर्याप्तता ढांचे के अलावा एडीबी ने एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र में जलवायु के लिए नई वित्त सुविधा (आईएफ-सीएपी) की शुरुआत भी की थी। यह पहल दाताओं को एडीबी के बही-खाते में संप्रभु ऋण खातों के कुछ हिस्सों पर गारंटी देने की अनुमति देती है। इससे नई जलवायु परियोजनाओं के लिए रकम उपलब्ध कराने की गुंजाइश बढ़ जाती है।
टिकाऊ विकास लक्ष्यों और जलवायु परिवर्तन से निपटने क लिए धन की जरूरत के बीच लगातार बढ़ रहे अंतर के कारण एमडीबी के लिए आपसी सहयोग, साख वृद्धि, जोखिम स्थानांतरण, गारंटी और मिश्रित वित्त के जरिये निजी पूंजी की उपलब्धता सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण हो गया है।
एमडीबी को पेंशन फंड, परिसंपत्ति प्रबंधन एवं बीमा कंपनियों सहित वाणिज्यिक बैंकों एवं संस्थागत निवेशकों से निजी पूंजी जुटाने के नए तरीके खोजने होंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि इन सुधारों की बदौलत किस सीमा तक एडीबी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए आवश्यक धन मुहैया करने का लक्ष्य बढ़ा पाएगा।
इसने ग्लासगो कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज में 2019 से 2030 के बीच 100 अरब डॉलर का लक्ष्य रखा था और इसे 80 अरब डॉलर से 25 प्रतिशत बढ़ा दिया था। इसका यह भी मतलब हो सकता है कि 100 अरब डॉलर में निजी क्षेत्र को 12 अरब डॉलर मुहैया कराने की प्रतिबद्धता अधिक हो जाएगी और इसका नतीजा यह होगा कि निजी क्षेत्र से 18 से 30 अरब डॉलर रकम पूंजी के रूप में मिल पाएगी। अतः पूंजी पर्याप्तता सुधारों के कई परिणाम दिख सकते हैं।
(लेखक पूर्व चुनाव आयुक्त, पूर्व वित्त सचिव और एशियाई विकास बैंक में उपाध्यक्ष के पद पर रह चुके हैं)