आंध्र प्रदेश में अब केवल एक ही राजधानी अमरावती होगी। कई न्यायिक चुनौतियों का सामना करते हुए बहादुरी दिखाने के बजाय विवेक का इस्तेमाल करते हुए मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने पिछले सप्ताह विधानसभा में घोषणा की कि सरकार, राज्य में तीन राजधानियां बनाने वाले कानून वापस ले रही है जो विशाखापत्तनम (कार्यकारी), कुरनूल (न्यायिक) और अमरावती (विधायी) में बननी थी।
रेड्डी ने संकेत दिया कि तीन राजधानियों की योजना पूरी तरह से रद्द नहीं की गई है बल्कि फिलहाल टाली जा रही है। उन्होंने कहा, ‘राज्य के विकेंद्रीकृत विकास की हमारी मंशा, गलत तरीके से पेश की गई है। इसके अलावा कानूनी अड़चनें पैदा हुईं और अदालती मामले दर्ज कराए गए।’
मुख्यमंत्री की घोषणा के साथ ही सपनों, महत्त्वाकांक्षा, लोभ और कड़वी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से जुड़े नाटकीय पहलुओ पर से आधा पर्दा उठ गया है। जिन लोगों ने आंध्र प्रदेश की अचल संपत्ति में निवेश किया था और उन्हें उम्मीद थी कि जमीन का मूल्य दोगुना और शायद अगले दशक में तिगुना भी हो जाएगा। राज्य सरकार लगभग दिवालिया होने के कगार पर पहुंच चुकी है और अगर बुनियादी ढांचे के निर्माण पर होने वाले खर्च के भुगतान को एकतरफ भी रख दिया जाए तब भी सरकार जमीन गंवाने वाले लोगों को पूरा मुआवजा देने में सक्षम नहीं है। प्रशासकों, शहरी योजनाकारों और आम नागरिकों के बीच अनिश्चितता बढ़ी है। इस कहानी के केंद्र में ताकत और पैसा है और यह अभी खत्म नहीं हुई है।
यह सब आंध्र प्रदेश के विभाजन और तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के बनने के साथ शुरू हुआ। चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) ने एक मौका देखा। पूर्व मुख्यमंत्री ने नए कारखानों के निर्माण के साथ-साथ भविष्य के लिहाज से उम्मीदें जगाने वाली और विश्वस्तरीय राजधानी अमरावती के निर्माण की कल्पना की। यह सिंगापुर पर आधारित मॉडल होना था और इसके मास्टर प्लान में सिंगापुर सरकार द्वारा नियुक्त दो सलाहकारों की मदद ली गई थी। इस शहर के तहत 217 वर्ग किमी के भौगोलिक क्षेत्र को कवर करना था और लगभग 8 अरब डॉलर के निवेश के साथ इसे तैयार किया जाना था। इसमें इन बातों का जिक्र कहीं नहीं था कि अमरावती के आसपास की जमीन अमीर कम्मा समुदाय के किसानों की थीं जो तेदेपा के समर्थक रहे हैं। इस योजना में सबसे ज्यादा नुकसान रेड्डी समुदाय का होना था जो आंध्र प्रदेश में राजनीतिक रूप से दूसरी ताकतवर जाति है और इसके पास काफी जमीन है।
जब अमरावती को राजधानी बनाए जाने की घोषणा हुई तब इस क्षेत्र के आसपास की जमीन की कीमत कई सौ गुना बढ़ गई और बड़ी तेजी से जमीन के मालिकाना हक और इसके इस्तेमाल के तरीके में बदलाव किए गए।
हालांकि नायडू की योजनाएं फलीभूत हो पातीं उससे पहले विधानसभा चुनाव का दौर आ गया। शहर के लिए चिह्नित लगभग 54,000 एकड़ में से 42,000 एकड़ खेती वाली जमीन थी जिसमें से 40,000 एकड़ सिंचित जमीन थी। किसान अपनी जमीन गंवाने के लिए तैयार थे लेकिन वे इसके लिए अच्छे-खासे मुआवजे की उम्मीद कर रहे थे। इनमें से जो लोग सबसे ज्यादा चिंतित थे वे खेतिहर श्रमिक और पट्टाधारक थे। इसके अलावा, पूरे क्षेत्र में समृद्ध काली कपास वाली मिट्टी थी जो खेती के लिए बेशकीमती मानी जाती है लेकिन निर्माण स्थल के लिए यह उपयुक्त नहीं थी।
नायडू की सरकार मई 2019 में सत्ता से बाहर हो गई और रेड्डी सत्ता के शिखर पर पहुंचे और राज्य के मुख्यमंत्री बने। रायलसीमा में मौजूद रेड्डी के दल में दबदबा रखने वालों ने इसे शक्ति असंतुलन में सुधार करने के एक अवसर के रूप में देखा जो कम्मा/तेदेपा शासन के पिछले दो कार्यकाल के दौरान बना था।
एक अफसरशाह ने व्यंग्यपूर्ण ढंग से टिप्पणी करते हुए कहा कि पिछली कई समितियों की सिफारिशों के बावजूद रेड्डी ने कुछ समितियों का गठन किया ‘जिन्होंने वही कहा जो वह उनसे कहलवाना चाहते थे।’ एक अफसरशाह ने कहा, ‘मुझे उन दिनों की याद है। तीन राजधानियों का विचार जादुई तरीके से एक सुबह आया और फिर मुख्यमंत्री ने वह सनसनीखेज घोषणा कर दी।’
लेकिन इसके बाद समस्या आती ही गई। पहले के विचार अस्वीकृत हो गए। उच्च न्यायालय की जगह पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकार के पास नहीं था। इसीलिए उच्च न्यायालय को अमरावती से बाहर ले जाने का विचार पेचीदा था। लागत भी एक प्रमुख कारक था। रेड्डी प्रशासन की राजनीतिक खूबी, एक परवाह करने और ध्यान रखने वाली सरकार की थी। आंध्र प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुए पी वी रमेश ने कहा, ‘अगर आंध्र प्रदेश कोविड-19 महामारी के दौरान उबर पाने में कामयाब रहा है तो इसकी प्रमुख वजह कल्याणकारी योजनाएं हैं जिसमें सरकार ने नकद हस्तांतरण की प्रक्रिया लागू की है।’
सिर्फ अमरावती के लिए ही नहीं बल्कि कुरनूल और विशाखापत्तनम के लिए भी मुआवजा कैसे दिया गया, अगर राज्य के पास पैसा नहीं था? सीमित अनुमानों के साथ भी आकलन करने पर अधिग्रहीत जमीन की कीमत आज लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये है। इस कीमत के 150 प्रतिशत मूल्य पर मुआवजा देना होगा। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 75 फीसदी हिस्सा राज्य का कर्ज है। इनमें से अधिकांश राजधानी बनाने के मकसद से स्थापित की गई शेल कंपनियों पर आधारित हैं। राज्य सरकार का मुख्य राजस्व बैंकों में चला जाता है। सरकारी हलकों में सोच यह है कि अब आगे के लिए सबसे अच्छा तरीका यह है कि अमरावती के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन की नीलामी कर पैसे जुटाए जाएं। एक बार राज्य की वित्त व्यवस्था स्थिर हो जाए तब पैसे का इस्तेमाल आंशिक रूप से या यूं कहें कि राजधानी की अधूरी तीन (या दो) राजधानी परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिए किया जा सकता है। इसीलिए फिलहाल अमरावती की बात हो रही है। लेकिन कुछ साल बाद कौन जानता है कि आंध्र प्रदेश की राजधानी कहां हो सकती है?
