पिछले हफ्ते पटना में हुई विपक्षी दलों की बैठक दरअसल विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच एक सेतु तैयार करने का एक मौका थी। लेकिन इस बैठक का जैसे-जैसे पटाक्षेप होना शुरू हुआ तो इससे अंदाजा लगा कि यह सेतु पहले ही टूटने के कगार पर दिख रहा है।
राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद द्वारा राहुल गांधी की शादी को लेकर की गई टिप्पणी से लेकर खुद को बड़े विपक्षी परिवार के अहम सदस्य के रूप में पेश करने के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता शरद पवार के न्यूनतम साझा कार्यक्रम को एकता कायम करने की दिशा में जरूरी पहले कदम के सुझाव को तवज्जो नहीं मिलना और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी द्वारा अरविंद केजरीवाल और राहुल को सलाह देना कि वे सामूहिक तौर पर सबके समय को खराब करने के बजाय, बातचीत कर दिल्ली के लिए अध्यादेश पर अपने मतभेदों को दूर करें, ये सभी इस बैठक के दिलचस्प सार्वजनिक पहलू थे और निश्चित रूप से पर्दे के पीछे की चीजें भी उतनी ही दिलचस्प थीं। विपक्ष के सूत्रों का कहना है कि अगली दो बैठकों के लिए जगह पहले ही तय हो चुकी है और अगली बैठक शिमला में और उसके बाद चेन्नई में होगी।
इस बैठक में जिस क्रम में लोगों को बोलने के लिए बुलाया गया वह बेहद सरल था। इस बैठक में नीतीश कुमार और लालू बीच में बैठे थे और नीतीश के दाईं ओर बैठे लोगों को पहले बोलने के लिए आमंत्रित किया गया। मल्लिकार्जुन खरगे ने सबसे पहले अपना भाषण दिया और इसके बाद राहुल गांधी ने। फिर ममता को आमंत्रित किया गया। उन्होंने राज्यपालों के कार्यालय के माध्यम से राज्य की स्वायत्तता को खत्म करने, केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग और केंद्र सरकार के ‘सांप्रदायिक’ एजेंडे के बारे में एक लंबा भाषण दिया।
बीच में कई अन्य वक्ता भी आ गए और यह क्रम तब टूट गया जब नैशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला को पहले बोलने की अनुमति दी गई क्योंकि उन्हें विमान से रवाना होना था। दरअसल माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी को अपना भाषण लगभग अंत में देने के लिए कहा गया।
येचुरी और ममता की पार्टियां पश्चिम बंगाल में धुर विरोधी हैं और इस बैठक में दोनों को एक साथ ही बैठना पड़ा। जैसे ही येचुरी ने बोलना शुरू किया, ममता उठीं और अपने कागजात समेटते हुए परेशान सी दिखीं और फिर आखिरकार उन्होंने कह दिया कि उन्हें विमान में सवार होना है इसलिए तुरंत निकलना होगा। इसके बाद उन्होंने मेजबानों से हाथ मिलाया और चली गईं।
वहां मौजूद एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया, ‘येचुरी के चेहरे पर कोई भाव न दिखना ही उनके गुस्से को जाहिर कर रहा था। वह विपक्षी दलों की एकता के मकसद से राजनीतिक मतभेदों को भुलाकर अपने एक प्रतिद्वंद्वी के संबोधन को भी सुनते रहे। इससे पहले कि येचुरी कुछ बोल पाते वह वहां से चली गई, जैसे कि उन्हें उनकी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी।’
विपक्षी एकता का आधार क्या हो इसको लेकर प्रत्येक नेता की धारणा भी उतनी ही दिलचस्प थी। पवार ने न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार करने का आह्वान किया वहीं द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) के एम के स्टालिन ने वहां सभी को एकता के लिए एक साझा कार्यक्रम तैयार करने के लिए प्रेरित किया। लेकिन विपक्ष के एकजुट होने के सिद्धांत को व्यापक रूप से पेश किया गया जैसे कि राज्यों के संघीय अधिकारों में कटौती, विपक्ष शासित राज्यों के खिलाफ एक राजनीतिक हथियार के रूप में खाद्य सुरक्षा का उपयोग, वैधानिक सुरक्षा एजेंसियों का दुरुपयोग और वोटों के विभाजन को रोकने के लिए लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार के खिलाफ एक आम विपक्षी उम्मीदवार खड़ा करने की आवश्यकता से संबंधित मुद्दों पर जोर दिया गया। हालांकि इसके ब्योरे पर बात नहीं की गई। कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि एकता के लिए आगे का रास्ता एक ‘साझा एजेंडा’ है और न्यूनतम साझा कार्यक्रम बाद में आ सकता है।
बैठक के दौरान मौजूद लोगों ने कहा कि राहुल का हावभाव एक श्रोता की तरह था। उन्होंने पार्टी अध्यक्ष खरगे को केजरीवाल द्वारा उठाए गए मुद्दे पर अपनी बात रखने दी इससे पहले कि कोई और बात हो क्योंकि कांग्रेस को दिल्ली सरकार की शक्तियों से जुड़े अध्यादेश पर अपने रुख को स्पष्ट करना ही था।
केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच शक्तियों के विभाजन पर उच्चतम न्यायालय के आदेश से, निर्वाचित सरकार को संतुलित लाभ दिखता हुआ नजर आया लेकिन इसके बाद केंद्र ने एक अध्यादेश लागू किया जो यह सुनिश्चित करता है कि दिल्ली उसके नियंत्रण में रहे। केजरीवाल ने शिकायत की कि कांग्रेस अध्यादेश के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी का समर्थन नहीं कर रही है तब इस शिकायत पर राहुल के बजाय खरगे ने पार्टी का पक्ष रखा। राहुल ने अपने भाषण में कहा, ‘मुझे याद नहीं है कि मेरा दुश्मन कौन है और मेरा प्रतिद्वंद्वी कौन है। मैं मन में तटस्थता के भाव के साथ यहां आया हूं। हम सब एक साथ हैं।’
विपक्षी एकता को बनाने की कोशिश में जुटे दिग्गजों का कहना है कि यह बैठक इस तथ्य के लिहाज से खरी उतरी कि इसने इतने सारे अलग-अलग समूहों को एक मेज पर लाने की चुनौती पूरी कर ली।
एक दिन बाद तेजस्वी यादव ने कहा, ‘बैठक में फासीवादी ताकतों को हराने के एकमात्र मकसद से कश्मीर से कन्याकुमारी तक के नेता एक साथ आए। अगला लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी या किसी अन्य व्यक्ति के बारे में नहीं बल्कि आम लोगों से जुड़ा होगा।’ हालांकि, इसमें संदेह है।
कांग्रेस के एक सांसद ने कहा, ‘मोदी के 10 साल के शासन के बाद एक वैकल्पिक दृष्टिकोण क्या होगा? जब आप इस बात पर सोचते हैं कि केरल में जहां वाम मोर्चा का शासन है और वहां कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष को राज्य सरकार ने उस दिन गिरफ्तार कर लिया जिस दिन विपक्ष कथित तौर पर एकता पर चर्चा करने के लिए बैठक कर रहा था तो आपको निश्चित रूप से हैरानी होती है कि एकता कहां से आने वाली है।‘ वह सवाल करते हैं, ‘अगर एकता मूल्यों और सिद्धांतों पर आधारित नहीं होगी, तो हम इसे कैसे हासिल करेंगे?’