ऑपरेशन सिंदूर के दौरान एक नया मोर्चा खुलता साफ दिखाई दिया। इस मोर्चे पर लड़ाई मिसाइल और मशीनों से नहीं बल्कि गलत धारणाओं एवं दुष्प्रचार को हथियार बनाकर लड़ी गई। सभी तरफ से मनगढ़ंत कहानियां परोसी जा रही थीं और इन्हें इस कदर गढ़ा गया था कि वे जनमानस की सोच को प्रभावित कर रही थीं और लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा कर रही थीं। यद्यपि, इन दुष्प्रचारों से लड़ने में तथ्यों की जांच करने वाले दलों (फैक्ट-चेकिंग इकाइयों) ने पूरी मेहनत की लेकिन वे एक सधी रणनीति के साथ फैलाए जा रहे दुष्प्रचार एवं लोगों को प्रभावित करने की उनकी क्षमता के आगे टिक नहीं पाए। सूचना युग की वास्तविकता यह है कि सच्चाई स्वतः नजर नहीं आती है बल्कि उसे लोगों के सामने सही रणनीति के साथ रखना पड़ता है।
दुष्प्रचार तेजी से फैलता है क्योंकि उन्हें रोचक कहानियों के जरिये आगे बढ़ाया जाता है जिन्हें लोग तथ्यों से अधिक याद रखते हैं। कहानियां हमारा ध्यान खींचती हैं, भावनाओं को जगाती हैं और हमें चीजों को समझने में मदद करती हैं, भले ही वे सही हो या न हों। उदाहरण के लिए षड्यंत्र के सिद्धांत पेचीदा विषयों का सहज जवाब देते हैं जिन्हें दूसरों के साथ साझा करना आसान और भूलना मुश्किल होता है। अल्गोरिद्म से चलने वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म मुश्किलें और बढ़ा देते हैं क्योंकि वे ऐसी सामग्री दिखाते हैं जो उपयोगकर्ताओं (यूजर) की मौजूदा धारणाओं एवं भावनाओं के साथ मेल खाती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि लोग केवल उसी विषय या घटना से संबंधित पोस्ट देखते है जिनके बारे में उनके मन में पूर्व से ही एक धारणा तैयार रहती है।
यानी वे वही सुनते एवं देखते हैं जो वे सुनना एवं देखना चाहते हैं। यह समस्या अधिक विकराल हो जाती है क्योंकि लोग स्वाभाविक रूप से उन विचारों का बचाव करते हैं जो उनके समूह या उनकी पहचान से मिलते-जुलते हैं और उन तथ्यों को अस्वीकार कर देते हैं जो उनकी राय का समर्थन नहीं करते हैं। ऐसे में फर्जी कहानियां न केवल अपनी जगह बना लेती हैं बल्कि वे लोगों का भरोसा भी जीत लेती हैं। केवल सच्चाई सरल रूप में लाकर दुष्प्रचार से मुकाबला नहीं किया जा सकता बल्कि गहरे भावनात्मक जुड़ाव को एवं समूहों से उनका जुड़ाव खत्म करना पड़ता है।
मुख्यधारा की मीडिया को इस नए युग में कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। मौजूदा समय में सोशल मीडिया सार्वजनिक चर्चा की दिशा तय कर रहा है जिसे देखते हुए परंपरागत समाचार माध्यम लोगों का ध्यान खींचने की होड़ में फंस कर रह गए हैं। इस चक्कर में वे तथ्यों की व्यापक जांच किए बगैर आनन-फानन में खबरें परोसते हैं और सनसनी मचाने की कोशिश करते हैं। एक समय था जब तथ्यों की जांच पत्रकारिता में सर्वाधिक महत्त्व रखती थी।
आर्थिक कारणों और विभिन्न डिजिटल प्लेटफॉर्म के बीच दर्शकों के बंटने से समाचार चैनल वैसी सामग्री अधिक दिखाने लगे हैं जो विशेष समूहों को आकर्षित करते हैं। यह बदलाव जाने-अनजाने में दुष्प्रचार को बढ़ावा देता है। फर्जी खबरों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने 2019 में पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) फैक्ट-चेक यूनिट की स्थापना की थी और 2021 में नियमों में संशोधन किए थे। इन संशोधनों के बाद सरकार द्वारा अधिसूचित फैक्ट चेक यूनिट को सरकार के काम-काज से जुड़ी भ्रामक खबरों को खोज निकालने और मध्यस्थों (सोशल मीडिया या मेनस्ट्रीम मीडिया) को इन्हें हटाने के लिए कहने का अधिकार मिल गया। कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने भ्रामक एवं फर्जी खबरों पर लगाम लगाने के उपाय किए हैं।
इन उपायों में किसी तीसरे पक्ष के फैक्ट-चेकर के साथ साझेदारी, क्राउड-सोर्स वेरिफिकेशन का तरीका अपनाना और उपयोगकर्ताओं के सुझावों एवं प्रतिक्रियाओं के आधार पर सूचना समितियों का गठन एवं डिस्क्लेमर देना आदि शामिल हैं। हालांकि, ये प्रयास केवल दो निष्कर्षों पर पहुंच कर रह जाते हैं- सामग्री को केवल ‘सत्य’ या ‘फर्जी’के रूप में चिह्नित कर दिया जाता है।
फैक्ट चेकिंग इकाइयों के अस्तित्व में आने के बावजूद उनका प्रभाव सीमित ही है क्योंकि वे नीरस तरीके से काम करती हैं और लोगों के साथ भावनात्मक स्तर पर जुड़ने में विफल रहती हैं। फर्जी खबरों को खारिज करने की उनकी औपचारिक तकनीक लोगों की भावनाओं को उकसाने वाली फर्जी खबरों के प्रभाव को कम नहीं कर पाती है। इसका एक प्रभावी तरीका दिलचस्प रूप में तथ्यों का प्रस्तुतीकरण हो सकता है।
कहानी कहने का तरीका अधिक प्रभावी है – तथ्यों को संबंधित, आकर्षक और सांस्कृतिक रूप से परिचित कथाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सकता है। फैक्ट-चेकिंग इकाइयां वास्तविक जीवन के दृश्य, शॉर्ट क्लिप या रोजमर्रा की ऐसी दिलचस्प कहानियों का सहारा ले सकती हैं जो लोगों के दिलो-दिमाग पर असर डाल सकते हैं। यह तरीका भ्रामक खबरों को उजागर करने के साथ-साथ लोगों की धारणा बदलने में भी सहायक होता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘मन की बात’ कार्यक्रम में जिस तरह कहानियों के जरिये संवाद करते हैं उससे काफी कुछ सीखा जा सकता है। इस कार्यक्रम में आम नागरिकों के जीवन से जुड़ी रोचक एवं प्रेरक घटनाओं का इस्तेमाल सकारात्मक संदेश देने और राष्ट्रीय पहल को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। लोगों के प्रयासों का उल्लेख कर प्रधानमंत्री नीतिगत संदेश को भावनात्मक रूप से प्रस्तुत करते हैं जिसे आसानी से याद रखा जा सकता है। फैक्ट चेकिंग इकाइयां इसी दृष्टिकोण के साथ अपना काम कर सकती हैं। मानव केंद्रित कहानियों के जरिये प्रामाणिक खबरें एवं जानकारियां प्रस्तुत करने से लोग सच्चाई से अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं। केवल फर्जी खबरों के खंडन एवं उन्हें भ्रामक बताने से वास्तविकता लोगों तक नहीं पहुंचती है।
जिस तरह मन की बात में वास्तविक लोगों की आवाज को बढ़ावा दिया जाता है उसी तरह फैक्ट-चेकिंग से जुड़ी पहल उन लोगों का उदाहरण पेश कर सकती है जो फर्जी खबरों या दावों से नुकसान उठा चुके हैं, मगर बाद में संभल गए हैं। इस कार्य में अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं एवं वैज्ञानिकों की मदद से तथ्यों को संवाद के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है। जब लोग स्वयं अपने आप को किसी कहानी में पाते हैं तो वे अपनी धारणाओं में बदलाव को लेकर अधिक तैयार रहते हैं।
लोगों के वास्तविक जीवन एवं मूल्यों जैसी सहानुभूति एवं उत्साह से जुड़ी बातें प्रामाणिक खबरों को और अधिक यादगार बना सकती हैं। साक्ष्य, व्यंग्य, रील या लोक कथाओं के माध्यम से सच्चाई लोगों के बीच अधिक मजबूती के साथ पहुंचाई जा सकती है। जब सच्चाई ठोस एवं बेहतर तरीके से लोगों के सामने रखी जाती है तो यह दुष्प्रचार का असर लोगों के मन से निकाल सकती है। भ्रामक खबरों एवं दुष्प्रचार की काट अब भी मौजूद हैं मगर आधिकारिक स्रोतों से पुष्टि नहीं किए जाने के कारण बहुत अधिक सफलता नहीं मिलती है। अगर तथ्यों की जांच करने वाली आधिकारिक विश्वसनीय इकाइयां तैयार की जाए तो दुष्प्रचार पर प्रभावी रूप से नियंत्रण पाया जा सकता है।
अगर फैक्ट चेकिंग इकाइयों को दुष्प्रचार से सुरक्षा का मजबूत कवच बनाना है तो उन्हें लोगों तक ठोस नजरिया ले जाने में सबसे आगे रहना होगा। सच्चाई को उबाऊ और नीरस रूप में प्रस्तुत करने से दुष्प्रचार का जंजाल नहीं तोड़ा जा सकता। फैक्ट-चेकिंग टीम को उन रोचक कहानियों एवं आख्यान का सहारा लेना चाहिए जो लोगों के दिल और दिमाग में जगह बना सकते हैं। वैसे भी वर्तमान समय में मीडिया की इस सुनामी में अगर आप अपनी कहानी स्वयं नहीं बताएंगे तो कोई और इसे अपने तरीके से लोगों को सुनाएगा।
(लेखक यूपीएससी के चेयरमैन और पूर्व रक्षा सचिव हैं)