भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की इस वित्त वर्ष की अंतिम बैठक सोमवार को आरंभ हो गई। इस बार समिति को अपेक्षाकृत कठिन निर्णय लेना है। चूंकि मुद्रास्फीति की दर तीन तिमाहियों से अधिक समय से तय दायरे की ऊपरी सीमा से भी अधिक रही है तो इसका अर्थ यही हुआ कि केंद्रीय बैंक तय लक्ष्य को हासिल करने में नाकाम रहा है।
कानून के मुताबिक उसे सरकार को लिखित में इसकी वजह बतानी पड़ी। निर्णय प्रक्रिया को लेकर स्पष्टता थी और दरें तय करने वाली समिति के पास नीतिगत ब्याज दरें बढ़ाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। महामारी से मची उथलपुथल से निपटने के लिए इन दरों में पहले कमी की गई थी। यही कारण है कि मौजूदा चक्र में उसने अब तक नीतिगत दरों में 225 आधार अंकों का इजाफा किया। रिजर्व बैंक अतिरिक्त नकदी को कम करने की प्रक्रिया में भी है जिससे वित्तीय हालात में सख्ती आ रही है। बहरहाल, वृहद आर्थिक स्थितियां पिछली बैठक के बाद से तेजी से बदली हैं। दुनिया भर में मुद्रास्फीतिक दबाव कम हो रहा है और माना जा रहा है कि वृद्धि में सुधार होगा।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने जनवरी में जो वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण पेश किया है वह दिखाता है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था 2023 में 2.9 फीसदी की दर से बढ़ सकती है जो अक्टूबर के दृष्टिकोण से 0.2 फीसदी अधिक है। विकसित देशों में आया धीमापन उतना अधिक नहीं है जितना कि पहले जताया गया था। अमेरिका में 2023 की आर्थिक वृदि्ध का उदाहरण लें तो उसे संशोधित करके 0.4 फीसदी बढ़ाया गया है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था के बारे में अनुमान है कि उसमें काफी धीमापन आएगा तथा समेकित वृद्धि सन 2000 से अब तक के औसत से करीब एक फीसदी कम रहेगी। मुद्रास्फीति संबंधी हालात में भी नरमी आ रही है, हालांकि विकसित देशों में दरें अभी भी लक्ष्य से काफी ऊपर हैं। आईएमएफ के अनुमान के मुताबिक 2022 की तुलना में 84 फीसदी देशों ने 2023 में मुद्रास्फीति कम होने की आशा जताई है। 2022 के 8.8 फीसदी के औसत की तुलना में 2023 में वैश्विक मुद्रास्फीति कम होकर 6.6 फीसदी तथा 2024 में 4.3 फीसदी रह जाने का अनुमान है। 2024 के स्तर की बात करें तो वह फिर भी महामारी के पहले के 3.5 फीसदी के स्तर से अधिक रहेगी।
भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर भी नवंबर और दिसंबर में 6 फीसदी से नीचे रही। एमपीसी ने अपनी पिछली बैठक में अनुमान जताया था कि 2023-24 की पहली और दूसरी तिमाही में मुद्रास्फीति की दर क्रमश: 5 और 5.4 फीसदी रहेगी। संभव है कि इनमें संशोधन करके इन्हें कम किया जाए। यह देखना होगा कि मूल मुद्रास्फीति को लेकर अनुमान कैसे रहते हैं क्योंकि वह लगातार ऊंची बनी रही है। उच्च मूल मुद्रास्फीति शीर्ष आंकड़ों में स्थायी कमी के लिए बड़ा जोखिम होगी। फिलहाल जो हालात हैं उनके मुताबिक तो रीपो दर में 25 आधार अंकों का इजाफा हो सकता है और साथ ही शीर्ष मुद्रास्फीति के उल्लिखित आंकड़ों में कुछ कमी आ सकती है। ऐसा होने से वास्तविक नीतिगत दर वांछित स्तर के करीब आएगी।
ऐसे में एमपीसी को या तो दरों को बढ़ाना होगा ताकि वह उसे वांछित स्थिर स्तर के करीब ले जा सके या फिर कुछ समय प्रतीक्षा करनी होगी। आरबीआई द्वारा दरों में 25 आधार अंकों का इजाफा करने और यह संकेत देने की बात समझ में आती है कि अगला कदम आंकड़ों पर आधारित होगा। थोड़ा ठहरकर दरों में इजाफा करने से वांछित प्रभाव नहीं उत्पन्न होगा। अमेरिका समेत विकसित देशों के केंद्रीय बैंक भी रुकने के पहले दरों में इजाफा कर सकते हैं। रिजर्व बैंक को देखना होगा कि नीतिगत दरों को वांछित स्तर पर ले जाने के बाद भी वित्तीय हालात तंग होने का भारत की बाहरी स्थिति पर क्या असर होता है।