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नोबेल विजेता और नैतिकता से जुड़े सवाल

नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. ग्रेग सेमेंजा के शोध पत्रों पर उठे विवाद: आंकड़ों में गड़बड़ी का आरोप

Last Updated- November 16, 2023 | 6:09 AM IST
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नोबेल पुरस्कार से सम्मानित एवं जीन पर शोध करने वाले वैज्ञानिक डॉ. ग्रेग सेमेंजा द्वारा तैयार शोध पत्र में उद्धृत आंकड़े एवं जानकारियां विवादों के घेरे में आ गए हैं। ऐसे आरोप लगाए गए हैं कि सेमेंजा के इन पत्रों में जिन आंकड़ों का उल्लेख किया गया है वे वास्तविकता से दूर और मिथ्या हैं।

67 वर्षीय सेमेंजा (एमडी, पीएचडी) को 2019 में मेडिसन के लिए संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार दिया गया था। सेमेंजा ने यह खोज की थी कि कोशिकाएं किस तरह आक्सीजन भांप लेती हैं और इसकी उपलब्धता के अनुसार स्वयं को ढाल लेती हैं। वह जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसन में संवहनी कार्यक्रम (वेस्क्युलर प्रोग्राम) के निदेशक हैं।

पिछले वर्ष अक्टूबर से सेमेंजा कम से कम अपने 10 शोध पत्र वापस ले चुके हैं। सबसे पहले 2005 में उन्होंने पहला शोध पत्र वापस लिया था। शोधकर्ताओं ने उनके शोध पत्रों में मिथ्या एवं विकृत आंकड़े होने का दावा किया था।

सेमेंजा ने अपने शोध में दिखाया है कि कैंसर कोशिकाएं किस तरह पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं होने के बावजूद अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। उनकी इस खोज को काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। उनके वापस लिए गए शोध पत्रों का 750 बार से अधिक उल्लेख हो चुका है।

उन्हें दिए गए नोबेल पुरस्कार में उल्लेख किया गया है, ‘ऑक्सीजन के स्तर में बदलाव के साथ कोशिकाएं कैसे स्वयं को ढालती हैं, यह तथ्य लंबे समय से अज्ञात रहा है।

विलियम केलिन, पीटर रैटक्लिफ और ग्रेग सेमेंजा (तीनों विजेता) ने इस बात की खोज की है कि कोशिकाएं ऑक्सीजन के स्तर में बदलाव को भांप सकती हैं और उसी अनुसार स्वयं को अनुकूलित कर सकती हैं। यह खोज एनीमिया (रक्ताल्पता), कैंसर और कई अन्य बीमारियों के इलाज में मददगार हो सकती हैं।’

नोबेल पुरस्कार सम्मान एवं गरिमा का विषय होता है। पुरस्कार में मिली राशि से कहीं अधिक यह आदर एवं सम्मान की बात होती है। चूंकि, ऐसे पुरस्कार कोई असाधारण कार्य पूरा होने के कई वर्षों बाद दिए जाते हैं इसलिए इनका प्रभाव भी दीर्घ काल तक रहता है। परंतु अब ऐसा माना जा रहा है कि इन पुरस्कारों की समीक्षा की जानी चाहिए।

वैज्ञानिक शोध कठिन, बहु-स्तरीय होते हैं और एक लंबी प्रक्रिया के बाद ही इनकी पुष्टि की जाती है। कुछ पत्रों के एक लेखक होते हैं। मगर जितने शोध पत्र वापस लिए गए हैं उन्हें कई लोगों ने मिलकर लिखा था।

इन शोध पत्रों के तैयार होने के बाद ‘आंतरिक समीक्षा’ भी होती है क्योंकि लेखक एक दूसरे के योगदानों की समीक्षा करते हैं। इसके बाद इनकी सहकर्मी समीक्षा होती है और उसके बाद इन्हें प्रकाशित किया जाता है। शोधकर्ता उसके बाद नतीजे दोहराने की कोशिश करते हैं और खोजे गए तथ्यों को आगे बढ़ाने के लिए एक ढांचा तैयार करते हैं।

यह भी सच है कि कई नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने भी अपने शोध वापस लिए हैं। फ्रांसिस आर्नोल्ड (2018, रसायन शास्त्र) जब अपने शोध के नतीजे दोहरा नहीं पाईं तो 2019 में उन्होंने अपना एक शोध पत्र वापस ले लिया। लिंडा बक (2004 में चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार सम्मानित) भी 2005 और 2006 में प्रकाशित अपने शोध पत्र वापस ले चुकी हैं।

माइकल रॉसबैश (2017, चिकित्सा के क्षेत्र में) और जैक सॉस्टैक (2009, चिकित्सा) भी अपने पत्र वापस ले चुके हैं। हालांकि, इन सभी मामलों में वैज्ञानिकों ने माफीनामा देने के साथ अपने शोध वापस लिए। प्रकाशन के कुछ ही समय बाद लेखकों ने स्वयं द्वारा खोजे गए तथ्यों में त्रुटियों का हवाला देते हुए इन्हें वापस ले लिया।

वर्ष 2005 से 2020 के बीच प्रकाशित शोध पत्रों में वापस लिए गए 10 काफी असामान्य हैं। ‘क्लेयर फ्रांसिस’ छद्मनाम से शोध करने वाले एक शोधकर्ता ने जब शोध पत्रों पर सवाल उठाए तब अक्टूबर 2022 में भी शोध पत्रों के वापस लेने का सिलसिला शुरू हुआ।

जिन अन्य सात पत्रों में डॉ. सेमेंजा उप-लेखक (लास्ट ऑथर) रहे हैं उन्हें लेकर भी ‘चिंता जताई’ गई है। इसके बाद और अधिक पत्र वापस लिए जा सकते हैं। कई पत्र तो लगभग एक दशक तक सार्वजनिक स्तर पर मौजूद रहे हैं। जब शीर्ष वैज्ञानिकों की टीम कोई शोध प्रकाशित करती है तो करोड़ों में रकम इसके बाद होने वाले शोध पर व्यय हो सकती हैं।

उदाहरण के लिए, रॉयटर्स के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान ने हृदय के ऊतक दोबारा विकसित करने में स्टेम सेल के इस्तेमाल पर किए गए शोध पर 58.8 करोड़ डॉलर खर्च किए। मगर यह पहल हावर्ड में डॉ. पियरो एन्वर्सा एवं उनकी टीम द्वारा प्रकाशित 31 असत्य पत्रों को आधार बनाकर की गई थी।

गलत आंकड़े, आंकड़ों के गलत विश्लेषण और असत्य आंकड़ों में अंतर होता है। विज्ञान सूक्ष्म स्तर पर एकदम सटीक परिणाम के साथ तथ्यों एवं आंकड़ों का विश्लेषण करता है और स्पष्ट नतीजे पाने के लिए अत्याधुनिक सांख्यिकीय विधियां प्रयोग में लाता है। हां, तब भी गलतियों की गुंजाइश तो होती ही है।

मगर अपनी खोज प्रकाशित करने के दबाव में शोधकर्ता जान-बूझकर फर्जी नतीजे भी डालने से स्वयं को नहीं रोक पाते हैं। जब जानकारियों में छवि एवं चित्र होते हैं और छवि के साथ छेड़छाड़ होती है तो साक्ष्य का झुकाव असत्य आंकड़ों की ओर हो जाता है। आखिर, इस तरह के कारनामे कितने होते हैं?

स्टैनफर्ड की माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. इलिजाबेथ बिक ने इन मामलों पर लंबे समय से पड़ताल की है। उनका दावा है कि उन्होंने अपने क्षेत्र से संबंधित 1,00,000 से अधिक शोध पत्रों की समीक्षा की है और पाया है कि 4,800 पत्रों में असत्य छवि और 1,700 पत्रों में छेड़छाड़ के अन्य संकेत मिले हैं। अब तक उनकी रिपोर्ट के बाद 950 पत्र वापस लिए जा चुके हैं और कई में त्रुटियां दुरुस्त की गई हैं।

फेडरल डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ ऐंड ह्यूमन सर्विसेस के तहत काम करने वाली संस्था यूएस ऑफिस ऑफ रिसर्च इंटीग्रिटी डॉ. सेमेंजा के खिलाफ शिकायतों की जांच कर रहा है।

मगर आप डॉ. बिक जैसे लोगों के निष्कर्षों पर विश्वास करें तो छवि एवं जानकारियों या आंकड़ों के साथ छेड़छाड़ की फेहरिस्त काफी बड़ी है। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी अत्याधुनिक तकनीक को देखते हुए ऐसे मामले और बढ़ सकते हैं। ऐसे में लोगों का विज्ञान पर विश्वास डगमगा सकता है।

First Published - November 15, 2023 | 10:56 PM IST

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