facebookmetapixel
IKEA India पुणे में फैलाएगी पंख, 38 लाख रुपये मासिक किराये पर स्टोरनॉर्टन ब्रांड में दिख रही अपार संभावनाएं: टीवीएस के नए MD सुदर्शन वेणुITC Hotels ने लॉन्च किया प्रीमियम ब्रांड ‘एपिक कलेक्शन’, पुरी से मिलेगी नई शुरुआतनेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल का पड़ोसी दरभंगा पर कोई प्रभाव नहीं, जनता ने हालात से किया समझौताEditorial: ORS लेबल पर प्रतिबंध के बाद अन्य उत्पादों पर भी पुनर्विचार होना चाहिएनियामकीय व्यवस्था में खामियां: भारत को शक्तियों का पृथक्करण बहाल करना होगाबिहार: PM मोदी ने पेश की सुशासन की तस्वीर, लालटेन के माध्यम से विपक्षी राजद पर कसा तंज80 ही क्यों, 180 साल क्यों न जीएं, अधिकांश समस्याएं हमारे कम मानव जीवनकाल के कारण: दीपिंदर गोयलभारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तत्काल सुधार की आवश्यकता पर दिया जोरपीयूष पांडे: वह महान प्रतिभा जिसके लिए विज्ञापन का मतलब था जादू

मध्य आय का जाल और भारत का हाल

दक्षिण कोरिया, ताइवान, सिंगापुर जैसे कई पूर्वी एशियाई देश भी आगे बढ़ने में सफल रहे हैं। चीन और मलेशिया जैसे देश भी इस प्रक्रिया में शामिल हैं।

Last Updated- November 08, 2024 | 9:19 PM IST
The firms of middle India

भारत को विकसित देश बनना है और दूसरों के लिए बेहतर राह निर्धारित करनी है तो उसे पांच अहम सुधार करने होंगे। बता रहे हैं अजय छिब्बर

विश्व बैंक (World Bank) की हालिया विश्व विकास रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 108 देश इस समय मध्य आय के जाल में फंसे हुए हैं। उसके मुताबिक ये वे देश हैं जिनकी प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) 2024 में 1,146 डॉलर से 14,005 डॉलर के बीच है।

इससे कम आय वाले देशों को निम्न आय और अधिक आय वाले देशों को उच्च आय वाले देशों में गिना जाता है। उसने मध्य आय की श्रेणी (एमआईसी) को दो उपश्रेणियों में बांटा है। 1,146 डॉलर से 4,515 डॉलर आय वाले देशों को निम्न मध्य आय (एलएमआईसी) और इससे अधिक आय वालों को उच्च मध्य आय (यूएमआईसी) की श्रेणी में रखा गया है। मध्य आय समूह में शामिल देशों की संख्या 2000 में 90 थी जो 2010 में 109 हो गई और आज 108 है। ये जाल में फंसे नजर आते हैं लेकिन यह बात भ्रामक है।

आय के इस सोपान में हमें विभिन्न देश ऊपर चढ़ते दिखते हैं। उच्च आय वाले देशों की संख्या 2000 के 51 से बढ़कर 2023 में 85 हो गई, जबकि निम्न आय वाले देशों की संख्या 2000 के 63 से कम होकर 2023 में 26 रह गई। यह जाल नहीं बल्कि विकास की सीढ़ी पर कठिन चढ़ाई है। पूर्वी और दक्षिणी यूरोप के कई देशों को यूरोपीय संघ की सदस्यता से मदद मिली है और वे सीढ़ी पर ऊपर बढ़े हैं।

दक्षिण कोरिया, ताइवान, सिंगापुर जैसे कई पूर्वी एशियाई देश भी आगे बढ़ने में सफल रहे हैं। चीन और मलेशिया जैसे देश भी इस प्रक्रिया में शामिल हैं। वियतनाम अभी दूर है और वह निम्न मध्य आय वाले देशों में है मगर उसमें आगे बढ़ने की क्षमता है। लैटिन अमेरिका में चिली और उरुग्वे उच्च आय का दर्जा पाने में कामयाब रहे हैं मगर ब्राजील, मेक्सिको, पेरू और कोलंबिया जैसे कई देश फंसे हुए नजर आते हैं।

किसी समय उच्च आय वाले समूह में रहे अर्जेंटीना और वेनेजुएला जैसे देश अब मध्य आय वाले देशों में फंसे दिख रहे हैं। तेल और खनिज संपदा वाले कुछ देश भी इसमें कामयाब हुए हैं लेकिन इराक, ईरान, अल्जीरिया, लीबिया और नाइजीरिया जैसे कई देश जूझते नजर आ रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) का मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) आय के स्तर के साथ शिक्षा और स्वास्थ्य के आधार पर भी आकलन करता है। उसमें भी विकास के मार्ग पर प्रगति नजर आती है। उसने एचडीआई में मिले अंको के आधार पर मानव विकास की चार श्रेणियां तैयार की हैं:

निम्न (0.55 से कम), मध्यम (0.55 से 0.7), उच्च (0.7 से 0.8) और अति उच्च (0.8 से अधिक)। 1990 में 160 में से 70 देश निम्न मानव विकास वाले थे मगर 2022 में 185 देशों में से केवल 26 देश इस श्रेणी में रह गए। अति उच्च मानव विकास वाली श्रेणी के देश 1990 में केवल 47 थे, जिनकी संख्या 2022 में बढ़कर 69 हो गई। उच्च मानव विकास वाले देश 1990 में 18 ही थे, जो 2022 में बढ़कर 49 हो गए। यह सुधार केवल आय में नहीं हुआ बल्कि यह व्यापक सूचकांक है।

इससे पता चलता है कि इन श्रेणियों में व्यापक गतिशीलता नजर आती है जहां देश निम्न से मध्य और उच्च तथा आखिर में अत्यधिक उच्चतम मानव विकास की श्रेणी में जा रहे हैं। ऐसे में मध्य आय से गुजरना जाल में फंसना नहीं बल्कि ऊंचाई की ओर सफर में पड़ाव लगता है। मजबूत संस्थाओं वाले, लोगों को शिक्षा और प्रशिक्षण देने वाले देश या तेल जैसे संसाधन वाले अथवा यूरोपीय संघ की सदस्यता से लाभान्वित होने वाले देश तेजी से आगे आते हैं।

भारतीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ पहले ही अटकल लगा रहे हैं कि निम्न मध्य आय श्रेणी में आने वाला भारत मध्य आय के जाल में फंसेगा या नहीं। विश्व बैंक भी कह चुका है कि 2,540 डॉलर की प्रति व्यक्ति आय के साथ (अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय की केवल 3 फीसदी) भारत को अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय के चौथाई हिस्से तक पहुंचने में ही 75 वर्ष लग जाएंगे।

हालांकि यह सही पैमाना नहीं है। विश्व बैंक के नए प्रेसिडेंट अजय बंगा ने संस्था के मिशन को बदलकर उचित लक्ष्य रख दिया है, ‘रहने योग्य ग्रह पर गरीबी का उन्मूलन।’ मगर हर किसी ने अमेरिकी जीवनशैली अपनाई तो धरती रहने योग्य नहीं रह जाएगी। इसके बजाय यूएनडीपी के अनुसार हमें रहने के लिए नौ ग्रहों की जरूरत होगी।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप की जीत यूं भी पृथ्वी के लिए अच्छी खबर नहीं है क्योंकि वह जलवायु समझौतों से बाहर निकल जाएंगे और जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल बढ़ा देंगे। यहां तक कि चीन भी अमेरिका की नकल कर रहा है और उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था बनने के पहले ही दुनिया में कार्बन डाई ऑक्साइड का सबसे बड़ा उत्सर्जक बन गया है। ऐसे में भारत को क्या करना चाहिए?

इसका रास्ता विकास मापते समय पारिस्थितिकी को हो रहे नुकसान का पता लगाने से मिल सकता है। सतत विकास सूचकांक गैर टिकाऊ विकास को मापता है, जिसके लिए वह मानव विकास सूचकांक का पारिस्थितिकी सूचकांक से भाग करता है। पारिस्थितिकी सूचकांक प्रति व्यक्ति कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन और निर्माण में ऐसी सामग्री के इस्तेमाल से बनता है, जो सामग्री पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाती है। इसे पैमाना बनाएं तो अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और सिंगापुर का विकास स्कोर बहुत कम हो जाता है।

एसडीआई का उच्चतम स्तर 14,000 डॉलर प्रति व्यक्ति जीएनआई और 0.8 एचडीआई अंक के बराबर है, जिसे भारत 2047 तक हासिल कर सकता है। इस दौरान उसका कार्बन उत्सजर्न भी पहले वहां पहुंच चुके देशों की तुलना में कम होगा।

इन लक्ष्यों के साथ भारत का विकसित देश बनना असंभव नहीं है। इसे हासिल करने के लिए उसे पांच अहम सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना होगा ताकि उच्च मध्य आय वर्ग में पहुंचने पर उसके पास निरंतर आगे बढ़ने के लिए जरूरी तंत्र मौजूद हो।

ये सुधार हैं- प्रशासन, लोक वित्त और विकेंद्रीकरण की बेहतर संस्थाएं, उच्च गुणवत्ता वाली व्यापक शिक्षा, स्त्री-पुरुष भेद में कमी, आयात संरक्षण और औद्योगिक नीति ही नहीं उत्पादन के कारकों में भी सुधार के साथ नवाचार तथा प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर जोर बढ़ाना एवं कोयले पर निर्भरता तेजी से घटाना।

यह चुनौती भरा है, लेकिन ऐसा करके देश की 1.5 अरब आबादी का जीवन बेहतर बनाया जा सकता है। ऐसा करते हुए भारत न केवल विकसित देश बन जाएगा बल्कि वह दूसरों को भी विकास पथ पर चलने का बेहतर रास्ता दिखाएगा।

(लेखक जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनैशनल इकनॉमिक पॉलिसी के प्रतिष्ठित विजिटिंग स्कॉलर हैं)

First Published - November 8, 2024 | 9:11 PM IST

संबंधित पोस्ट